मुनि श्री तरुणसागर जी महाराज के चरणों में भावभीनी द्वितीय पुण्य तिथि पर भाव भीनी विनयांजलि


अपने प्रखर चिंतन के कारण शताब्दियों तक जीवंत रहेंगे कार्तिकारी मुनि तरुणसागर जी। भारत ही नहीं, अपितु सारे विश्व को जैनों को ही नहीं, अपितु जन-जन को कड़वे प्रवचनों के माध्यम से एक नई सोच,नया चिंतन सौंपने वाले क्रांतिकारी संत मुनिश्री तरुण सागर जी मुनिराज का  दिल्ली में 1 सितंबर 2018 को प्रातः 3.15 बजे समता पूर्वक समाधिमरण (देवलोक गमन) हो गया था और एक ध्रुवतारा हमें छोड़कर चला गया था। उनकी अंतिम महायात्रा में शामिल श्रद्धालु तो रो ही रहे थे लेकिन जब धरती के एक सूर्य का अवसान हो रहा था तो गगन में स्थित सूर्य भी छिप गया और खूब रोया। दिनभर वारिश होती रही।

क्रांतिकारी संत मुनि श्री तरुण सागर जी  का  विराट, बेमिसाल, अद्भुत व्यक्तित्व था। एक ऐसा तपस्वी जिसने अपने कड़वे वचनों से आम आदमी के जीवन में मिठास घोलने का अथक प्रयास किया।
उनका नाम लिम्का बुक रिकॉर्ड ही नहीं बल्कि गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। दिल्ली के लाल किले से मांस निर्यात के विरोध में अहिंसा महाकुंभ का आयोजन कर उन्होंने जो शंखनाद किया, वह आज भी लोगों के दिलों में है। वह अपने वेबाक विचारों के लिए जाने जाते थे। उनके आयोजनों का प्रसारण 100 से अधिक देशों में होता था। देश-विदेश में उनके करोड़ों अनुयायी थे। वे न केवल जैन समुदाय के बल्कि पूरी भारतीय संस्कृति के अनमोल रत्न थे। उनके जाने से खामोश हो गए हैं कड़वे प्रवचन।

इन्हें 6 फरवरी 2002 को म.प्र. शासन द्वारा’ राजकीय अतिथि ‘ का दर्जा मिला था। 2 मार्च 2003 को गुजरात सरकार  सहित पांच राज्यों की सरकार ने उन्हें ‘राजकीय अतिथि’ के सम्मान से नवाजा। नरेंद्र मोदी जी सहित अनेक दिग्गज राजनेता भी उनके भक्त  थे। ‘तरुण सागर’ ने ‘कड़वे प्रवचन’ के नाम से एक बुक सीरीज स्टार्ट की , जिसके लिए वो काफी चर्चित हुए थे। उन्होंने दिगम्बरत्व को जन-जन तक पहुँचाया।

उनके क्रांतिकारी प्रवचनों को सुनकर लाखों लोग शाकाहारी बने, लाखों लोगों ने शराब, व्यसनों को त्यागकर जीवन की नई दिशा प्राप्त की। तेज आवाज में प्रवचन करने वाले क्रांतिकारी राष्ट्र संघ मुनि श्री तरुण सागर महाराज हमारे बीच नहीं है लेकिन मुनिश्री अपने प्रवचनों के आकाश पर अजर अमर रहेंगे। उन्होंने मध्यप्रदेश और हरियाणा की विधानसभाओं में अपने प्रवचन देकर एक नया इतिहास लिखा था। ऐसे संत शताब्दियों, सहस्त्रों वर्षोँ में होते हैं।

