जैन धर्म भारत का एक अत्यंत प्राचीन धर्म है जिसे श्रमण परंपरा के नाम से जाना जाता है | जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर ने संसार के सभी मनुष्यों को जीवन जीने की कला सिखलाई | उन्होंने सिखाया कि संसार में किस तरह रहना चाहिए ताकि मानव ही नहीं बल्कि जीव मात्र का कल्याण हो सके | प्रत्येक मनुष्य के कल्याण के लिए उन्होंने जो मार्ग बतलाया उसे हम सात क़दमों के माध्यम से नए तरीके से समझ सकते हैं –
प्रथम कदम – सप्त व्यसन से दूरी
सबसे पहले भगवान् महावीर ने रिसर्च की कि मनुष्यों की कौन सी ऐसी कमियां हैं जो उसके विकास को रोक रहीं हैं तथा उसका जीवन बर्बाद कर रहीं हैं | अपनी इस रिसर्च में उन्होंने सात आदतें ऐसी पायीं जिनके कारण वह उसका जीवन बर्बाद हो रहा है और आगे नहीं बढ़ पा रहा है | इसलिए अच्छा ,स्वस्थ्य और सुन्दर जीवन जीने के लिए उन्होंने इन सात व्यसनों को सबसे पहले छोड़ने को कहा –
१.जुआ खेलना २.मांस खाना ३.मदिरापान (तथा किसी भी किस्म के नशे का सेवन )
४.वेश्या सेवन ५.शिकार खेलना ६.चोरी करना ७.परस्त्री रमण
यदि ये व्यसन बने रहेंगे तो आध्यात्मिक तो छोडिये , किसी भी तरह का लौकिक कल्याण भी आप नहीं कर सकते | अपने साथ साथ परिवार,समाज ,राष्ट्र और पूरे विश्व को हानि पहुँचाने का कार्य ये सात व्यसन करते हैं | अतः सबसे पहले प्रत्येक मनुष्य को ये व्यसन जितना जल्दी हो सके छोड़ देना चाहिए |
द्वितीय कदम – रत्नत्रय का सिद्धांत –
भगवान् महावीर ने फिर एक रिसर्च की | उन्होंने विचार किया कि सात प्रकार के व्यसनों से दूर होने के बाद अब मनुष्य आत्मकल्याण के लायक हो गया है अतः इसके दुखों को दूर करने का कुछ ऐसा रास्ता खोजना चाहिए ताकि मनुष्य दुःख दूर करने के नकली उपायों से बचे और वास्तव में इसके दुःख दूर हो सके | उन्होंने बारह वर्ष तक कठोर साधना की ,यह उनका आत्मानुसंधान का काल था | उन्होंने इस दौरान कोई भी उपदेश नहीं दिया ,वे मौन रहे | जब उनका आत्मानुसंधान पूरा हो गया और उन्हें दिव्य अतीन्द्रिय ज्ञान की प्राप्ति हो गयी तब उन्होंने जो रास्ता पाया वह सभी मनुष्यों को बतलाया |
उन्होंने कहा सुखी होने और सच्चे जीवन जीने की कला है – सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र | उन्होंने इस कला को मोक्ष का मार्ग कहा |उन्होंने कहा कि दुःख भी एक रोग है और उसके लिए भी दवाई की जरूरत है , हमारे संसार सम्बन्धी सभी रोगों के नाश के लिए उन्होंने यह त्रिरत्न रुपी त्रिफला चूर्ण खोज निकाला | उन्होंने कहा कि सबसे पहले हमें सच्चा विश्वास या सच्ची श्रद्धा करना सीखना चाहिए , लेकिन सिर्फ श्रद्धा से काम नहीं चलेगा उसके साथ साथ सच्चा ज्ञान भी प्राप्त करना चाहिए और सिर्फ श्रद्धा या ज्ञान से भी बात नहीं बनेगी …इन दोनों के साथ साथ हमें सच्चा आचरण ( चारित्र ) भी धारण करना चाहिए | महावीर बहुत वैज्ञानिक हैं उन्होंने समझाया कि अगर सच्चे डॉक्टर पर सच्चा विश्वास न हो तो दवाई काम नहीं करती ,इसलिए पहले डॉक्टर पर सच्चा विश्वास करो ……लेकिन सिर्फ भरोसा कर लो तो भी रोग दूर नहीं होगा ….