प्रत्येक देशवासी के लिए वर्तमान समय बहुत ही गंभीर संकट से भरा है, फिर वो चाहे कोई भी हो, किसी भी उम्र का हो, किसी भी धर्म/जाति/सम्प्रदाय का हो, सभी को पूरी सूझ-बूझ के साथ इस घड़ी में संयम और धैर्य का परिचय देकर कोरोना से सावधान रहना है और इससे बचना है क्योंकि जान है तो जहान है। इस आपदा से भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के बड़े-2 देश जूझ रहे हैं। अपने देश में भी प्रधानमंत्री जी ने लॉकडाउन किया है और अति आवश्यक कार्य को छोड़कर घर से बाहर निकलने से मना किया है। इसमें किसका भला है, प्रधानमंत्री जी का या हम सब का, हमें यह सवाल अपने अंतर्मन से गंभीरता से पूछना है। इसलिए एक-एक व्यक्ति इसका दृढ़ता के साथ पालन करे। यही कारण है कि सरकार ने सभी धार्मिक स्थलों पर पाबंदी लगा दी है।
जैन समाज अपने शुद्ध आचरण, अहिंसा, संयम और तप की वजह से देश ही नहीं विदेशों में भी श्रद्धा और संयमी की पहचान के रूप में जाना जाता है। यहां तक कि कई बड़े-बड़े लोग एवं कई विदेशी जैनों की कार्यशैली, विचार एवं संयमी होने का विरला उदाहरण देते हैं। तो हमें भी इस आपदा की घडी में अपने व्यवहार, कार्यशैली से इस बात को पुख्ता करना चाहिए न कि कोई ऐसा कार्य करें, जिससे जैन समाज भी अन्य सम्प्रदाय की तरह न्यूज की सामग्री बने अथवा कोई प्रशासनिक कार्यवाही हो जाए।
अत: हम सभी कुछ दिनों के लिए मंदिर न जाएं बल्कि घर पर ही भावनापूर्ण तरीके से मन से पूजा करें। इसलिए हमारा सभी जैन मंदिर के अध्यक्षों/पुजारियों से अनुरोध है कि वे इस बात का ध्यान रखें। देश के मुनि महाराजों ने भी इस समय मंदिर न जाने की बात कही है और घर पर ही भक्ति-भावना के साथ भगवान की अर्चना करने को कहा है।
परन्तु देखा जा रहा है कि कुछ लोग अपने नियमों को ही सर्वोपरि समझ के मुनि महाराजों की सलाह का भी उलंघन कर रहे है। अगर कोई कोरोना संक्रमित व्यक्ति मंदिर जी में किसी वस्तु को छूता है तो उससे अन्य लोग भी संक्रमित हो सकते है। और हमारा एक गलत कदम हजारों लोगों की जान को खतरे में डाल सकता है व ऐसे में भगवान के दर्शन से उपार्जित पुन्य के स्थान पर हजारों लोगों की हत्या का दोष पहले लगेगा। जैसा कि भगवान महावीर का ही सन्देश है “जियो और जीने दो” तो हमें भी उसी के अनुसार अपनी दैनिक धार्मिक क्रिया अपनाकर एक अहिंसावादी व करुणामयी समाज का उदहारण बनकर अपनी देशभक्ति और धर्म के प्रति अपनी सच्ची आस्था को व्यक्त करना चाहिये।