आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ ललितपुर से विहार करते हुए देवगढ़ पहुंचे और वहां से मुंगावली जाना था। देवगढ़ से मुंगावली की दूरी 48 किमी और एक वैकल्पिक मार्ग से 28 किमी दूरी है। आचार्यश्री ससंघ के विहार व्यवस्थापक ने आसान (छोटा) रास्ता खोजा कि जिससे जल्द पहुंचा जा सके किंतु उनकी लापरवाहीवश आचार्यश्री एवं ससंघ को विहार करते समय बहुत कठिनाई और दिक्कतों का सामना करना पड़ गया।
आचार्यश्री तो सहनशीलता की मूर्ति हैं इसलिए उन्होंने तो सब कुछ चुपचाप सहन कर लिया किंतु उनके साथ अन्य नए 10 संतों के तलबों में छाले पड़ गये। इस सबके बावजूद भी आचार्यश्री एवं ससंघ रास्ते से वापस नहीं मुढ़े बल्कि उसी रास्ते पर आगे बढ़ते गये। मुंगावली निवासी रुपेश जैन ने बताया कि व्यवस्थापकों से कहा गया था कि मुंगावली जाने के लिए जो भी नजदीक रास्ता हो, उसकी जानकारी पता कर बताएं।
व्यवस्थापक अपने वाहनों से छोटा रास्ते का पता करने निकल पड़े। उन्होंने लगभग 20 किमी छोटा रास्ता ढूंढ लिया किंतु उन्होंने रास्ते के पथरीले पत्थर, कांटे और ऊबड-खाबड़ रास्तों के अलावा बीच में पड़ने वाली एक नदी को नदरअंजाद कर दिया और इसी रास्ते से आचार्यश्री एवं ससंघ को विहार के लिए ले चले। इस 28 किमी के कठिन एवं पथरीले रास्ते पर चलकर आचार्यश्री ससंघ विहार करते हुए नदी के तट तक पहुंच गये और वहां से एक नाव द्वारा नदी को पार किया। इस रास्ते को जो लोग देखने आये थे वे सभी अपने वाहन से निचे उतरे ही नहीं, यदि उतरे होते तो वे ये रास्ता विहार के लिए नहीं तय करते बल्कि 20 किमी लंबा किंतु आसान रास्ता ही आचार्यश्री ससंघ के विहार के लिए चुनते।