यह हम सभी के लिये गौरव और पुण्य का संयोग है जो हमे ऐसे आचार्य भगवन के दर्शन हुये आज हम उनका 53 वा मुनि दीक्षा दिवस मना रहे है जों अनंत कोटी जन्मो के पुण्य से यह अवसर मिला है।
जो है प्रकाश पुंज वीतराग ज्ञान मे
इंसानियत जगाई तुमने सविधान मे
अवतार महावीर के हो वर्तमान मे
एक नज़र विद्याधर से विद्यासागर जी महाराज कैसे बने
20 वर्ष की उम्र, जो की खाने-पीने, भोगोपभोग या संसारिक आनन्द प्राप्त करने की होती है, तब आप साधु-सत्संगति की भावना को हृदय में धारण कर आचार्य श्री देशभूषण महाराज के पास जयपुर(राज.) पहुँचे। वहाँ अब ब्रह्मचारी विद्याधर उपसर्ग और परीषहों को जीतकर ज्ञान, तपस्या और सेवा का पिण्ड/प्रतीक बन कर जन-जन के मन का प्रेरणा स्त्रोत बन गया था।
आप संसार की असारता, जीवन के रहस्य और साधना के महत्व को पह्चान गये थे। तभी तो हृष्ट-पुष्ट, गोरे चिट्टे, लजीले, युवा विद्याधर की निष्ठा, दृढता और अडिगता के सामने मोह, माया, श्रृंगार आदि घुटने टेक चुके थे। वैराग्य भावना ददृढवती हो चली। अथ पदयात्री और करपात्री बनने की भावना से आप गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी महाराज के पास मदनगंज-किशनगढ(अजमेर) राजस्थान पहुँचे। गुरुवर के निकट सम्पर्क में रहकर लगभग 1 वर्ष तक कठोर साधना से परिपक्व हो कर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के द्वारा राजस्थान की ऐतिहासक नगरी अजमेर में आषाढ शुक्ल पंचमी, वि.सं. 2025, रविवार, 30 जून 1968 ईस्वी को लगभग 22 वर्ष की उम्र में संयम का परिपालन हेतु आपने मत्र पिच्छि-कमन्डलु धारण कर संसार की समस्त बाह्य वस्तुओं का परित्याग कर दिया। परिग्रह से अपरिग्रह, असार से सार की ओर बढने वाली यह यात्रा मानो आपने अंगारों पर चलकर/बढकर पूर्ण की। विषयोन्मुख वृत्ति, उद्दंडता एवं उच्छृंखलता उत्पन्न करने वाली इस युवावस्था में वैराग्य एवं तपस्या का ऐसा अनुपम उदाहरण मिलना कठिन ही है।
मुनि दीक्षा का अजमेर सोनीजी की नसिया इसकी साक्षी
वह पावन दिवस आ गया जब ब्रह्मचारी विधाधर को आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के द्वारा राजस्थान की ऐतिहासक नगरी अजमेर में आषाढ शुक्ल पंचमी, वि.सं. 2025, रविवार, 30 जून 1968 ईस्वी को लगभग 22 वर्ष की उम्र में संयम पथ की और अग्रसर करते हुये सोनी जी की नसिया दीक्षा प्रदान की गयी जैसे ही यह सुकुमाल बालक अपने हाथो से केशो का लोचन करने लगा मोजूद समुदाय के नैनो से अश्रु की धार बहने लगी और झर झर बरसात होने लगी आज वह स्थान दीक्षायतन के नाम से जाना जाता है
गुरु सेवा की अनुठी मिसाल विधासागर जी महाराज
गुरुवर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी की वृद्धावस्था एवं साइटिकासे रुग्ण शरीर की सेवा में कडकडाती शीत हो या तमतमाती धूप, हो या झुलसाती ग्रीष्म की तपन, मुनि श्री विद्यासागर जी महाराज के हाथ गुरुसेवा मे अहर्निश तत्पर रहते। आपकी गुरु सेवा अद्वितीय रही, जो देश, समाज और मानव को दिशा बोध देने वाली थी। तभी तो डॉ. पन्नालाल साहित्याचार्य ने लिखा था कि 10 लाख की सम्पत्ति पाने वाला पुत्र भी जितनी माँ-बाप की सेवा नहीं कर सकता, उतनी तत्परता एवं तन्मयता पूर्वक आपने अपने गुरुवर की सेवा की थी।
जन जन के आराध्य है आचार्य गुरुवर
आचार्य भगवन जन जन के आराध्य है वह स्वयम तो त्याग और साधना की प्रतिमूर्ति है उंनके भीतर प्राणी मात्र के कल्याण की भावना निहिट है अनेक तीर्थों के कायाकल्प अस्पताल गोशाला आदि जनकल्याणकारी कार्य हुये वही गुरुवर ने स्वेदेशी करण पर ज़ोर दिया जिसे खुद देश के प्रधानमंत्री जी ने माना आत्मनिर्भर भारत की बात कही गुरुवर कहते है इंडिया नहीं भारत बोलो तभी इस देश का विकास संभव है
प्यास बुझी न आगर से
बुझ ज्ञान की गागर से
इतने पावन ग्रंथ लिखे है केवल ढ़ाई आखर से
जीवन की नदियो ने जीवन पाया विद्यासागर से
— अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी