सच्चा त्याग, तपस्या और सहनशीलता को देखना है तो जैन धर्म के संतों/आर्यिकाओं की दिनचर्या को देखें तब पता चलता है कि बाकई में त्याग, तपस्या और सहनशीलता होती क्या है? ऐसी ही त्याग, तपस्या और सहनशीलता की प्रतिमूर्ति आचार्य विद्यासागर जी की आज्ञानुवर्ती आर्यिका श्रेष्ठ विज्ञानमती माता जी हैं। जहां हम लोग तपती धूप में बाहर जाने से बचते हैं वहीं वीना बारहा से तपती धूप और विकट गर्मी में लगभग 900 किमी पैदल चलकर जैन धर्म के प्रमुख क्षेत्र हस्तिनापुर पहुंची।
बता दें कि विज्ञानमती माता जी बीना बारहा से चलकर विभिन्न अंचलों में होती हुई मथुरा से हस्तिनापुर में मंगल प्रवेश किया। माताजी के विहार के दौरान एक दिन पूर्ण अंतराय (24 घंटे पानी/भोजन का त्याग) उसके बाद अगले दिन चतुर्थी का उपवास होने के बावजूद भी वे रुकी नहीं बल्कि विहाररत रहीं। ऐसी परीषह सहने वाली परम पूज्य आर्यिका मां विज्ञानमती माता जी सच्ची तपस्या के बल पर मोक्ष मार्ग के पथ पर अग्रसर हैं। धन्य हैं ऐसी आर्यिका माता जी।