जब तीनों छोटे भाई विद्याधर, अनंतनाथ और शांतिनाथ घर छोड़ कर दीक्षा लेकर संयम के पथ पर आगे बढ़ गए तो पीछे से वे महावीर भैया अष्टगे ही थे, जिन्होंने पूरे परिवार को संभालने का काम किया। पूरे परिवार को ऐसे संस्कारों से भरा कि तीनों भाई के जाने के बाद भी धर्म की गंगा परिवार में निरंतर बहती रही..!! और स्वयं भी सदैव चिन्तन, मनन, साधना के साथ ग्रहस्थ जीवन के दायित्वों का निर्वाह करते रहे।
कर्नाटक प्रांत के बेलगांव जिले के सदलगा ग्राम में रहने वाले मलप्पा अष्टगे के चार पुत्र और दो पुत्रियों में आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज दूसरे नम्बर के पुत्र हैं। 10 अक्टूबर 1946 को जन्मे आचार्यश्री (ग्रहस्थ अवस्था का नाम विद्याधर) ने 1968 में आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज से अजमेर नगर में मुनि दीक्षा ली थी। उनके दीक्षा लेने के बाद पूरे परिवार में ही वैराग्य का ऐसा माहौल बना कि परिवार के सदस्य एक एक करके घर का त्याग करते गये।
आचार्यश्री की मां श्रीमती जी और पिता मलप्पा जी ने आचार्यश्री धर्मसागर जी महाराज से मुनि व आर्यिका दीक्षा ग्रहण की और सल्लेखना पूर्वक समाधि मरण कर अपने जीवन का कल्याण किया था। आचार्यश्री के दोनों छोटे भाइयों ने घर का त्यागकर आचार्यश्री से मुनि दीक्षा ली है। दोनों भाई मुनिश्री समय सागर जी और मुनिश्री योग सागर जी के रूप कठोर साधना कर रहे हैं। आचार्यश्री की दोनों बहनें शांताजी व स्वर्णा जी ने घर का त्यागकर कर ब्रह्मचर्य व्रत लिया है। दोनों बहनें इंदौर के त्यागीव्रती आश्रम में रहकर साधना कर रही हैं।
आचार्यश्री के सदलगा स्थित घर में उनके बड़े भाई महावीर प्रसाद अष्टगे अकेले बचे थे। उन्होंने विवाह कर वंश परम्परा को आगे बढ़ाया। लेकिन जीवन की अंतिम संध्या में घर की दीवारें उन्हें रोक नहीं पाईं। 79 वर्ष की उम्र में परिवार की सारी जिम्मेदारियां पूरी कर महावीर प्रसाद जी ने भी जैन मुनि बनने का मन बना लिया था। बीते दो वर्ष से वे मुनि जैसी चर्या करने लगे थे।
आचार्य भगवन ने भी अपने इन बड़े भ्राता को खूब परखा, पहले 7 प्रतिमा के व्रत दिए..और जब देख लिया कि ये राही इतने भर से मानने वाला नही है..तो आज अपने कर कमलों से दीक्षा देकर पिच्छिका प्रदान कर दी..नाम रखा मुनि उत्कृष्ट सागर ..!!
बुधवार को महाराष्ट्र प्रांत के वाशिम जिले के जैन तीर्थ शिरपुर में आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ने एक भव्य समारोह में अपने बड़े भाई को मंत्रोच्चारण के साथ मुनि दीक्षा दे दी। विशाल जनसमूह की उपस्थिति में जैसे ही महावीर प्रसाद जी ने अपने वस्त्रों को उतार फेंका पूरा पांडाल जयकारों से गूंज उठा। जैनधर्म के एतिहासिक में नया पन्ना भी जुड़ गया जब एक ही परिवार के माता पिता और सभी छह बच्चों ने जैन दीक्षा लेकर अनुपम उदाहरण पेश किया है।
— रवीन्द्र जैन