भगवान महावीर जैन धर्म के वर्तमानकालीन 24वें तीर्थंकर हैं। महावीर स्वामी ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या को निर्वाण अर्थात् मोक्ष प्राप्त किया था। जैन परंपरा में दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। जहां कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन भगवान महावीर ने मोक्ष को प्राप्त किया था वहीं इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रमुख शिष्य, गणधर गौतम स्वामी को केवलज्ञान की प्राप्ति हुयी थी।
जैनधर्म में मोक्ष लक्ष्मी का अर्थ होता है केवलज्ञान, इसलिए प्रातःकाल जैन मंदिरों में निर्वाण लाडू चढ़ाकर भगवान महावीर का निर्वाण उत्सव पूरी श्रद्धा, आस्था के भारी उत्साह से मनाते हैं । इसी दिवस शुभ-बेला में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के प्रथम प्रमुख गणधर गौतम स्वामी को केवल लक्ष्मी की प्राप्ति हुई, जिसके उल्लास में ज्ञान के प्रतीक निर्मल प्रकाश से समस्त लोक को प्रकाशित करती हुई दीप मालिकायें प्रज्जवलित कर भव्य दिव्य-उत्सव मनाया जाता है।
जैन परंपरा में दीपावली अहिंसा के अवतार भगवान महावीर स्वामी को मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति और गौतम गणधर को केवलज्ञान की सरस्वती की प्राप्ति के उपलक्ष्य में मनाने की अति-प्राचीन परंपरा है। जैन परंपरा में लक्ष्मी पूजा के नाम पर रूपए-पैसों की पूजा स्वीकार नहीं है। जैनधर्म में धन-यश तथा वैभव लक्ष्मी के बजाय वैराग्य लक्ष्मी प्राप्ति पर बल दिया गया है।
जैनधर्म के लिए यह महापर्व विशेष रूप से त्याग और तपस्या के तौर पर मनाया जाता है। इसलिए इस दिन जैन धर्मावलंबी भगवान महावीर की विशेष पूजा करके दीपावली के दिन निर्वाण लाडू चढाकर स्वयं उन जैसा बनने की भावना भाते हैं। दिवाली यानि महावीर के निर्वाणोत्सव वाले दिन पूरे देश के जैन मंदिरों में विशेष पूजा, निर्वाण लाडू महोत्सव का आयोजन भव्य रूप में किया जाता है। गोधूलि बेला में अपने-अपने घरों में महावीर भगवान की विशेष पूजन के साथ दीप जलाते हैं।
दीपावली जैसा महान पर्व आज अनेक विसंगतियो से घिर चुका है और दिनों-दिन इसमें वृद्धि होती नजर आ रही है। समाधान तो कहीं से भी देखने को नहीं मिल रहा है। दीपावली पर्व पर अब आत्म लक्ष्मी की जगह बाहरी लक्ष्मी की पूजन को अधिक महत्व हमारी समाज में देखने को मिल रहा है, यह दीपावली पर्व के सौदर्य को विद्रूप कर रहा है।
लक्ष्मी की पूजन, बही खातों की पूजन आदि क्या दर्शाता है? कितने लोग हैं जो इस दिन मंदिर जी में जाकर भगवान महावीर स्वामी का विधिवत अभिषेक पूजन करते हैं? कितने लोग हैं जो अपने घर पर भगवान महावीर स्वामी की जैन परंपरा अनुसार पूजन करते हैं? कितने लोग हैं जो दीपावली पर्व पर पटाखों आदि में धन का अपव्यय न कर जरूरत मंदों की सहायता करते हैं? कितने लोग हैं जो इस दिन उनके घर भी जाकर उजेला करने का प्रयास करते हैं जिनका जीवन अंधकारमय है? आज हम स्वार्थी और मतलबी हो गये हैं।