इसलिए वह जो उपचार और दवाई बताये उसका सही ज्ञान प्राप्त करो ….दवाई का सही ज्ञान नहीं होगा कि कौन सी कब खानी है तो भी रोग दूर नहीं हो पायेगा | इसके बाद वो कहते हैं कि आपने सिर्फ विश्वास और ज्ञान तो कर लिया लेकिन वो दवाई समय पर खाई नहीं तो भी रोग दूर नहीं होगा अतः विश्वास भी जरूरी है,ज्ञान भी जरूरी है तथा उसके अनुसार आचरण भी जरूरी है – तभी दुखों से मुक्ति संभव है |
तृतीय कदम – सम्यग्दर्शन – सच्चा विश्वास और भेद विज्ञान
भगवान् महावीर ने देखा कि लोग विश्वास और श्रद्धा तो करते हैं लेकिन कभी कभी अज्ञानता में गलत श्रद्धान कर लेते हैं अतः धर्म का वास्तविक स्वरुप समझ कर फिर श्रद्धान करना चाहिए | कोई समझा देता है कि पहाड़ से नीचे कूद जाओ या नदी में डूब जाओ तो मोक्ष हो जायेगा , कोई कहता है कि पशुओं की बलि चढाओ तो पुण्य होता है ,कोई नशा करने से परमात्मा का दर्शन करवाने की बात कहता है तो हम जल्दी भरोसा कर लेते हैं और यह मानने लगते हैं कि यही धर्म है ..और अपनी श्रद्धा और विश्वास को गलत दिशा दे देते हैं इसलिए सबसे पहले जरूरी है मनुष्य सच्चे धर्म की पहचान करके विश्वास करे | अन्यथा हमेशा की तरह लुटता ही रहेगा |
भेद विज्ञान
सम्यग्दर्शन की गहरी व्याख्या करते समय वे भेद विज्ञान की कला समझाते हैं और कहते है कि इस कला से मनुष्य संसार के दुखों में भी कीचड़ में कमल की तरह उससे भिन्न रह सकता है | अनासक्त भाव और साम्य दृष्टि …यह भेद विज्ञान पूर्वक जीवन जीने की अनुपम कला है | महावीर कहते हैं – सृष्टि नहीं दृष्टि बदलो |
इधर कहाँ आ फंसे बटोही तुम भी ऐसे गाँव में
जहाँ धूल भी धोखा देती काँटा चुभे हर पाँव में
कौन कहे छोड़ो महल अटारी पत्नी बच्चे छोड़ दे
जो जहाँ है वहीँ रहने दे केवल दृष्टि मोड़ ले
चतुर्थ कदम – सम्यग्ज्ञान- बहु आयामी दृष्टिकोण
सम्यग्ज्ञान के माध्यम से किसी भी घटना, परिस्थिति या परिणाम की सही जानकारी होती है | जो वस्तु जैसी है उसका जो स्वरूप है, उसको वैसा ही जानना यह सम्यज्ञान है | प्रायः सही ज्ञान के अभाव में मनुष्य व्यर्थ ही तनावग्रस्त रहता है | सही ज्ञान ही समस्या का समाधान कर सकता है | महावीर ने अनेकांत का सिद्धांत की खोज वस्तु , घटना, परिस्थिति या परिणाम की सर्वांग जानकारी के लिए की | सत्य को कभी भी एक दृष्टिकोण से नहीं समझा जा सकता क्यों कि वह बहु आयामी है | इसलिए हमें भी अपना दृष्टिकोण बहु आयामी रखना चाहिए | यह चिंतन की कला है | हमारे सोचने का तरीका ठीक होगा और सकारात्मक होगा तो हमारे आधे दुःख वहीँ कम हो जायेंगे | हर घर में ,परिवार में,समाज में झगडे का एक ही कारण है कि हम सिर्फ अपने नजरिये से देखते हैं ..जिस दिन हम दूसरे के नजरिये से भी देखने लगेंगे उस दिन जीवन का रंग ही बदल जायेगा | जीवन बहु रंगी हो जायेगा |
पांचवा कदम – सम्यग्चारित्र
