राजस्थान के बीकानेर नगर में कोकरों के चौक में आयोजित दीक्षा समारोह में पं. प्यास प्रवर श्री पुंडरीक रत्नविजय महाराज द्वारा 20 वर्षीय हर्षित एवं 40 वर्षीय इला को दीक्षा प्रदान कर नामकरण किया गया। दीक्षा ग्रहण करने के बाद हर्षित महाशालविजय जी एवं इला अर्हम गुणाजी नाम से जाने जाएंगे। दीक्षा समारोह में संबोधित करते हुए आगम प्रज्ञ सुरु देव जम्बू विजय जी महाराज के शिष्य श्री पुंडरीक रत्नविजय जी महाराज ने कहा कि पंचमकाल में जो साधु-संत बने वो महान हैं। साधु-संत किसी से कम नहीं होता है। व्यक्ति मेहनत कर धन, पद और सम्मान तो अर्जित कर सकता है, यहां तक कि वह राजा,महाराजा या सम्राट तक बन सकता है किंतु धर्म के मार्ग पर चले तो भगवान बन सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि दीक्षार्थी कर्मा से युद्ध की राह पर चल पड़े हैं। राग-द्वेष पर विजय पाने का संकल्प लेकर साधु मार्ग के लिए दीक्षा ले रहे हैं। दीक्षार्थी हर्षित एवं इला बेन के रजोहरण संस्कार के बाद दीक्षार्थियों ने परमात्मा की अंतिम द्रव्य पूजा की तथा भविष्य में भाव-पूजा करने का आदेश महाराज जी ने दिया। दीक्षार्थी नाचते-गाते हुए महाराजश्री द्वारा दिये ओधे को ग्रहण कर अपने आभूषणों का त्याग किया। उसके बाद उनकी केशलुंन विधि एवं साधु वेश में आने के बाद कार्यक्रम का माहौल मार्मिकता में तब्दील हो गया। दीक्षार्थी दीक्षा से पहले अपने माता-पिता एवं रिश्तेदारों का अभिनंदन कर रहे थे वहीं केशलुंचन एवं साधु वेश में आने के बाद सभी लोग दीक्षार्थियों का अभिनंदन एवं चरण स्पर्श कर रहे थे।
उपस्थितजनों ने नये दीक्षार्थियों के जय-जयकारे के साथ अभिनंदन किया। पुंडरीक रत्नविजय जी महाराज ने दोनों दीक्षार्थियों को हित सीख देते हुए मन, वच, काया के व्यापार का त्याग एवं किसी अन्य से भी नहीं करवाने की सीख देते हुए धर्म के मार्ग पर चलने का निर्देश दिया। कार्यक्रम के अध्यक्ष विधायक गोपाल जोशी तथा विशिष्ट अतिथि महापौर नारायण चौपड़ा, पूर्व मंत्री डा. बीडी कल्ला तथा लूणकरणसर विधायक मानिक चंद्र सुराना, वल्लभ कोचर, जिन दान कोचर, शांतिलाल सेठिया, माणिक चंद्र कोचर, निहाल चंद्र कोचर, सुरेंद्र कोचर, शिखर चंद्र नाहटा तथा सुरेा जैन सहित श्री जैन ेताम्बर सकल श्री संघ सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण मौजूद थे।