जैन संग्रहालय जैन धर्म की मूर्तियों के संरक्षण और प्रदर्शन के लिए समर्पित है। यह प्रदर्शन के लिए 1987 में खोला गया था। यह जैन मंदिर के परिसर में ही स्थित है। संग्रहालय की गोलाकार इमारत को स्थानीय लोग साहू शांतिप्रसाद जैन कला संग्रहालय भी कहते हैं।
इस संग्रहालय में जैन धर्म की मूर्तियों का बहुत बड़ा कलेक्शन है। यहाँ ऐसी सौ से भी ज़्यादा मूर्तियाँ हैं। इस संग्रहालय में एक गोलाकार आधुनिक गैलरी है। अनेक मूर्तियों जैसे 24 तीर्थंकर, यक्षी तथा जैन संस्कृति और परंपरा से संबंधित बहुत सारी अन्य महत्वपूर्ण चित्रों से यह गैलरी भरी हुई है।
इस संग्रहालय का प्रवेशद्वार वाकई देखने लायक है। यहाँ आने वालों का स्वागत सीढि़यों के दोनों ओर लगाई गई ’मकर तोरण’ से किया जाता है। इस जगह की बेहतरीन कलेक्शन यहाँ की यात्रा को खुशनुमा बना देती है।
पार्श्वनाथ का मंदिर
पार्श्वनाथ मंदिर मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध जैन धार्मिक स्थलों में से एक है। मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले में स्थित है, भारत के खूबसूरत मंदिरों का नगर ‘खजुराहो’, जो संसार भर में अपनी उत्कृष्ट कला के लिए जाना जाता है। खजुराहो एक छोटा-सा क़स्बा है, परंतु विश्व के मानचित्र में इसने अपनी एक अलग पहचान स्थापित की है। यहाँ के मंदिरों में पूर्वी समूह के अंतर्गत आने वाला ‘पार्श्वनाथ मन्दिर’ बहुत महत्त्वपूर्ण है।
शांति नाथ का मंदिर
जैन धर्म से संबंधित शांतिनाथ मंदिर का निर्माण काल १०२८ ई. सन् है। मंदिर का मुख पूर्वी ओर है। इसमें भगवान शांतिनाथ जी की १४’ ऊँची प्रतिमाएँ विद्यमान हैं। मंदिर के तीन ओर खुला प्रांगण है, जहाँ लघु मंदिर में अन्य जैन प्रतिमाएँ स्थापित की गई है। मंदिर द्वार के दोनों ओर दो शाखाओं में द्वार की चौखट पर मिथुन विराजमान है। स्थानीय मतों के अनुसार मंदिर का वास्तविक द्वार नष्ट हो जाने के पश्चात निर्मित किया था, अतः यहाँ वर्तमान काल में मूर्तियाँ सही क्रम में तथा अपने वास्तविक स्वरुप में स्थापित नहीं हो पाई है। मंदिर का शिखर भाग भी प्राचीन नहीं दिखाई देता है, इसलिए कुछ इतिहासकार इसे आधुनिक जैन मंदिर मानते हैं। मंदिर की पुरातन मूर्तियों और प्रस्तरों को सजाकर वर्तमान रुप दिया गया है।
आदिनाथ का मंदिर
पुरातत्व रुचि का महत्वपूर्ण आदिनाथ मंदिर १००० ई. सन् के आस- पास का है। मंदिर निरंधार- प्रासाद तथा सप्तरथ प्रकृति का है। यह मंदिर ऊँची जगती पर निर्मित है एवं पार्श्वनाथ से मिला हुआ है। सामान्य योजना, निर्माणशैली तथा शिल्प शैली में यह छोटा- सा मंदिर वामन मंदिर के समान ही है।
Jain Group of Temples : south east of Khajuraho village, the road ends in front of the complex of jain temples.
A gateway leads into the enclosed complex, to one side of which is the Dharamshala, the hostel for visiting devotees. To the left is a temple that is in worship, called the shantinath. This temple is an assemblage of the fragmnets, pillars and images from older temples and is built around a courtyard. In the central niche is the tall ( 4.5 metre) image od Adhinath. the path leads to another enclosure within which are two interesting temples.
Parshvanath Temple : This temple is built on a low plinth, unlike the high platforms of all other temples at khajuraho, which makes it much easier to study the sculptures here. The temple is rectangular in shape with few star – like projections that add so much variety to the other temples of this period. The parshvanath Temple has a porch on the east side that leads into the mandap and sanctum.
Adinath Temple : Standing beside the parshvanath temple on the north side, is this expuisite little temple. The temple exterior has beeen divivided into an adhishthana, above which are two rows of sculptures and a narrow band of celestial musicians and garland bearers. the first perception of the figurative art of the adinath temple is that it is so elegant and refined, so different from its heavier, stubbier counterparts in the Parshvanath temple.
How to reach:
Bus: from Satna, Mahoba, Jhansi, busses are available for Khajuraho
Train: Jhansi 172 KM (For Delhi-Chennai Trains), Satna 117 KM (For Mumbai-Kolkata Trains) Mahoba 60 KM (For Delhi-Chennai Trains)
By Air: Flights are vailable from Delhi, Agra, Mumbai and Varanasi.
Nearby Places:
Drongiri,
Shreyansgiri,
Papaura,
Seron,
Deogarh
Pandav Waterfall,
Ranch Waterfal,
Panna National Park,
Gandev Dham.