जैन श्रमण परंपरा के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदि योगी तथा इतिहास की दृष्टि से प्रागैतिहासिक माने जाते हैं । उनके अनंतर जैन श्रमण परम्परा में २३ और तीर्थंकर हुए जिन्होंने समय समय पर धर्म तीर्थ का प्रवर्तन किया तथा अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म ईसा पूर्व ५९९ में वैशाली में हुआ था तथा ७२ वर्ष की आयु में ईसा पूर्व ५२७ में उनका निर्वाण पावापुर से हुआ । उनके बाद उनके मार्ग पर चलने वाली उनकी आचार्य परंपरा आज तक हजारों की संख्या में भारत भूमि पर अध्यात्म साधना तपस्या और संयम की धारा प्रवाहित कर रहे हैं।
सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव जी का जन्म सन् १४६९ ई० में जिला शेखू पुरा ( वर्तमान का पश्चिमी पाकिस्तान ) में तलवंडी नामक गांव में हुआ था । यह स्थान आज ननकाना नाम से प्रसिद्ध है । डॉ हरिराम गुप्ता ने उनके जीवन काल को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया है –
१. १४६९- १४९६ ( २७ वर्ष ) – गृहस्थ / आत्मबोध ज्ञान काल ।
२. १४९७-१५२१ ( २५ वर्ष )- पर्यटन और दूसरे धर्मों का अध्ययन ,(स्व विचार व्याख्या काल) ।
३. १५२२ – १५३९ (१८ वर्ष )- करतार पुर ,अवकाश काल ,सिक्ख धर्म की नींव का काल
डॉ गुप्ता यह मानते हैं कि सन् १५१० से १५१५ तक लगभग पांच वर्ष उन्होंने जैन तीर्थ स्थलों की यात्रा की थी । ऐसा प्रतीत होता है कि जैन तीर्थ यात्रा के दौरान गुरुनानक जी ने दिगंबर जैन मुनियों का बहुत सत्संग किया और उनसे बहुत प्रभावित हुए –
दइआ दिगम्बरु देह वीचारी ।
आपि मरे अवरा नहीं मारी ।।
गुरुनानक जी कहते हैं कि जिसमें दया है और दूसरे के शरीर का विचार है ,जो स्वयं मर जाये लेकिन दूसरों को मार नहीं सकते वे दिगंबर मुनि हैं। जैन दर्शन का प्रभाव भारत के संत साहित्य पर स्पष्ट दिखलाई देता है । यह उसी तरह है जैसा कि सूफीसाहित्य पर प्रभाव । डॉ रामेश्वर प्रसाद सिंह लिखते हैं कि जैन संत कवियों एवं उनके पूर्ववर्ती कुछ जैन आचार्यों ने हिंदी के संत काव्य को प्रेरित करने में प्रभूत योग दिया है।
अहिंसा शाकाहार भगवान महावीर के सिद्धांतों का प्रधान स्वर था । उनके सभी आगमों में अहिंसा ही मुख्य है । यद्यपि कई मान्यताएं ऐसी हैं जो गुरुनानक देव जी की मान्यताओं से मेल नहीं खाती हैं,फिर भी भगवान महावीर के अहिंसा जैसे सार्वभौमिक सिद्धांत के प्रभाव से कोई भी वंचित नहीं रहा । गुरुनानक देव ने भी अहिंसा और शांति की बात समाज और विश्व में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से कही । यज्ञों में धर्म के नाम पर होने वाली बलि आदि हिंसा के निषेध की शुरुआत तीर्थंकर महावीर ने की थी, उसका स्वर नानक वाणी में भी सुनाई देता है –
बगा वमे कपड़े तीरथ भक्ति वसन्हि ।
घुटि घुटि जीआ खावणे बगे ना कही अन्हि ।।
