एक तरफ मौजूदा राजस्थान सरकार अपने शासनकाल के तीन वर्ष पूर्ण होने पर जश्नरत है, वहीं दूसरी ओर मूक वन्यप्राणी नील गायों की हत्या का क्रूर कानून अभी तक भी रद्द नहीं किया गया है। राज्य सरकार का जश्न मनाना तभी सार्थक है, जब प्राकृतिक धरा पर नील गायों को भी अन्य वन्य जीवों की तरह जीवनदान एवं पूर्ण संरक्षण प्राप्त हो। जयपुर रोड स्थित अहिंसा स्थल पर आचार्य श्री विवेक सागर जी महाराज ने जीव दया प्रेमियों के पक्ष में धर्मसमा को संबोधित करते हुए ये बात कही। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद है कि भारी जनाक्रोश और प्रधानमंत्री की ओर से नील गाय हत्य कानून के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र भेजे जाने के बाद भी राजस्थान सरकार ने अभी तक क्रूर कानून को रद्द करने की घोषणा नहीं की है, जिसमें गांव के सरपंचों को नील गाय की हत्या करने की अनुमति दिए जाने का प्रावधान किया गया है।
आचार्यश्री ने कहा कि सफेद एवं नील गाय में कोई अंतर नहीं है। सब प्रकृति की अनुपम सम्पदा हैं। सरकार का कर्तव्य वन्य जीवों की रक्षा करना है, न कि हत्या करवाना। किसी भी विपरीत परिस्थिति में भी मूक वन्य प्राणी की हत्या करवाना किसी समस्या का सकारात्मक समाधान हो ही नहीं सकता। यहां तक कि स्वयं किसान भी किसी जीव की हत्या का पक्षधर नहीं रहा बल्कि वो तो दयालु और दयावान है। जो किसान पूरे देश का पेट भरता है, उससे नील गायों की हत्या करवाना क्रूरता की पराकाष्ठा है। सब धर्म जीव दया के पक्षधर हैं, फिर भी हिंदू संस्कृति का पैरोकार बताने वाली सरकार मीट लाबी के स्वाथरे की पूर्ति के लिए नील गायों की हत्या करवाने पर उतारू है। यह बेहद ही चिंतनीय प्रश्न है।
आचार्यश्री ने अहिंसा एवं दया-करुणा की भावना में विास रखने वाले सभी लोगों के नाम अपने संदेश में कहा कि वे निराश-हताश नहीं हों और नील गायों की प्राण की रक्षा के लिए अपना प्रयास जारी रखें। क्रूर मानसिकता के पक्षधर लोग यदि अहिंसक लोगों की अपील ठुकराते रहे तो एक दिन प्रकृति ही उन्हें सबक जरूर सिखायेगी। जीवन में क्रूरता करने वाले कभी सुखी और खुशहाल नहीं हो सके हैं और न ही कभी होंगे। एक दिन उन्हें पछताना ही पड़ेगा। इस अवसर पर ऐलक श्री विप्रमाणसागर जी, क्षुल्लक श्री अचलसागर जी सहित ब्रह्मचारी हषिर्ता दीदी एवं ब्रह्मचारिणी सरिता दीदी भी मौजूद थीं।