रतलाम। जेल में आदतों को बदलने का जो अवसर मिला है, उसका लाभ लेकर सभी कृष्ण बनकर ही जेल से बाहर निकलें। सभी कैदी बुरी आदतें और आचरण को छोड़, अच्छी संगत को अपनाएं ताकि आगे का जीवन सुधर सके।यह बात राष्ट्रसंत, भारत गौरव आचार्यश्री पुलक सागर जी महाराज ने कही। सर्किल जेल में कैदियों के बीच आचार्यश्री ने कहा कई डाकू, संत के सत्संग से जीवन को सफल कर गए। ये संगति का असर था।
जेल प्रवास को सजा मत समझो, तुम्हें जेल में अपराध का प्रायश्चित करने भेजा गया है। जेल एक सुधारालय है। यहां जीवन को आनंदमय बनाओ, भगवान का नाम लो, पांचों समय की नमाज अदा करो, राम का नाम जापो और परमात्मा को याद करो। आचार्यश्री ने कहा कि श्रद्धा से जेल को भी मंदिर बनाया जा सकता है। तुम्हारे जीवन में जो हो गया, सो हो गया। ईश्वर की अदालत जो सजा देती है, वह दिखाई नहीं देती। जेल में तुमको ऊपर वाले ने ही भेजा है, इसलिए यहां रहकर अपने सारे कर्मों का प्रायश्चित कर लो, तो भविष्य में ऊपरवाले की अदालत में जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
उन्होंने कहा तुम जेल में बंद हो और परिवार बाहर सजा भुगत रहे होंगे। समाज में बैठकर सजा भुगतना कम नहीं होता। उन्होंने कहा इंसान गलतियों का पुतला होता है। संत रबर की तरह होते हैं, जो दूसरों की गलतियों को मिटा दिया करते हैं। गलतियां महापुरुषों से भी होती हैं। कैकई और युधिष्ठिर से भी गलतियां हुई थीं। माता-पिता और परमात्मा हमेशा कमजोर बच्चों के साथ होते हैं और उनका ध्यान रखते हैं। तुम्हारे साथ परमात्मा है, अतः आचरण सुधारकर जीवन को सफल बनाओ।
आईएस अवसर पर आईएस कलेक्टर रुचिका चौहान ने कहा कि जेल में निरुद्ध कैदियों को जेल से बाहर निकलने के बाद अच्छा जीवन मिले, वह रोजगार मूलक कार्य कर सकें, इसके लिए प्रशासन द्वारा कैदियों को विभिन्न रोजगारमूलक प्रशिक्षण प्रदान करने के प्रयास किए जा रहे हैं। जेलर आरआर डांगी, उप जेलर वी बी प्रसाद, आचार्यश्री पुलक सागर सेवा समिति के संरक्षक चंद्रप्रकाश पांडे, अध्यक्ष राजेश जैन, सचिव अभय जैन, कमलेश पापरीवाल, मांगीलाल जैन, ओम अग्रवाल, सहित सकल दिगंबर जैन समाज मौजूद था।
— अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी