दसलक्षण धर्म आत्मशोधन का पर्व (08 से 17 सितंबर 2024 तक) — परम्पराचार्य प्रज्ञसागर मुनि


दस लक्षण धर्म जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे मुख्य रूप से दिगंबर जैन समुदाय द्वारा मनाया जाता है। यह पर्व जैन धर्म के मूल सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों को उजागर करता है और आत्मशुद्धि के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। दस लक्षण धर्म, पर्युषण पर्व के बाद वाले दस दिनों में मनाया जाता है और यह जैन धर्म के दस प्रमुख लक्षणों या गुणों का उत्सव है। ये दस लक्षण हैं: उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य, और उत्तम ब्रह्मचर्य।

1. उत्तम क्षमा (श्रेष्ठ क्षमा)

उत्तम क्षमा का अर्थ है सभी जीवों के प्रति क्षमाशीलता और उदारता का भाव रखना। यह गुण सिखाता है कि किसी भी परिस्थिति में किसी के प्रति द्वेष या क्रोध नहीं रखना चाहिए। क्षमा से मन का शुद्धिकरण होता है और व्यक्ति को शांति मिलती है। जैन धर्म में, क्षमा को आत्मा की शुद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक माना गया है।

2. उत्तम मार्दव (श्रेष्ठ विनम्रता)

उत्तम मार्दव का तात्पर्य है विनम्रता और दूसरों के प्रति अहंकार हीनता। यह गुण हमें सिखाता है कि हमें अपने भीतर से अहंकार को दूर करना चाहिए और सभी के प्रति समता का भाव रखना चाहिए। विनम्रता से व्यक्ति में दूसरों के प्रति सहानुभूति और सम्मान की भावना विकसित होती है।

3. उत्तम आर्जव (श्रेष्ठ सरलता)

उत्तम आर्जव का अर्थ है मन, वचन, और काया में सरलता; और ईमानदारी का पालन करना। यह गुण व्यक्ति को अपने विचारों, शब्दों और कार्यों में सच्चा और निष्कपट बनाता है। आर्जव से व्यक्ति का चरित्र मजबूत होता है और वह सत्य के मार्ग पर चल पाता है।

4. उत्तम शौच (श्रेष्ठ शुद्धता)

उत्तम शौच का मतलब है आंतरिक और बाह्य शुद्धता। यह न केवल शरीर की शुद्धता की बात करता है बल्कि मन, वचन, और कर्म की शुद्धता पर भी बल देता है। व्यक्ति को अपने विचारों और कार्यों में शुद्धता का पालन करना चाहिए ताकि वह आत्मशुद्धि के मार्ग पर अग्रसर हो सके।

5. उत्तम सत्य (श्रेष्ठ सत्य)

उत्तम सत्य का तात्पर्य है सत्य का पालन करना। यह गुण सिखाता है कि हमें हमेशा सत्य बोलना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में असत्य का सहारा नहीं लेना चाहिए। सत्य से आत्मा का विकास होता है और यह व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।

6. उत्तम संयम (श्रेष्ठ संयम)

उत्तम संयम का अर्थ है अपनी इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण रखना। यह गुण हमें सिखाता है कि हमें अपनी इच्छाओं और वासनाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए और छह काय के जीवों रक्षा करनी चाहिए। संयम से व्यक्ति अपने जीवन को संतुलित बना सकता है और आत्मा मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ती है।

7. उत्तम तप (श्रेष्ठ तप)

उत्तम तप का तात्पर्य है आत्मशुद्धि और आत्मसंयम के लिए कष्ट सहन करना। तप से व्यक्ति अपनी आत्मा को शुद्ध करता है और कर्म बंधनों से मुक्त होने की दिशा में अग्रसर होता है। तप के माध्यम से व्यक्ति अपने आंतरिक शत्रुओं जैसे क्रोध, मोह, और लोभ पर विजय प्राप्त कर सकता है।

8. उत्तम त्याग (श्रेष्ठ त्याग)

उत्तम त्याग का अर्थ है भौतिक वस्तुओं और सांसारिक इच्छाओं का त्याग करना। यह गुण सिखाता है कि हमें अपने स्वार्थ और सांसारिक मोह को छोड़कर आत्मिक उत्थान की ओर ध्यान देना चाहिए। त्याग से व्यक्ति को आत्मबल और मानसिक शांति मिलती है।

9. उत्तम आकिंचन्य (श्रेष्ठ निरासक्ति)

उत्तम आकिंचन्य का तात्पर्य है किसी भी प्रकार की आसक्ति से मुक्त होना। यह गुण सिखाता है कि हमें सांसारिक वस्तुओं और रिश्तों से मोह नहीं रखना चाहिए और आत्मा की स्वतंत्रता की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। निरासक्ति से व्यक्ति को आत्मस्वातंत्र्य और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।

10. उत्तम ब्रह्मचर्य (श्रेष्ठ ब्रह्मचर्य)

उत्तम ब्रह्मचर्य का अर्थ है आत्मा में संयम रखना और काम-इच्छाओं से दूर रहना। यह गुण सिखाता है कि हमें अपनी ऊर्जा को आत्मशुद्धि और आत्मविकास की दिशा में लगाना चाहिए। ब्रह्मचर्य से व्यक्ति का आत्मबल और मानसिक शक्ति बढ़ती है।

दस लक्षण धर्म का महत्व

दस लक्षण धर्म जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है क्योंकि यह आत्मशुद्धि, आत्मसंयम, और नैतिकता पर बल देता है। इस पर्व के दौरान, जैन धर्म के अनुयायी उपवास, प्रार्थना, ध्यान, और धार्मिक प्रवचन में संलग्न रहते हैं। यह पर्व आत्मशुद्धि और आत्मविकास के लिए एक अवसर प्रदान करता है, जहां व्यक्ति अपने भीतर के दोषों को पहचानकर उन्हें दूर करने का प्रयास करता है।

इस पर्व का मुख्य उद्देश्य आत्मशुद्धि, कर्मों का नाश, और आत्मज्ञान की प्राप्ति है। जैन धर्म में, आत्मा की शुद्धि और मुक्ति की प्राप्ति के लिए इन दस लक्षणों का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इन लक्षणों का पालन करके व्यक्ति अपने जीवन को शुद्ध, पवित्र, और संतुलित बना सकता है और मोक्ष की दिशा में अग्रसर हो सकता है।

 

प्रेषक— ममता जैन


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