जैन तीर्थक्षेत्र सम्मेद शिखर जी (मधुबन) में कई संतों ने चातुर्मास हेतु मंगल प्रवेश किया। साधुओं के मंगल प्रवेश से तीर्थक्षेत्र की पावन धरती पर श्रद्धालु पूरी तरह से धार्मिक आस्था में लीन हो गये हैं। इस सप्ताह कई साधुओं का प्रवेश हुआ। जैन धर्मशाला शात विहार, निहारिका में 108 कुंथ सागर जी महाराज के परम शिष्य 108 ऐलाचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज अपना चातुर्मास करेंगे। इस अवसर पर जैन समाज गिरिडीह, मधुबन, शात ट्रस्ट के महामंत्री छीतरमल जैन पाटनी, हजारीबाग सहित सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित थे। 108 ऐलाचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि साधु-संत जगजीवन हितकर होते हैं। साधु ही समाज का आंगन और आईना होता है।
समाज में प्रेम, सहिष्णुता, सहजता आदि साधु के विशेष गुण होते हैं, जिससे समाज में संतों का महत्व बना रहता है। संत का प्यार किसी एक व्यक्ति पर नहीं बल्कि सर्वसमाज पर होता है। चातुर्मास अहिंसा का प्रतीक नहीं हर जीवों के प्रति साधु के मन में उठी प्रेम वाचना का फल है, जो उसे एक स्थान पर रोक लेती है। चातुर्मास स्थापना के अवसर पर मंगलाचरण बी.के. जैन मुम्बई ने किया। भूमिका पं. विकास जैन ने किया और मंगल कलश की स्थापना में पहला कलश शंभू जी हिमानी सरावगी, दूसरा कलश महेश मंजू साहा, गिरिडीह और तीसरा कलश जितेंद्रजी पाण्डया, जयपुर ने की। कलश स्थापने के मौके पर सतेंद्र जैन, शात ट्रस्ट के प्रबंधक प्रदुमन जैन, संजीव जैन, गंगाधर महतो, अनूप जैन, सुधीर जैन, मनोज जैन, विरेंद्र जैन, सुनील जैन, महेश जैन आदि भी उपस्थित थे।