उनके द्वारा भारतीय संस्कृति को दिया गया अवदान हमेशा अविस्मरणीय रहेगा। हम हमेशा उनके आदर्शो, करुणा और समाज के प्रति उनके योगदान को लेकर याद करेंगे। देह से भले ही हमारे बीच न रहे हों परन्तु उनके महान कार्य हमेशा उन्हें जीवंत बनाये रखेंगे। उन्होंने जीवन के अंतिम पलों में अन्य जल, समस्त परिग्रह का त्याग दिया था। सभी के प्रति उत्तम क्षमा का भाव रखा।

जान-जन के संत थे :

जैन संत के दायरे को तोड़कर जन संत बन चुके पूज्य मुनि श्री तरुणसागर जी ने अपनी वाणी और लेखनी दोनों के माध्यम से व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए जो अमृत संदेश दिए हैं, वह इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज किया जाएगा। अपनी क्रांतिकारी विचारधारा और कार्यों के कारण  क्रांतिकारी संत के नाम से विख्यात रहे पूज्य मुनि श्री तरुण सागर जी महाराज ने धर्म व समाज की चहुंमुखी उन्नति के लिए परंपराएं तोड़कर भी अनेक ऐसे कार्य किये जिनके दूरगामी सुखद परिणाम नजर आ रहे है। मुनिश्री अपनी धुन के पक्के माने जाते थे। मुनिश्री विज्ञान और टेक्नोलॉजी के पक्षधर रहे, उन्होनें धर्म, समाज और राष्ट्र के विकास में इसके प्रयोग से किसी प्रकार का गुरेज नहीं किया। यही कारण है कि उन्होंने एक साथ 122 देशों में जैन धर्म के सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार के लिए टीवी चैनल को माध्यम बनाया।

कड़वे बचनों के कुछ चर्चित बोल :

वह जब  हजारों की भीड़ में बोलते थे तो पूरी सभा मंत्रमुग्ध होकर एकटक होकर उनके बचनों को सुनती थी। उनके वचन सुनने वाले को अंदर तक झकझोर देते थे। लाखों लोगों ने उनके प्रवचनों से नई ऊर्जा प्राप्त की।
उनका यह कथन चर्चित रहा कि -“मैं महावीर को मंदिरों से मुक्त करना चाहता हूं, यही कारण है कि मैंने आजकल तुम्हारे मंदिरों में प्रवचन करना बंद कर दिया है। मैं तो शहर के व्यस्ततम चौराहों पर प्रवचन करता हूँ क्योंकि मैं महावीर को चौराहे पर खड़ा देखना चाहता हूं।”

वह अपने कड़वे प्रवचन में हमेशा सभी को झकझोरने वाली वाणी बोलते थे। उनके वचनों की कुछ बाते इस प्रकार हैं-
“जब भी जिंदगी में संकट आता है, तो सहनशक्ति पैदा करो। जो सहता है वही रहता है। जीवन परिवर्तन के लिए सुनने की आदत डालो। सुनना भी एक साधना है। चिंतन बदलो तो सबकुछ बदल जाएगा। इससे रंग नहीं, तो कम से कम जीने का ढंग तो बदल ही सकता है।”

“परिवार के किसी सदस्य को तुम नहीं बदल सकते। तुम अपने आपको बदल सकते हो, यह तुम्हारा जन्मसिद्घ अधिकार भी है। पूरी दुनिया को चमड़े से ढंकना तुम्हारे बस की बात नहीं है। अपने पैरों में जूते पहन लो और निकल पड़ों फिर पूरी दुनिया तुम्हारे लिए चमड़े से ढंकी जैसी ही होगी। मंदिर और सत्संग से घर आओ, तो तुम्हारी पत्नी को लगना चाहिए कि बदले-बदले मेरे सरकार नजर आते हैं।

