Dhoop Dashami Parv दिगंबर जैन धर्म में धूप दशमी का पर्व प्रतिवर्ष पर्युषण महापर्व के छठवें दिन, भाद्रपद शुक्ल दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष, यह पर्व शुक्रवार, 13 सितंबर 2024 को मनाया जा रहा है। इस दिन जैन धर्मावलंबी जिनालयों में जाकर 24 तीर्थंकरों, प्राचीन शास्त्रों और जिनवाणी के सामने चंदन की धूप अर्पित करते हैं, जिसे ‘धूप खेवन’ कहा जाता है। यह पर्व जैन धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है, और इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
पर्व सुगंध दशै दिन जिनवर पूजै अति हरषाई,
सुगंध देह तीर्थंकर पद की पावै शिव सुखदाई।।
अर्थात्- हे भगवान! सुगंध दशमी के दिन सभी तीर्थंकरों का पूजन कर मेरा मन हर्षित हो गया है। धूप के इस पवित्र वातावरण से स्वयं भगवान भी खुश होकर मानव को मोक्ष पद का रास्ता दिखलाते हैं। इसी भावना के साथ सभी जैन मंदिरों में सुगंध दशमी पर धूप खेई जाती है। और इस पर्व को आनंद और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
पर्व का महत्व:
धूप दशमी, जिसे सुगंध दशमी भी कहा जाता है, जैन समाज के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दिन मंदिरों में भक्तगण जिनेंद्र भगवान के समक्ष धूप अर्पित कर आत्मा के शुद्धिकरण और मोक्ष प्राप्ति की कामना करते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान के समक्ष धूप अर्पित करने से वातावरण शुद्ध और सुगंधित हो जाता है, धूप की सुगंध से जिनालय महक उठते है। जिससे मानसिक शांति और पुण्य की प्राप्ति होती है।
धार्मिक अनुष्ठान और मान्यताएँ:
धूप दशमी पर जैन समाज के लोग मंदिरों में जाकर तीर्थंकरों की पूजा करते हैं और धूप अर्पित करते हैं। इस अवसर पर विशेष सजावट की जाती है और मंदिरों में रंगोली, मंडल विधान, और अन्य धार्मिक चित्रण किए जाते हैं। धार्मिक पुस्तकें और शास्त्रों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है। धूप दशमी कथा का वाचन होता है, जिसमें धूप अर्पित करने के महत्व को बताया जाता है।
व्रत और पूजा विधि:
धूप दशमी के दिन जैन धर्मावलंबी पांच प्रमुख पापों—हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, और परिग्रह—का त्याग कर व्रत का पालन करते हैं। वे चार प्रकार के आहार का त्याग करते हैं और मंदिरों में जाकर भगवान की पूजा, स्वाध्याय, धर्म चिंतन, श्रवण, और सामायिक में अपना समय व्यतीत करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से अशुभ कर्मों का क्षय होता है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
पवित्र प्रार्थना और धूप चढ़ाने की विधि:
इस दिन जब भक्तगण जिनेंद्र भगवान के समक्ष धूप चढ़ाते हैं, तो वे विशेष प्रार्थना करते हैं:
“हे भगवान! इस सुगंध दशमी के पवित्र दिन, मैं आपकी शरण में आकर तीर्थंकरों के बताए मार्ग का पालन करने की प्रार्थना करता हूं। मैं मोक्ष प्राप्ति की कामना करता हूं और आपकी कृपा से आनंद की अनुभूति करता हूं।”
इस पर्व के दिन श्रीजी का सम्मुख धूप चढ़ाते समय यह पंक्तियां बोलकर सुगंधित धूप चढ़ाई या अर्पित की जाती है।
सुगंध दशमी का अर्घ्य:
सुगंध दशमी को पर्व भादवा शुक्ल में,
सब इन्द्रादिक देव आय मधि लोक में;
जिन अकृत्रिम धाम धूप खेवै तहां,
हम भी पूजत आह्वान करिकै यहां।।