सम्यग्चारित्र मनुष्य को सदाचरण सिखाता है | हमारे तनाव – अवसाद का मुख्य कारण हमारा गलत आचरण भी है | क्रोध, मान, माया, लोभ – ये चार ऐसे भाव है जो शांत चित्त आत्म को कष्ट देते हैं अर्थात दुःखी करते हैं इसलिए इनका नाम जैनदर्शन में ‘कषाय’ रखा गया है | आत्मा के चारित्रिक गुणों का घात इन्हीं चार कषायों के कारण होता हैं, और इन्हीं कषायों की प्रबलता मनुष्य को तनावग्रस्त भी करती है | शुद्ध चारित्र की प्राप्ति के लिए इन चार कषायों की समाप्ति बहुत आवश्यक है | ये कषायें जैसे जैसे मन्द होती हैं वैसे वैसे तनाव घटता जाता है | अन्य कई प्रकार ही मानसिक बीमारियों का कारण भी इन कषायों की प्रबलता है| अतः सम्यग्चारित्र के अभ्यास से इन पर विजय प्राप्त करके मनुष्य अवसाद आदि का शिकार नहीं होता| अपने भीतर से क्रोध, मान, माया, लोभ को कम करना यह हमारा आंतरिक चरित्र है और बाहर से भोगों के प्रति उदासीन भाव और अपनी आत्मा के प्रति उत्साह यह बाह्य चरित्र है | महावीर कहते हैं कि व्रत,उपवास ,तपस्या भी यथा शक्ति करने से शरीर के प्रति ममत्व घटता है ,मनुष्य शारीरिक रोगों से भी मुक्त होता है और कर्मों से भी |
छठा कदम – अहिंसा और अपरिग्रह –
भगवान् महावीर ने सम्पूर्ण जीवन को अहिंसा पूर्वक जीने को कहा | हम ऐसा जीवन जियें जिससे किसी दुसरे प्राणी को कष्ट न हो और और किसी के प्राणों का हरण न हो | जैसे हमें दुःख पसंद नहीं वैसे ही दूसरों को भी पसंद नहीं है अतः शांति पूर्ण सहस्तित्व के लिए अहिंसा का आचरण जरूरी है |आज करोना वायरस पूरे विश्व के लिए भस्मासुर बन गया है | उसकी मूल वजह हिंसक आहार है जिसमें मांसाहार सबसे बड़ा कारण है |भगवन महावीर की अहिंसक जीवन शैली को आज सभी को स्वीकारना पड़ रहा है |
इसी प्रकार अत्यधिक परिग्रह और आसक्ति बहुत बड़ा दुःख है , मकान ,जमीन,रुपया पैसा सोना चांदी आदि के प्रति अत्यधिक मोह आपको चिंता ग्रस्त बनाता है अतः भगवान कहते हैं कि अपने पास उतना ही रखो जितनी जरूरत है ,व्यर्थ का सामान मत जोड़ो |
आगाह अपनी मौत से कोई वशर नहीं
सामान सौ बरस का पल की खबर नहीं
सातवाँ कदम – सल्लेखना –या संथारा
भगवान् महावीर ने मनुष्यों को जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन जीने की कला सिखलाई | उन्होंने कहा कि जो जन्म लेता है वह मरता भी है यह जीवन की एक बहुत बड़ी सच्चाई है –इसे हमें स्वीकार कर लेना चाहिए | मरना तो एक क्षण का है किन्तु उसके पूर्व अंत समय तक जीवन है अतः हमें अपना अंत समय धर्म ध्यान व्रत उपवास पूर्वक व्यतीत करना चाहिए ,जो छूट जाने वाला है उसे तुम पहले ही छोड़ दो तो सुख पूर्वक अंत तक जी लोगे | इसलिए जब ऐसा लगने लग जाये कि अब आयु कम रह गयी है तब घबड़ाना नहीं चाहिए ,बल्कि अपने सुन्दर जीवन रुपी निबंध का अच्छा उपसंहार या समापन करना चाहिए |अंत समय तक भगवान् का भजन करना चाहिए, अपनी भूलों के लिए सबसे क्षमा याचना करना चाहिए और संयम पूर्वक रहना चाहिए |
इस प्रकार भगवान् महावीर ने मनुष्यों को जीवन सत्यं ,शिवम् और सुन्दरम् बनाने की प्रेरणा दी उसके उपाय भी बतलाये |यदि उनके बतलाये मार्ग पर हम सभी चलें तो अवश्य सुखी हो सकते हैं |
— डॉ.अनेकांत कुमार जैन