अर्थात् बगुलों के पंख सफेद होते हैं और वह तीर्थ स्थानों के जलाशयों में रहते हैं किंतु फिर भी घोंट घोंट कर उनकी मछलियों को ही खाते हैं । इन हिंसक वृत्तियों के कारण उन्हें निर्दोष नहीं कहा जा सकता।
इसी प्रकार उन्होंने सात्विक भोजन शाकाहार पर भी बल दिया और मांस खाने का निषेध किया –
जे रत लागे कपड़े, जामा होय पलीत ।
जे रत पीवे मांसा, तिन क्यों निर्मल चीत ।।
अर्थात् जैसे रक्त लग जाने पर वस्त्र में दाग लग जाता है, वैसे ही रक्त युक्त मांस खाने से मन मैला हो जाता है, इसलिए
मांस ग्रहण करना दोषपूर्ण है ।
नानक ता काऊ मिले बडाई ।
आयु पछानै सरब जीआ ।।
नानक नाम चढ़दी कला ।
तेरे भाणे सवर्त का भला ।।
हे नानक ! ऊंचा पद उन्हें ही मिलता है जो सब जीवो में अपने मन का अनुभव करता है । वे कहते हैं कि जो सबकी भलाई करे वो ही महान है और यह बिना अहिंसा भावना के संभव नहीं है ।
अहिंसा का अभिन्न अंग है ‘क्षमा’ | जैन धर्म में क्षमा पर्व भी मनाया जाता है | गुरुनानक देव कहते हैं कि क्षमा रूपी धन संग्रह करने वाला बकवास नहीं करता | वह तमोगुण को जला डालता है | ऐसा गृहस्थ योगी या सन्यासी धन्य है-
बकै ना बोलै खिमा धनु संग्रहै तामसु नामि जलाए |
धनु गिरही सनिआसी जोगी, जि हरि चरणी चितु लाए ||
वे कहते हैं क्षमा व्रत ग्रहण करने वाला समस्त दोषों से तथा रोगों से मुक्त हो जाता है –
खिमा गही व्रतुसील संतोखं|
रोगु ण बिआपै न जम दोखं ||
भगवान महावीर अपरिग्रह पर बहुत बल देते थे | यह सिद्धांत उनके प्रमुख सिद्धांतों में से एक है | अपरिग्रह धर्म का प्रभाव गुरुनानक जी पर बहुत हुआ | गुरुनानक जी कहते हैं-
‘संपऊ संचयी भये विकार’
अर्थात् धन इकट्ठा करने से मन में विकार घर कर लेता है ,इसलिए वह भगवान महावीर की दया और दान से प्रभावित होकर कहते हैं –
‘दया जाने जीव की किछ पुन्न दान करेइ’
अर्थात् सच्चा मनुष्य वह है जो दूसरों के दुख देखकर उन पर दया करता है और कुछ दान पुण्य करता है |
भगवान महावीर का एक बहुत बड़ा संदेश था कि सभी आत्माएं समान हैं कोई छोटा या बड़ा नहीं है | गुरु नानक कहते हैं कि उसी मनुष्य का जीवन सफल है जो सभी जीवो में अपना ही रूप देखता है | यह वास्तव में अहिंसा के सिद्धांत की बहुत बड़ी आधारशिला है –
जीवतु मरै ता सब कछु सूझे ,
अंतरि जानें सर्व दइया |
नानक ता कऊ मिले बडाई
आपु पछाणे सर्व जिया ||
महावीर कहते थे कि मनुष्य अपने अच्छे कर्म से महान बनता है न कि जाति या वर्ण से |
गुरुनानक जी भी किसी को भी ऊंचा या नीचा नहीं मानते –
नानक उत्तम नीचु न कोई |
इस प्रकार हम देखते हैं कि भगवान् महावीर ने स्वपर कल्याण की जो आध्यात्मिक गंगा प्रवाहित की कालांतर में उसमें स्नान करने वाले गुरुनानक देव जी भी भारत के एक महान संत थे जिन्होंने सिक्ख धर्म का प्रवर्तन कर अनेक लोगों को अच्छाई के मार्ग पर लगाया |
— प्रो अनेकांत कुमार जैन