जैनेतर परम्पराओं से जैन धर्म की प्राचीनता/महानता


जैनेतर परंपरा के लोग यह मानते हैं कि जैन धर्म महावीर स्वामी से चला या वे इसके प्रवर्तक हैं, परंतु ऐसा नहीं है, इसके गवाह कई शिलालेख, मूर्तियां एवं स्वयं जैनेतर शास्त्र हैं, जैन धर्म अनादिकालीन धर्म है, और यह कोई कपोल- कल्पित नहीं है, ऐलोरा की गुफाओं के कुछ शिलालेखों पर नेमिनाथ जी आदि महावीर स्वामी से पहले के तीर्थंकरों के नाम उल्लिखित हैं, इसके अलावा अन्य हजारों शिलालेखों में महावीर स्वामी से पूर्व तीर्थंकरों के नाम आए हैं, बात करें मूर्तियों की तो भारत के अजूबों में शामिल बाहुबली भगवान की 57 फुट ऊंची प्रतिमा जिसका निर्माण 10 वीं शताब्दी के लगभग हुआ, जो श्रवणबेलगोला में है, मध्यप्रदेश के खजुराहो मंदिरों का भी सात अजूबों में (भारत के) नाम हैं, वहीं राजस्थान में सांगानेर का संघी जी मंदिर, महावीर जी में तीर्थंकर महावीर स्वामी की मूर्ति, पदमपुरा जी में पद्मप्रभु जी की मूर्ति, केशोरायपाटन की मूर्ति,चतुर्थ कालीन है, इसके अलावा दिलवाड़ा के पाँच जैन मंदिर प्रसिद्ध हैं, और उत्तरप्रदेश के ललितपुर जिले के अंतर्गत देवगढ़ में तो इतनी मूर्ति थीं कि यदि 1 क्विंटल चावल ले जाओ, और एक-एक दाना भी यदि सभी मूर्तियों के समक्ष चढ़ाओ, तो चावल खत्म हो जाए पर मूर्तियां खत्म ना हों,   इसके अलावा जो सिद्धक्षेत्र हैं, वहां चतुर्थ कालीन प्रतिमाएं देखने में आती हैं, इसके अलावा देश में हजारों-लाखों जिनप्रतिमाएं चतुर्थ कालीन और प्रथम-द्वितीय शताब्दी की पायीं जाती हैं, साथ ही विदेशों में भी जिन-प्रतिमाओं को पाया गया, जो प्राचीन हैं, इस प्रकार प्राचीन प्रतिमाएं हुईं।

अब जैनेतर दर्शनों में आदिनाथ भगवान का जिक्र किया गया है, जैसे- भागवत में कहा है-

अष्टमेमेरुदेव्यांतुनाभेर्जातउरूक्रमः।

दर्शयन वर्म धीराणां सर्वाश्रम नमस्कृतम्।।

वही ऋग्वेद में भी कहा है-

त्रिधाबद्धोवृषभोरोरवीतिमहादेवोमत्याम आ विवेश।।

अर्थात तीन स्थानों से बद्ध अर्थात् बंधे हुए वृषभ ने घोषणा की, कि महादेव मनुष्यों में ही प्रविष्ट है।

वहीं भागवत में अन्य जगह उल्लेख है-

नाभे प्रियचिकीर्षया।तदवरोधने मेरूदेव्यां धर्मान्दर्शयितुकामो वातरशनानां श्रमणानामृषिणां  ऊर्ध्वमन्थिनां शुक्लया तानुवावततारा।।  (श्रीमद्भागवत5/3/20)

अर्थात् नाभि का प्रिय करने वाले विष्णु ने मरूदेवी के गर्भ से वातरशना ब्रह्मचारियों को उपदेश देने के लिए ऋषभदेव के रूप में जन्म लिया।

भागवत के पांचवें स्कंध के पंचम अध्याय में इसका विस्तृत वर्णन है।

इसके अतिरिक्त ऋग्वेद, श्रीमद्भागवत, लिङ्गपुराण, वायुपुराण, अग्निपुराण, वाराहपुराण, मार्कंडेयपुराण, बौद्ध ग्रंथ- आर्यमंजूश्रीकल्प (53,363.64)”  में भी आदि तीर्थंकर ऋषभदेव का नाम आता है।

डाँ. राधाकृष्णन जी ने अपनी पुस्तक “भारतीय दर्शन” के प्रथम भाग के पृष्ठ 233 पर लिखा है- कि “ऋग्वेद में उनका नाम आता है।”

इस प्रकार जैनेतर दर्शनों में, शास्त्रों में वर्णित ऋषभदेव आदि तीर्थंकरों के वर्णन से जैन धर्म की महानता सिद्ध होती है।

 

— पं.शशांक सिंघई जैन “शास्त्री”


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