Home Jain News जेल में रहकर अपने को कैदी मत समझो,आपमें भी भगवान बनने की क्षमता है – मुनि साक्ष्य सागर महाराज

जेल में रहकर अपने को कैदी मत समझो,आपमें भी भगवान बनने की क्षमता है – मुनि साक्ष्य सागर महाराज

0
जेल में रहकर अपने को कैदी मत समझो,आपमें भी भगवान बनने की क्षमता है – मुनि साक्ष्य सागर महाराज

अलवर। दिगम्बर जैनाचार्य विशुद्व सागर महाराज के सुशिष्य मुनि साक्ष्य सागर महाराज,मुनि योग्य सागर महाराज व मुनि निवृत्त सागर महाराज के आज स्थानीय केन्द्रीय कारागृह में प्रवचन हुए जिन्हें सुनकर कई बंदी भाव विभोर हो गये।
इस अवसर पर मुनि साक्ष्य सागर महाराज ने कहा कि आज आप लोग कैदी के रूप में यहां जेल में हैं लेकिन आप अपनी शक्ति को नहीं पहचान पा रहे हैं कि आप में भी भगवान बनने की शक्ति है,आप भी परमात्मा बन सकते हो। उन्होंंने कहा कि जीवन में किसी न किसी माध्यम से अपराध हो जाता है और अपराध का मूल कारण पाप है।

हम हिंसा,झूंठ,चोरी,कुशील,परिग्रह आदि पापों के रास्ते से ही अपराध करते हैं और सजा भुगतने के लिये जेल में आना पड़ता है। हम अपने जीवन को ऐसा बनायें कि किसी ने हमसे किसी बात को लेकर विवाद किया तो हम उसे क्षमा से जीत सकते हैं, अपराध करने से नहीं। मुनि श्री ने कहा कि यहां जितने भी बंदी हैं उनमें अधिकतर युवा वर्ग है और अभी उनको लम्बा जीवन काटना है इसलिये अपने शेष जीवन को ऐसा जिओ कि हमारा जीवन बदल जाये। मुनि श्री ने कहा कि अगर पाप किया है तो उसका प्रायश्चित कर लो क्योंकि प्रायश्चित पाप को खा जाता है। पाप आवेश में होता है लेकिन उसकी सजा हमें होशो हवास में झेलनी पड़ती है। मुनि श्री ने कहा कि हमें अब उस अवस्था को प्राप्त करना है जिसमें ना सुर हो,ना असुर हो,हमें परमात्मा की अवस्था को प्राप्त करना है और जेल से छूटकर जब घर जाओ तो घरवालों व निकटतम लोगों को लगे कि तुम जेल से नहीं किसी आश्रम से आये हो।

जब कोई जन्म लेता है तो उसकी कोई जाति या धर्म नहीं होता लेकिन उसे पैदा होने के बाद उसे उसके कुल के अनुसार नाम और संज्ञा मिल जाती है और फिर जो बचपन में संस्कार मिलते हैं उसी के अनुसार अपना जीवन जीने लगता है। इसी तरह हम अपराधी बनकर पैदा नहीं हुए लेकिन दुनिया में आकर हम अच्छा-बुरा कर रहे हैं जिसके कारण ही हम अच्छे-बुरे बनते हैं लेकिन हमें अच्छा ही बनना है,बुराईयों से बचना है। मुनि श्री ने कहा कि जीवन को ऐसा संवारो कि हमें फिर जेल आने की नौबत ही नहीं आये। मुनि साक्ष्य सागर महाराज ने कहा कि सीता के जीवन को देखो,जो राम की पत्नी होते हुए भी राम ने ही एक साधारण व्यक्ति के कहने से उसे घर से निकाल कर वन में भेज दिया। उन्होंने कहा कि हम जब भी कभी संकट में अपने को समझें तो सीता के जीवन को याद कर लें। हनुमान के जीवन को भी याद कर लें।

कार्यक्रम में मुनि निवृत्त सागर महाराज ने कहा कि अपराध का कारण क्रोध भी होता है। हमने क्रोध में आकर जो अपराध कर दिया उसकी सजा हमें यहां जेल में मिल रही है लेकिन उसके बाद मन में कभी भी ये भावना मत लाना कि जिसके कारण मैं जेल आया हूं,उसको जेल से छूटने के बाद देख लूंगा। अगर ऐसा किया तो फिर से मन में अपराध की भावना जागेगी और अपराध करने के बाद तो जीवन में फिर से क्लेश उत्पन्न होगा ही,इसलिये बदले की भावना से बचना भी अपराध से दूर होना है। मुनि श्री ने कहा कि अपराध तब भी होता है जब व्यक्ति के जीवन में पूर्व भव के पाप का उदय हो जाता है। उन्होंने कहा कि अब जो हो गया है उसे भूल जाओ और आगे के जीवन को सुधारने की तरफ बढ़ो ताकि जीवन सुखी हो। इससे पूर्व मुनि संघ का जेल प्रशासन की तरफ से जेलर सचिन कसाना ने श्री फल भेंटकर अभिवादन किया तथा राजेन्द्र कुमार जैन बड़तलिया एडवोकेट व राजेन्द्र प्रसाद जैन ने मुनि संघ को शास्त्र भेंट किया।

कार्यक्रम में राजस्थान के पूर्व नि:शक्तजन आयुक्त खिल्लीमल जैन व समाज सेवी बच्चू सिंह जैन ने भी अपने विचार रखे जबकि श्री दिगम्बर जैन अग्रवाल पंचायती मंदिर के अध्यक्ष रमेश जैन,समाज सेवी अशोक आहूजा ने कार्यक्रम का संचालन किया तथा जेलर सचिन कसाना का सम्मान भी किया। इस अवसर पर समाज सेवी अशोक आहूजा का भी सम्मान किया गया। मंगलाचरण की प्रस्तुति धर्मचन्द जैन बड़तलिया ने दी। कार्यक्रम में जैन समाज की तरफ से नवीन जैन,विनोद जैन,हरीश जैन,पुष्पेन्द्र जैन,अशोक जैन घी वाले,नीरज जैन,राकेश जैन सहित अनेक लोग मौजूद रहे। इस अवसर पर बंदियों को पुस्तक का वितरण किया गया तथा जेल की लाईब्रेरी के लिये भी साहित्य भेंट किया गया।

— उदयभान जैन


Comments

comments