अपना देश विभिन्न धर्म, विभिन्न संप्रदाय एवं विभिन्न संस्कृतियों सहित विभिन्न रीति-रिवाजों को अपने में समेटे हुए है। यही कारण है कि भारत पर्व और त्यौहारों का देश है। किसी भी पर्व/त्यौहार का अपना महत्व होता है, जिसमें खुशियां और मौज-मस्ती तथा भौतिक आकषर्ण पूर्णरुपेण निहित रहता है किंतु पर्यूषण (दशलक्षण पर्व) पर्व ऐसा पर्व है, जिसमें आत्म साधना, त्याग और उपवास द्वारा आत्मा की शुद्धि की जाती है। इसलिए यह पर्व नहीं बल्कि महापर्व है।
जैन धर्म में पयरूषण पर्व वर्ष में तीन बार माघ, चैत्र एवं भाद्रपक्ष में आते हैं, जो शुक्लपक्ष की पंचमी से चौदस तक चलते हैं। पयरूषण पर्व दस दिनों के होते हैं, जिसमें भौतिकता भरे जीवन में रह रहा व्यक्ति गंदगी अथवा दोषों को दसदिनी साधना से सोई हुई अंतच्रेतना को जागृत करता है। यही कारण है कि पयरूषण पर्व मौज-मस्ती, खाने-पीने का पर्व नहीं अपितु त्याग, साधना एवं उपासना का महापर्व है।
यह पर्व जैन एकता का प्रतीक है। इस दसदिनी पर्व में सम्पूर्ण जैन समाज जागृत एवं साधनारत हो जाता है। पयूषर्ण पर्व में दसधर्मी शिक्षा का अनुसरण किया जाता है, जिसमें क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप एवं त्याग, अंकिचन एवं ब्रह्मचर्य पर आत्म साधना की जाती है। इसकी शुरूआत क्षमा यानी समता से होती है। क्षमा जीवन में अतिमहत्वपूर्ण है क्योंकि जब तक व्यक्ति के आचरण में क्षमा का भाव नहीं होगा तब तक व्यक्ति आध्यात्म के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता।
पूरे विश्व में यही एक मात्र ऐसा पर्व है, जिसमें व्यक्ति अपनी सोई चेतना को जगाने, आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार, सर्वधर्म समभाव के रस में आत्मरत हो, व्यक्ति आत्मार्थी बनता है साथ ही अलौकिक एवं आध्यात्मिक आनदं के शिखर का आरोहण करता हुआ मोक्षगामी होने का सद्प्रयास करते हुए कषाय का शमन करता है। क्योंकि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि की प्राप्ति में ज्ञान एवं भक्ति के साथ-साथ सदभावना का होना भी अनिवार्य है। ये पर्व मानव मात्र के प्रति सम्मान और आदर की भावना तो पैदा करता ही है साथ ही स्वयं के साक्षात्कार का अलौकिक अवसर भी देता है। धर्म के ये ही दस लक्षण हैं, जो पयरूषण पर्व के रूप में आकर न केवल जैनों को, अपितु समूचे प्राणी जगत को सुख-शांति का संदेश देते हैं।
सही मायने में पयरूषण पर्व सोये हुए व्यक्ति को जगाने का है, जो सोये हुए को जागृत अवस्था में ले जाता है, अज्ञानरूपी अंधकार से ज्ञानरूपी प्रकाश की ओर ले जाता है, गलत काम करने से रोकता है। पयरूषण पर्व के दौरान विशेष तप, जप, स्वाध्याय करते हुए स्वयं को सुवासित रखते हुए अंतरआत्मा में लीन होकर आत्मशोधन करते हैं। ये पर्व मन की खिड़कियां एवं दरवाजे खोलने का पर्व है। वर्तमान की भौतिकता से पूर्ण चकाचौंध भरी जिंदगी में इस पर्व की महत्ता एवं प्रासंगिकता को बताये रखना अति जरूरी है। इसके लिए धर्म से जुड़े प्रत्येक व्यक्तिफर्ज और दायित्व है कि वह इस पर्व की विशेषता एवं इसके महत्व के बारे में खासकर युवा पीढ़ी को अवगत कराएं ताकि वे सामायिक, मौन, जप, ध्यान, स्वाध्याय, आहार संयम, इंद्रिय निग्रह, जीवदया आदि के माध्यम से आत्मचेतना को जगाने वाले इस पर्व से लाभान्वित हों और जन-जन के सन्मुख एक आदर्श प्रस्तुत करें।
- निशेष जैन