बुंदेलखंड की वीर प्रसूता भूमि धर्म परायणता के लिए भी विख्यात रही है। सुख समृद्धि के दिनों में धर्मपरायण जनता को आध्यात्मिक उत्थान की सुविधाएं यहां खूब रही हैं।बुंदेलखंड में अनेक क्षेत्र हैं, जिनमें कुछ क्षेत्रों से लोग भलीभांति परिचित भी हैं।परंतु कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनसे लोग प्रचार -प्रसार के अभाव में अभी तक भली-भांति परिचित नहीं हो सके,अब भी क्षेत्र उपेक्षित दशा में हैं।
क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति:-
श्री दिगंबर जैन सिद्धक्षेत्र उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिला के ग्राम पवा में स्थित है। झांसी से 50 किलोमीटर तथा ललितपुर से 50 किलोमीटर नेशनल हाईवे से पूर्व दिशा की ओर 3 किलोमीटर पर स्थित है। राजमार्ग पर क्षेत्र का साइन बोर्ड लगा है। क्षेत्र तक जाने का मार्ग पक्का है।वाहन आदि की विशेष सुविधा है।निकटस्थ रेलवे स्टेशन तालबेहट एवं बबीना है।तालबेहट स्टेशन पर पठानकोट,पैसेंजर, शटल, साबरमती, उत्कल एवं छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस एवं बबीना रेलवे स्टेशन पर दक्षिण एक्सप्रेस, दादर अमृतसर,छत्तीसगढ़, कुशीनगर,झेलम,साबरमती, पैसेंजर,शटल मालवा,उत्कल एवं अंडमान आदि गाड़ियां रूकती हैं।
पावागिरि तीर्थक्षेत्र परिचय:-
निर्वाणकांण की गाथा 13 के अनुसार यही सिद्धक्षेत्र पावागिरी जी है।जहां चेलना नदी के किनारे पावा की पहाड़ी के शिखर से श्री स्वर्णभद्रादि मुनिराजों ने कर्म शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर निर्वाण पद प्राप्त किया पद प्राप्त किया है।पहाड़ी के शिखर पर प्राचीन मठ आज भी विद्यमान हैं।उक्त क्षेत्र ललितपुर जिले की तालबेहट तहसील में है। झांसी -ललितपुर नेशनल हाईवे पर कडे़सराकलां ग्राम के निकट श्री सिद्धक्षेत्र पावागिरि का साइन बोर्ड लगा है।वहां से 3 किलोमीटर पूर्व की ओर स्थित है,रास्ता पक्का है।जहां पहाड़ की तलहटी में लगभग 800 वर्ष पूर्व देवपत-खेवपत द्वारा निर्मित प्राचीन गुफा(भौंयरे) में संवत 299, 1266,1345 की प्रतिष्ठित प्राचीन देशी पाषाण की श्यामवर्ण अतिशय युक्त कला व सौंदर्य की अत्यंत मनोहारी 6 मूर्तियां विराजमान हैं।जिनकी प्रतिष्ठा पवा में हुई। ऐसी प्रतिमाओं पर लेख अंकित है।साथ ही मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ की अतिशय युक्त प्रतिमा के दर्शन मात्र से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।इसके अलावा चार भव्य जिनालय, मानस्तंभ, पहाड़ के ऊपर चरण छतरी एवं क्षेत्र से तपस्या कर मोक्ष पधारे मुनिराजों के मंदिर दर्शनीय हैं।क्षेत्र का प्राकृतिक सौंदर्य अवर्णनीय है।क्षेत्र के आदीष्टदेव (श्री पार्श्वनाथ देव)के द्वारा भूत- प्रेत व्याधि आदि दूर होकर सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।यहां एक विशाल प्रवचन हॉल बनाया गया है।जिसमें ऊपरी मंजिल पर 24 मंदिर का निर्माण कराया गया है इसमें धातु की चन्द्रप्रभु भगवान मूर्ति स्थापित कराई गई है।ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के अंतर्गत बताया गया है कि जैन धर्म के 8 वें तीर्थंकर भगवान श्री चंद्रप्रभु का दिव्य समवशरण (जिला-दतिया अन्तर्गत)श्री सोनागिरी आया था।उसी समवशरण में श्री स्वर्णभद्र आदि चारों मुनिराजों ने वहाँ दिगम्बरी दीक्षा ग्रहण की थी।और वहाँ से चलकर चेलना नदी के किनारे स्थित पावा की पहाड़ी पर तपश्चरण कर सिद्ध पद प्राप्त किया था।तभी से यह पावागिरी सिद्धक्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है।
