Home Jain News Daslakshan Parv 2024: छोटा बाजार जैन मंदिर में श्री कल्याण मंदिर स्त्रोत विधान के साथ दशलक्षण महापर्व का शुभारंभ

Daslakshan Parv 2024: छोटा बाजार जैन मंदिर में श्री कल्याण मंदिर स्त्रोत विधान के साथ दशलक्षण महापर्व का शुभारंभ

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Daslakshan Parv 2024: छोटा बाजार जैन मंदिर में श्री कल्याण मंदिर स्त्रोत विधान के साथ दशलक्षण महापर्व का शुभारंभ

दशलक्षण पर्व जैन धर्म का पवित्र पर्व है। इसे दिगंबर जैन समाज के श्रद्धालु हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष के दौरान पंचमी तिथि से अनंत चतुर्दशी तक श्रद्धा से मनाते हैं। दस दिवसीय यह पर्व आत्मा की शुद्धि, संयम व आध्यात्मिक उन्नति के लिए मनाया जाता है। दशलक्षण पर्व जैन धर्म के मूल सिद्धांतों पर आधारित है, जिसमें 10 प्रमुख धर्मों का पालन किया जाता है। इस दौरान समाजजन दस दिनों में कठिन तप करते हैं। इस पर्व पर समाज द्वारा विभिन्न धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाते है । इन 10 दिनों में रोज सुबह विशेष विधान के साथ ही शाम को शास्त्री जी के प्रवचन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाएंगे।

शाहदरा के छोटा बाजार स्थित अति प्राचीन मुगलकालीन अतिशययुक्त श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में दशलक्षण पर्व में होने वाले विशेष विधानों की श्रंखला में पहले दिन श्री कल्याण मंदिर स्त्रोत विधान किया गया जोकि विधानाचार्य पं. अरविन्द शास्त्री जी के दिशा-निर्देशन में हुआ। विधान कर्ता श्री दिनेश जैन सीमा जैन अर्पित जैन रहे। पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व के पहले दिन रविवार को उत्तम क्षमा के रूप में मनाया गया। शाम को होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम में नृत्य नाटिका का मंचन जैन पाठशाला की ओर से किया जायेगा।

पर्व के दौरान ही 13 सितंबर को सुगंध दशमी, 17 सितंबर को अनंत चतुर्दशी पर श्रीजी की पालकी यात्रा का कार्यक्रम होगा। उसके अगले दिन क्षमावाणी पर्व मनाया जाएगा। जिसमें सभी क्षमा भाव कहकर वर्षभर में हुई गलतियों को लेकर क्षमा याचना करेंगे। सुगंध दशमी पर समाजजन मंदिरों में धूप खेएंगे।

दशलक्षण पर्व के दस दिनों के दौरान जैन धर्म के निम्नलिखित दस सिद्धांतों का पालन किया जाएगा:

  1. उत्तम क्षमा: दूसरों को क्षमा करना और मन में किसी के प्रति द्वेष नहीं रखना।
  2. उत्तम मार्दव: अहंकार से दूर रहना और विनम्रता को अपनाना।
  3. उत्तम आर्जव: सच्चाई का पालन करना और जीवन में ईमानदारी बरतना।
  4. उत्तम सत्य: सत्य बोलना और झूठ से बचना।
  5. उत्तम शौच: आंतरिक और बाहरी शुद्धता का पालन करना।
  6. उत्तम संयम: इंद्रियों पर नियंत्रण रखना और विषय-भोगों से दूर रहना।
  7. उत्तम तप: आत्म संयम और तपस्या का पालन करना।
  8. उत्तम त्याग: सांसारिक वस्तुओं का त्याग करना और मोह-माया से मुक्त रहना।
  9. उत्तम अकिंचन्य: किसी भी वस्तु के प्रति आसक्ति नहीं रखना।
  10. उत्तम ब्रह्मचर्य: ब्रह्मचर्य का पालन करना और शारीरिक इच्छाओं पर नियंत्रण रखना।

इस प्रकार, दशलक्षण पर्व जैन समाज के लिए न केवल धार्मिक, बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाला एक अद्वितीय पर्व है।


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