चुरू में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के ग्याहरवें आचार्य महाश्रमण जी ने श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र के द्वारा पावन प्रेरणा देते हुए कहा कि अंतक्रिया सभी दुखों से मुक्त कराने वाली होती है। कर्म क्षय की अंतिम क्रिया होती है। संसार में प्राणी दुखों से डरता है। व्यक्ति दुख से बचने का भी प्रयास करता है। जब तक व्यक्ति के अंदर कषाय, तृष्णा और विकार होता है, व्यक्ति को दुख से मुक्ति नहीं मिल सकती है। ये ही वो तत्व हैं जो दुख का कारण हैं।
व्यक्ति को संसार में रहते हुए भी संसार से अनासक्त रहने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार कमल पानी में रहते हुए भी पानी से निरलेप रहता है, उसी प्रकार व्यक्ति संसार में रहते हुए अनासक्त रहने का प्रयास करे। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी अपनी आत्मा को निर्मल और पावन बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए, तभी मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।