गाजियाबाद, 23 अप्रैल 2025 — प्राकृत भाषा एवं जैन दर्शन के गूढ़ तत्वों को संरक्षित करने की दिशा में एक विशिष्ट पहल करते हुए परम पूज्य प्राकृत मर्मज्ञ मुनि श्री 108 प्रणम्य सागर जी महाराज द्वारा प्राकृत भाषा में रचित “बारह भावना“ का प्राकृत अर्थ सहित लेखन हिंडन नदी तट स्थित शमशान घाट, गाजियाबाद में सम्पन्न हुआ।
यह पवित्र ग्रंथ लेखन कार्य श्रावक अन्तरप्पा प्रद्युम्न जैन द्वारा अत्यंत श्रद्धा और समर्पण के साथ किया गया। यह स्थल — शमशान घाट — नश्वरता, वैराग्य और आत्मचिंतन का प्रतीक होते हुए, “बारह भावना” जैसे वैराग्य प्रधान ग्रंथ के लेखन हेतु अत्यंत उपयुक्त और अर्थपूर्ण स्थान सिद्ध हुआ।
“बारह भावना”, जैन धर्म के आत्मिक विकास एवं सम्यक दृष्टि की आधारशिला मानी जाती है। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज ने इसे प्राकृत भाषा में रच कर न केवल भाषाई धरोहर को पुनर्जीवित किया, बल्कि वर्तमान पीढ़ी को मूल स्रोत से धर्म के मर्म तक पहुँचने का माध्यम भी प्रदान किया।
इस अवसर पर उपस्थित श्रद्धालुओं एवं विद्वानों ने इस अनुपम पहल की हृदय से सराहना की और इसे जैन परंपरा के लिए एक ऐतिहासिक क्षण बताया। कार्यक्रम के माध्यम से यह संदेश भी दिया गया कि जीवन की क्षणभंगुरता को समझते हुए आत्मकल्याण की ओर अग्रसर होना ही सच्चा धर्म है।