आजादी की लड़ाई सभी भारतवासियों ने अपने अपने स्तर पर लड़ी । यह बात अलग है कि सभी क्रांतिकारी इतिहास के पन्नों पर नहीं छप पाने से हम आज भी उनसे अनजान हैं ।
इसी क्रम में काशी का एक ऐसा महाविद्यालय और छात्रावास भी आता है जिसने आजादी के आंदोलन में महान योगदान दिया किन्तु इतिहास की मुख्य चर्चा में न आ सका ।
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर हम उन्हें भी याद करना अपना कर्तव्य मानते हैं ।
१९४२ में काशी के भदैनी क्षेत्र में गंगा के मनमोहक तट जैन घाट पर स्थित स्याद्वाद महाविद्यालय और उसका छात्रावास आजादी की लड़ाई में अगस्त क्रांति का गढ़ बन चुका था | जब काशी विद्यापीठ को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया , काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रावास जबरन खाली करवा दिये गये और आन्दोलन नेतृत्त्व विहीन हो गया तब आन्दोलन की बुझती हुई लौ को जलाने का काम इसी स्याद्वाद महाविद्यालय के जैन छात्रावास ने किया था |
उन दिनों यहाँ के जैन विद्यार्थियों ने पूरे बनारस की संस्कृत की छोटी बड़ी पाठशालाओं ,विद्यालयों और महाविद्यालयों में जा जा कर उन्हें जगाने का कार्य किया ,हड़ताल के लिए उकसाया ,पर्चे बांटे और जुलूस निकाले |
एक बार
जब यहाँ के एक विद्यार्थी दयाचंद जैन वापस नहीं लौटे , पुलिस उन्हें खोज रही थी अतः खबर उड़ा दी गई कि उन्हें गोली मार दी गई है,बी एच यू में उनके लिए शोक प्रस्ताव भी पास हो गया | उन्हें जीवित अवस्था में ही अमर शहीद होने का सौभाग्य मिला था,क्यों कि वे भूमिगत होकर जीवित थे और बाद में वापस लौट आये थे ।
स्याद्वाद महाविद्यालय और शिवपुर में रणभेरी क्रान्तिकारी नामक बुलेटिन की प्रतियाँ छपती थीं |जब प्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया तो मुल्तानी मिट्टी को गला कर उस पर बैगनी स्याही से मैटर का अक्श निकाल कर रोज २५० प्रतियाँ निकाली जाती थीं |क्रान्तिकारी दल रात 10 बजे के बाद इसकी प्रतियाँ बांटता था जिसमें क्रांति की समूची योजना और क्रन्तिकारी भाषण और कवितायेँ छपी होती थीं |
एक दिन काशी के सी आई डी को सूचना मिली कि महाविद्यालय में खतरनाक हथियार छुपाये गए हैं तथा कई क्रन्तिकारी छुपे हुए हैं तब यहाँ की तलाशी ली गई ,किन्तु कुछ नहीं मिला ,उन्हें खबर हुई कि हथियार गंगा में फेंक दिए गए हैं ,गंगा में हथियार खोजे गए ,किन्तु वहाँ भी कुछ नहीं मिला |समीप स्थित छेदी लाल जैन मंदिर के एक कमरे से एक भरी हुई पिस्तौल और तोड़फोड़ का सामान मिला और छात्र क्रांतिकारी गुलाबचंद जैन,अमृतलाल जैन,और घनश्याम दास जैन गिरफ्तार कर लिए गए |उन्हें अठारह दिन जेल में रखा गया फिर जमानत हुई |
महाविद्यालय के अधिष्ठाता बाबू हरिश्चंद्र जैन जी के ऊपर उन छात्रों को निष्काषित करने और महाविद्यालय को बंद करने का दबाव बढ़ गया |
महाविद्यालय के अनेक छात्र जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी,अंग्रेजों की यातनाएं सहीं ,जेल गए और बाद में जैन धर्म दर्शन के प्रख्यात विद्वान बने ,अनेक शास्त्र लिखे ,अनुवाद और शोधकार्य किये ,उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने का सौभाग्य प्राप्त है |
धर्म की रक्षा के लिए एक हाथ में शास्त्र और राष्ट्र की रक्षा के लिए दूसरे हाथ में शस्त्र उठाने वाले क्रान्तिकारी ,जेल यात्रा करने वाले स्वतंत्रता संग्रामी जिन स्नातक विद्वानों के नाम मिल सके हैं उनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं –
1. पंडित अमृतलाल शास्त्री
2. डॉ हरीन्द्रभूषण जैन
3. डॉ.बालचंद जैन
4. चौधरी सगुनचंद जैन
5. श्री धन्यकुमार जैन
6. पंडित खुशालचंद जी गोरावाला
7. पंडित राजकुमार शास्त्री
8. पंडित लोकमणि जैन
9. श्री शीतलप्रसाद जैन
10. श्री गुलाबचंद जैन
11. श्री घनश्याम दास जैन
12. पंडित कैलाश चंद शास्त्री
13. पंडित फूलचंद सिद्धान्तशास्त्री
14. डॉ गुलाब चंद चौधरी
15. डॉ.राजाराम जैन
16. श्री दयाचंद जैन
17. श्री नाभिनंदन जैन
18. श्री भागचंद जैन
19. डॉ पूरनचंद जैन
20. श्री बाबूलाल फागुल्ल
21. श्री रतन पहाड़ी आदि
इन सभी की अपनी अपनी दास्ताँ है और इस बात से यह सुनिश्चित होता है कि आजादी के आन्दोलन में तत्कालीन जैन दर्शन ,प्राकृत ,संस्कृत के विद्यार्थियों ने अपने राष्ट्र के लिए कितना बड़ा योगदान दिया था |राष्ट्रपिता महात्मागांधी भी इस महाविद्यालय में पधारे थे तब उन्होंने यहाँ अपने कर कमलों से यह वाक्य लिखा था –
इस संस्था की मुलाकात लेने से मैं बहोत खुश हुआ हूँ ,मेरी उम्मेद है की इस संस्था के विद्यार्थी ऐसे कर्मनिष्ठ होंगे की जिससे समस्त हिन्द को फायदा हो
आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं ,ऐसे समय में सन 1905 में पूज्य गणेश प्रसाद वर्णी जी द्वारा स्थापित स्याद्वाद महाविद्यालय तथा यहां के संस्कृत, प्राकृत और जैनदर्शन के क्रांतिकारी छात्रों का योगदान भी हमें नहीं भूलना चाहिए ।
अमियमहोस्सवे जण मणगणसगतंतस्स अइउमंगो।
सुसोहिओ णवभरहे,गेहे गेहे णव तिरंगो ।।
आज
स्वतंत्रता के अमृतमहोत्सव पर नए भारत के जन मन गण में अति उमंग है और यहां के घर घर में तिरंगा सुशोभित हो रहा है ।
स्रोत :
1. स्याद्वाद महाविद्यालय शताब्दी वर्ष स्मारिका (के विभिन्न लेख) 2005,संपादक – प्रो फूलचंद जैन प्रेमी
2. स्वतंत्रता संग्राम में जैन – लेखक डॉ कपूरचंद जैन एवं डॉ ज्योति जैन ,खतौली