बीसवें तीर्थंकर भगवान श्री मुनिसुव्रतनाथ जी स्वामी का जन्म राजगृह के हरिवंश कुल में ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को श्रवण नक्षत्र में हुआ था. इनके माता का नाम माता पद्मावती देवी और पिता का नाम राजा सुमित्रा था. इनके शरीर का वर्ण श्याम वर्ण था जबकि इनका चिन्ह कछुआ था. इनके यक्ष का नाम वरुण था और यक्षिणी का नाम नरदत्ता देवी था. जैन धर्मावलम्बियों के अनुसार इनके गणधरों की कुल संख्या 18 थी, जिनमें मल्लि स्वामी इनके प्रथम गणधर थे. भगवान श्री मुनिसुव्रतनाथ जी स्वामी ने राजगृह में फाल्गुन शुक्ल पक्ष द्वादशी को दीक्षा की प्राप्ति की थी और दीक्षा प्राप्ति के पश्चात 2 दिन बाद खीर से इन्होनें प्रथम पारणा किया था. दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 11 महीने तक कठोर तप करने के बाद फाल्गुन कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को भगवान श्री मुनिसुव्रतनाथ जी स्वामी ने राजगृह में ही चम्पक वृक्ष के नीचे कैवल्यज्ञान की प्राप्ति की थी.
कई वर्षों तक सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने के बाद भगवान श्री मुनिसुव्रतनाथ जी स्वामी ने एक हज़ार साधुओं के साथ सम्मेद शिखर पर ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को निर्वाण को प्राप्त किया था.
Heaven | Aparajita-devaloka |
Birthplace | Rajgir |
Diksha Place | Samed Shikharji |
Father’s Name | Sumitraraja |
Mother’s Name | Padmawati |
Complexion | black |
Symbol | tortoise |
Height | 20 dhanusha |
Age | 30,000 common years |
Tree Diksha or Vat Vriksh | Champaka |
Attendant spirits/ Yaksha | Varuna |
Yakshini | Bahurupini |
First Arya | Malli |
First Aryika | Pushpavati |