मुंबई -दिल्ली मध्य रेलवे लाइन पर बीना से झांसी तथा झांसी से बीना की ओर से यात्रा करने वाले व्यक्तियों को तालबेहट -बबीना रेलवे स्टेशन पर उतरकर ऑटो, बसों द्वारा क्षेत्र तक जाना होता है। नेशनल हाईवे पर पावागिरि साइन बोर्ड पर उतरने वाले यात्रियों को सिद्ध क्षेत्र की नि:शुल्क गाड़ी प्राप्त होती है। क्षेत्र पर आवास एवं भोजन की समुचित व्यवस्था है।क्षेत्र पर प्रतिवर्ष अगहन वदी 2 से अगहनवदी 5 तक वार्षिक मेला संपन्न होता है।पावागिरी के दर्शनार्थ आये बंधुओं को अनेक तीर्थ स्थलों की वंदना का लाभ अनायास ही प्राप्त हो जाता है।
अतिशय युक्त है तीर्थक्षेत् पावागिरि:-
क्षेत्र श्री पार्श्व देव का प्रभाव अधिक है वे पूरे बुंदेलखंड में प्रसिद्ध हैं।लोग उन्हें श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजते हैं।वे जो कहते हैं प्राय: सत्य निकलता है। अवला,वृद्ध,नर- नारी बिना धर्म भेदभाव के इन्हें पूजते हैं।इन पर श्रद्धा विश्वास रखते हैं।अनेक क्षेत्रों से धर्म परायण श्रद्धालु अपने मनोरथों की पूर्ति हेतु आते हैं तथा श्री पार्श्वनाथ द्वारा सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
तीर्थ क्षेत्र पर है विशेष महत्व:-
यहां पर प्रत्येक माह की 15 तारीख को श्री पार्श्वदेव का दरबार लगता है।
तीर्थक्षेत्र की आर्थिक व्यवस्था में करें सहयोग :-
क्षेत्र की आमदनी का प्रमुख स्रोत दातारों द्वारा दी जाने वाली दान राशि है जो विशेषकर मेले पर पधारने वाले यात्रियों से होती है।उक्त क्षेत्र उत्तर प्रदेश के पिछड़े हुए भाग ललितपुर जिले के अंतर्गत है तथा अन्य क्षेत्रों की भांति उतनी आय नहीं है जितनी क्षेत्र की चौमुखी विकास के लिए आवश्यक है। समाज से अनुरोध है कि परम पवित्र क्षेत्र की रक्षा और व्यवस्था के लिए मुक्त हस्त से दान देकर सातिशय पुण्य अर्जित करें।नम्र निवेदन है कि क्षेत्र के विकास में आपका सहयोग जरूरी है। इसलिए हम कोई ऐसा कार्य न करें जो क्षेत्र की उन्नति में अंतराय का कारण बनें।
यहाँ पर १३वीं-१४वीं शताब्दी की मनोज्ञ मूर्तियाँ और तीन नवीन जिनालय हैं। लगभग १० मीटर ऊँचा मानस्तंभ है। बाहुबली स्वामी की एक मूर्ति भी विराजमान की गई है। इस क्षेत्र की मान्यता अतिशयक्षेत्र के रूप में रही है। कुछ समय से कतिपय विद्वानों का मत है कि स्वर्णभद्र आदि मुनि जिस पावागिरि से मोक्ष गए थे वह स्थान यही है। यहाँ मुनियों की छत्रियाँ भी बनी हुई हैं। यहाँ आवास की व्यवस्था है।
आओ चलें हम तीर्थ यात्रा पर – “तीरथ कर लो पुण्य कमा लो” प्रभु के गुण गा लो”
“स्वर्ण भद्र आदि मुनि चार,पावागिरि वर शिखर मंझार। चेलना नदी तीर के पास,मुक्ति गए वंदों नित तास।।”
— शिक्षक पुष्पेंद्र कुमार जैन
Here exists an underground cave built by Shri Deopat Kheopat about 750 years ago. It is supposed that Swarnabhadra, Gunbhadra & Veerbhadra accepted penance near Lord Chandraprabhu (8th Teerthankar) and attained salvation from Pawagiri near Chelna River.
Here an idol of Principal Deity Lord Parshvanath is full of miracle. A Ghost named Bhure Baba safe guards the entire field and fulfills the desires of pilgrims. At the top of hill an ancient building still exists.
श्री पावागिरी मार्गदर्शन उत्तर मध्य रेलवे एवं मोटर मार्ग-
रेलवे लाइन-बीना- ललितपुर -तालबेहट- बबीना- झांसी सोनागिर- ग्वालियर
नेशनल हाईवे -ललितपुर -तालबेहट -पावागिरि स्टैंड झांसी -बबीना-झांसी-सोनागिर- ग्वालियर
How to Reach:
By Road: Busses are available from Lalitpur, Talbehat, Jhansi, Bavina etc.
By Train: Lalitpur, Jhansi-50 km, Bavina-20 km.
Airport: Khajuraho.
Nearby Places:
Lalitpur,
Sonagiriji,
Deogarh
Aharji,
Banpur,
Madanpur,