तेइसवें तीर्थंकर भगवान श्री पार्श्वनाथ जी का जन्म बनारस के इक्ष्वाकुवंश में पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को विशाखा नक्षत्र में हुआ था। इनके माता का नाम माता वामा देवी था और पिता का नाम राजा अश्वसेन था। इनके शरीर का वर्ण नीला था जबकि इनका चिह्न सर्प है। इनके यक्ष का नाम पार्श्व था और इनके यक्षिणी का नाम पद्मावती देवी था। जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार भगवान श्री पार्श्वनाथ जी के गणधरों की कुल संख्या 10 थी, जिनमें आर्यदत्त स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। इनके प्रथम आर्य का नाम पुष्पचुड़ा था।
भगवान पार्श्वनाथ जी ने पौष कृष्ण पक्ष एकादशी को बनारस में दीक्षा की प्राप्ति की थी और दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 2 दिन बाद खीर से इन्होनें प्रथम पारणा किया था। भगवान श्री पार्श्वनाथ जी 30 साल की अवस्था में सांसारिक मोहमाया और गृह का त्याग कर संन्यासी हो गए थे और दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 84 दिन तक कठोर तप करने के बाद चैत्र कृष्ण पक्ष चतुर्थी को बनारस में ही घातकी वृक्ष के नीचे इन्होंने कैवल्यज्ञान को प्राप्त किया था।
भगवान श्री पार्श्वनाथ जी ने ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् 70 वर्षों तक धर्म का प्रचार-प्रसार किया और लोगों को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने का सन्देश दिया और फिर 33 साधुओं के साथ श्रावण शुक्ल पक्ष की अष्टमी को सम्मेद शिखर पर इन्होंने निर्वाण को प्राप्त किया।
Heaven | Pranatadevaloka |
Birthplace | Varanasi |
Diksha Place | Samed Shikharji |
Father’s Name | Asvasenaraja |
Mother’s Name | Vamadevi |
Complexion | black |
Symbol | serpent or snake |
Height | 9 hands or cubits |
Age | 100 common years |
Tree Diksha or Vat Vriksh | Dhataki |
Attendant spirits/ Yaksha | Dharanendra |
Yakshini | Padmawati Mata |
First Arya | Aryadinna |
First Aryika | Pushpachu[d.]a |