क्या इस दीपावली हम उक्त अनुत्तरित प्रश्नों का हल देने में अपने आपको समर्थ बना पायेंगे। यदि हम ऐसा कर सके तो सही अर्थों मेें दीपावली पर्व मनाने की सार्थकता सिद्ध कर पायेगे और सच्चे अर्थों में हम भगवान महावीर के सच्चे अनुयायी होने का हक पा पायेगे। दीपावली का यह पावन पर्व सभी के जीवन में एक नयी रोशनी लेकर आये हम यही कामना करते हैं।
जिस तरह से वर्तमान में दीपावली पर्व पर हमारी समाज में लक्ष्मी पूजन, गणेश पूजन, बही-खातों की पूजन की प्रवृत्ति बढ रही है, यह हमारे लिए घातक है। यह सब बंद होना चाहिए, लेकिन इसके लिए जागरूकता की जरूरत है।
दीपमालिकायें केवलज्ञान की प्रतीक हैं। सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो, अंधकार का नाश हो, इस भावना से दीपमालायें जलाने की परंपरा रही है। दीपावली के पूर्व कार्तिक त्रयोदशी के दिन भगवान महावीर ने बाह्य समवसरण लक्ष्मी का त्याग कर मन-वचन-काय का निरोध किया। वीर प्रभु के योगों के निरोध से त्रयोदशी धन्य हो उठी, इसीलिए यह तिथि ‘धन्य -तेरस’ के नाम से विख्यात हुई, इसे आज अधिकांश लोग ‘धन-तेरस’ के रूप में जानते हैं।
हम सभी रूढ़ियों, कुरीतियों और भ्रम से उस पार जाकर सत्य की पहचान करें और सत्य के प्रकाश से अपने को प्रकाशित करें। तभी महावीर स्वामी का निर्वाण महोत्सव, गौतम गणधर का केवलज्ञान कल्याणक सार्थक होगा तथा हम सभी के द्वारा की जाने वाली पूजन, भक्ति, अभिषेक, शांतिधारा, अर्चना भी सफल होगी। यह पर्व हमें प्रेरणा देता है कि हम बाहरी प्रकाश के साथ-साथ अंतःकरण प्रकाशित करें। अपने आचरण, व्यवहार, वात्सल्य, सहकार सौहार्द को परस्पर में बांटकर स्व-पर जीवन को भी मधुर बनाएं। प्रेम, करूणा, भाईचारे के दीपक जलाकर सभी में अपनत्व का संचार करें।
आज इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हमें भगवान महावीर के उपदेशों पर चलते हुए भ्रष्टाचार मिटाने की कोशिश करनी चाहिए तथा सत्य व अहिंसा का मार्ग चुनकर दीपावली पर पटाखों, आतिशबाजी का त्याग करके जीव-जंतुओं, प्राणियों तथा पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए। यदि हम यह कर सके तो सही मायनों में भगवान महावीर के निर्वाणोत्सव मनाने की सार्थकता सिद्ध कर सकेंगे।
दीपावली महापर्व अहिंसा का पर्व है, इसे हिंसा का रूप न दें। पटाखे फोड़कर अहिंसा धर्म -धन का दुरूपयोग न करें। साथ ही प्राणी मात्र को अभयदान देकर अपने वात्सल्य, संवेदनशीलता के परिचय द्वारा सभी जीवों से अपनत्व एवं मैत्री स्थापित करें। दिवाली की आतिशबाजी हमारे वातावरण और खुद हमारे लिए हर तरह से खतरा है, पर्यावरण की बहस से अलग भी इससे बचना जरूरी है।
आज चारों ओर का वातावरण भयावह है और हरेक व्यक्ति आगे बढने की होड में अपनों को ही पछाडना चाहता है। केवल मैं ही सबकुछ हूं, वाकी कुछ नहीं। नाम, पद की चाहत ने लोगों को इतना गिरा दिया है कि अगर किसी की खीची हुयी लाइन को मिटाना पडे़ तो इससे भी उन्हें गुरेज नहीं है। आज तोड़ने की जो प्रवृत्ति घर कर रही है निःसंदेह यह घातक है।
तोड़ने का कार्य तो सभी कर सकते हैं
महान वो है जो जोड़ने का काम करते हैै।।
