चलते फिरते विश्वविद्यालय थे आचार्य विद्यानंद जी महाराज


नई दिल्ली, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ ( मनित विश्वविद्यालय) के जैन दर्शन विभाग में दिगंबर जैन श्रमण संस्कृति के महान् आचार्य विद्यानंद मुनिराज के दिनांक २२/०९/२०१९ को ब्रह्म मुहूर्त में समाधि मरण के प्रसंग पर आचार्य विद्यानंद गुणानुवाद सभा तथा जैन विद्या के आयाम एवं आचार्य विद्यानंद विषयक विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया ।

सभा का संचालन करते हुए विभाग के अध्यक्ष प्रो अनेकांत कुमार जैन ने कहा कि आचार्य विद्यानंद एक ऐसे संत थे जिन्होंने हमें प्रामाणिक लेखन एवं व्याख्यान देने की कला सिखलाई । वे स्वयं कभी भी बिना शास्त्र प्रमाण के न कुछ लिखते थे और न कहते थे । विद्यापीठ का इतिहास बताते हुए उन्होंने कहा कि डॉ मंडन मिश्र जी ने जब एक संस्कृत पाठशाला दिल्ली में खोली तो आचार्य श्री की प्रेरणा से दरियागंज स्थित जैन समंतभद्र संस्कृत महाविद्यालय में ही पाठशाला को चलाने के लिए स्थान दिया गया । जैन श्रेष्ठी साहू शांति प्रसाद जी ने उस समय ५००००/- की अनुदान राशि पाठशाला को चलाने को दी थी, वही संस्कृत पाठशाला आज श्री लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्व विद्यालय बन गया है । पूर्व कुलपति वाचस्पति उपाध्याय भी आचार्य श्री के अनन्य भक्त थे । वर्तमान के कुलपति आचार्य रमेश पांडेय जी ने भी अनेक वर्षों से उनका सन्निध्य प्राप्त किया है ।

सांख्य योग विभाग के अध्यक्ष प्रो मार्कण्डेय तिवारी जी ने कहा कि वे हम सभी के लिए एक आदर्श थे । हम विद्वानों का बहुत बहुमान करते थे तथा हमेशा कुछ न कुछ नया ज्ञान देते थे । प्रो कुलदीप ने कहा कि मेरे ऊपर उनके बहुत उपकार हैं मैं उन्हीं के आशीर्वाद के कारण यहां तक आ पाया । विशिष्ट व्याख्यान प्रदान करते हुए मुख्य वक्ता अहिंसा ,जैन शास्त्र एवं प्राकृत संस्थान, वैशाली के निदेशक प्रो ऋषभ चंद जैन फौजदार जी ने कहा कि वे स्वयं एक चलते फिरते विश्व विद्यालय थे , उन्हें हर धर्म दर्शन का ज्ञान था , मैंने उनसे बहुत शिक्षा ग्रहण की । सभा की अध्यक्षता करते हुए प्रो वीरसागर जैन जी ने कहा कि पिछले पच्चीस वर्षों से मुझे उनका अत्यंत निकट का सन्निध्य प्राप्त हुआ । उनकी माता का नाम सरस्वती था और वे वास्तव में सरस्वती पुत्र बने ,अपने नाम के अनुकूल वे विद्या प्रेमी थे । श्रमण जैन संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन में उनका अद्वितीय योगदान रहा है ।

आरंभ में मंगलाचरण शास्त्री प्रथम वर्ष के विद्यार्थी योगेन्द्र एवं ममता ने किया । इस अवसर पर सभी विद्यार्थी, शोध छात्र तथा अनेक विद्वानों ने उन्हें श्रद्धांजलि प्रदान की ।

 

— प्रो अनेकांत कुमार जैन


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