“भले ही लड़ लेना-झगड़ लेना, पिट जाना – पिट देना, मगर बोल चाल बंद मत करना क्योकि बोलचाल के बंद होते ही सुलह के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं।”
वह कहते थे गाली एक बैरंग चिठ्ठी की तरह है। चूंकि वह बुंदेली माटी के सपूत थे, इसलिये उनके प्रवचनों में बुंदेली पुट भी रहती था। वह अक्सर कहते थे-कव कैसी रई।
वह कहते थे- सुखी जीवन का राज सर्फ इतना सा है कि हम अभाव में नहीं सद्भाव में जिएं अहंकारशून्य, सच्चाई पूर्ण जीवनयापन करें। संतोष जीवन है और तृष्णा मृत्यु है।
मुनि श्री तरुण सागर जी महाराज एक संक्षिप्त परिचय:

बुंदेलखंड के दमोह जिले में जन्में मुनिश्री ने मात्र 13 वर्ष की उम्र में सन्यास और 20 वर्ष की उम्र में मुनि दीक्षा ग्रहण कर 33 वर्ष की उम्र में जिन्होंने दिल्ली के लाल किले से राष्ट्र को संबोधित कर जैन समाज और जैन संतों को दी विश्व स्तर पर एक नई पहचान दी।उनका जन्म 26 जून, 1967 को  हुआ था।
उनका जन्म नाम  पवनकुमार जैन था।जन्म स्थान:दमोह जिले (म.प्र.) के गुहंची गांव में।
इनकी माता का नाम श्रीमती शांतिबाई जैन और पिता का नाम श्री प्रतापचंद्र जैन था।
इनकी क्षुल्लक दीक्षा 18 जनवरी, 1982 को
अकलतरा (म.प्र.)में हुई थी। मुनि दीक्षा 20 जुलाई , 1988 को बागीदौरा (राज.) में हुई।
मुनि दीक्षा गुरू परम पूज्य  आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज हैं।

विशेष :
13 वर्ष की उम्र में संन्यास, 20 वर्ष में दिगम्बर मुनि दीक्षा। 33 वर्ष में लाल किले से राष्ट्र को संबोधन। 35 वर्ष में ‘राष्ट्रसंत’ की पदवी से नवाजे गए। 37 वर्ष में ‘गुरु मंत्र दीक्षा’ देने की नई परंपरा की शुरुआत।
साहित्य सृजन : 3 दर्जन से अधिक पुस्तकें उपलब्ध और उनकी अब तक 15 लाख से अधिक प्रतियॉं बिक चुकी हैं। उनकी कड़वे प्रवचन के अलावा अन्य कृतियों के पाठक भी लाखों की संख्या में हैं, जिनमें उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं- दुःख से मुक्ति कैसे मिले, क्रोध को कैसे जीतें, प्रेस वार्ताएं, चपलमन, मन को कैसे जिएं, जीवन क्रांति का सूत्र-मृत्यु बोध, मैं सीखने नहीं जगाने आया हूँ, मैं तुम्हें टेर रहा,अहिंसा महाकुम्भ आदि प्रमुख हैं।
कीर्तिमान :आचार्य कुन्दकुन्द के पश्चात् गत दो हजार वर्षों के इतिहास में मात्र 13 वर्ष की उम्र में जैन संन्यास धारण करनेवाले प्रथम योगी। राष्ट्र के प्रथम मुनि जिन्होंने लाल किले (दिल्ली) से संबोधा। जी. टीवी के माध्यम से भारत सहित 122 देशों में ‘ महावीर वाणी’ के विश्वव्यापी प्रसारण की ऐतिहासिक शुरुवात करने का प्रथम श्रेय। भारतीय सेना को संबोधित करनेवाले देश के पहले संत। आजादी के बाद प्रथम बार राजभवन (बैंगलोर)में अतिविशिष्ट लोगों को सम्बोधन। उन्होंने इतनी अल्पायु में जो इतिहास रचा है वह हमेशा जीवंत रहेगा। उनके वचन हमेशा लोगों को दिशा बोध देते रहेंगे। महज 51 साल की आयु में वह चले गए लेकिन वह अपने चिंतन के कारण शताब्दियों तक बने रहेंगे।

— डॉ. सुनील जैन संचय


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