आचरण निष्ठता कहीं गुम होती जा रही है। अपने अल्प ज्ञान पर लोग इतराने लगते हैं। दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति खूब बढ रही है। अपनी सोच के साथ सभी को चलाना चाहते हैं। यदि जो नहीं चला वह धोखेबाज, बेईमान, समाज का दुश्मन आदि न जाने क्या क्या हो जाता है। ऐसे विघ्नसंतोषी सभी संस्थाओं को भी अपने इशारों पर नचाना चाहते हैं। जिनने बात नहीं मानी वे भ्रष्ट और समाज के लिए अहितकारी हो जाती हैं। उस छिपकली की तरह ऐसे लोग होते हैं कि दीवार से वह हट गयी तो दीवार गिर जायेगी या उस जुगनू की तरह जो सोचती है कि यदि मैं चमकूं नहीं तो दुनियां में अंधेरा हो जायेगा, कूंप मण्डूप विचारधारा में जीने वाले ऐसे लोगों को समाजहित नहीं स्व-हित ज्यादा नजर आता है।
तिगड़म भिड़ाने में माहिर ऐसे तुच्छ बुद्धि के लोग दूसरे की बढ़ती लोकप्रियता से जल-भुन जाते हैं। बड़ी-बड़ी लंबी फेकने वाले ऐसे तथाकथित कभी कुछ करते नहीं जो करते हैं उनके कार्यों में जरूर टांग अड़ायेंगे। भगवान महावीर ने कहा था कि जो व्यवहार स्वयं को अच्छा न लगे वह व्यवहार किसी दूसरे के साथ भी न करें। पर कुछ तथाकथित मात्र दूसरों की ही कमियां पर टकटकी लगाये रहते हैं, खुद कभी अपने अंदर झांकने का प्रयास नहीं करते। अपने मुंह मिट्ठू मियां भी ऐसे ही लोग बनते देखे जाते हैं।
व्यभिचार, अनाचार निरंतर वृद्धिगंत हो रहा है, अपने आपको धर्मज्ञ, ज्ञानी समझने वाले भी इससे नहीं बच पा रहे हैं। विडम्बना तो देखो, जिनका खुद का व्यक्तित्व कटघरे में हैं वह व्यक्तित्व विकास के गुर सिखा रहे हैं। आखिर हम कहां जा रहे हैं? आज महाभ्रष्टाचारी, रिश्वतखोरी, आतंकवादी क्रियाशील हैं। इनकी करतूत और कारनामों से अतीत के सारे आतंक कमतर नजर आते हैं।
हम किसी का सहयोग नहीं कर सकते तो कम से कम इतना तो कर ही सकते है कि हम किसी की प्रगति में बाधक तो नहीं बनें! आज न जाने हम किस तरफ अंधी दौड में दौड़ रहे हैं? इस दीपावली हम संकल्प ले कि हम अपनों के सहयोगी बनकर उन्हें भी अपने जीवन को एक सुखद जीवन जीने का अवसर प्रदान करें।
‘‘वक्त कभी बेवफा नहीं होता, हर आदमी दिल का बुरा नहीं होता।
जो दूसरों को कहते रहते हैं बुरा, उन्हें खुद के सच का पता नहीं होता।।’’
जीवन एवं समाज के इस अवसाद और अंधेरे को सदा-सर्वदा के लिए दूर करने के लिए दीपक के सच की अनुभूति का गहरा अनुभव आवश्यक है। दीपावली पर दीपक जलाते समय दीपक के सच को समझना आवश्यक है। अन्यथा दीपावली की प्रकाशपूर्ण रात्रि के पश्चात् केवल बुझे हुए मिट्टी दीपक हाथों में रह जाएंगे, आकाशीय अमृत-आलोक खो जाएगा।
जिस दिन मानव के अंतर को दीपोत्सव पर्व की एक कोमल, जगमगाती रोशनी छू लेगी, उसी दिन से जीवन की कुहासा-निराशा छंटने लगेगी और जीवन आलोक का नया प्रतीक, पर्याय बन जाएगा। इस आलोक में ही जीवन का लक्ष्य दृष्टिगोचर हो सकता है और इस लक्षित लक्ष्य का सघन मर्म समझ में आ सकता है।
दीप जलते रहें, मन से मन मिलते रहें, गिले सिकबे सारे दिल से निकलते रहें।
सारे विश्व में सुख शांति की प्रभात ले आये, ये दीपों का पर्व, खुशी की सौगात ले आये।।
-डाॅ. सुनील जैन ‘संचय’