जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए और उन्ही में 12 वे तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य स्वामी है, जिनका पांचो कल्याणक बिहार प्रांत के चम्पानगरी में है | पांच कल्याणक में गर्भ और जन्म भागलपुर जिला के चम्पापुरी में हुआ, जिसे स्थानीय लोग चम्पापुर को नाथनगर भी कहते है | प्राचीनकाल में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव) जी के समय विभाजित 52 जनपद में से यह चम्पानगरी क्षेत्र अंग जनपद के नाम से प्रसिद्ध रहा है | इसलिए मंदारगिरी को अंग क्षेत्र का प्रसिद्ध पर्यटन स्थली कहा जाता है | यह चम्पानगरी प्राचीन समय में एक विराट नगर था , जो वर्तमान में विभिन्न जिलो में विभाजित है जिसमे भगवान वासुपूज्य स्वामी के नगरी में प्रमुख चम्पापुरी और मंदारगिरी है|
भगवान वासुपूज्य स्वामी जन्म से ही वैरागी थे, जिन्होंने वैराग्य अवस्था में भ्रमण के क्रम में चम्पापुरी से मंदारगिरी पहुुँचे थे , जहाँ उन्होंने तप , केवल ज्ञान , और मोक्ष को प्राप्त किया , और ये तीन कल्याणक बिहार प्रांत के बांका जिला मंदारगिरी में हुआ | जिसे जैन धर्मावलम्बी भगवान वासुपूज्य के क्रमश: तप कल्याणक , ज्ञान कल्याणक , और मोक्ष कल्याणक मंदारगिरी को कहते है |
भगवान वासुपूज्य का जन्म चम्पापुरी के इक्ष्वाकु वंश के महान राजा वसुपूज्य की पत्नी जया देवी के गर्भ से फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शतभिषा नक्षत्र में हुआ था | भगवान वासुपूज्य ने फाल्गुन अमवस्या तिथि को ही दीक्षा प्राप्त की थी | दीक्षा प्राप्त के पश्चात माघशुक्ल दितीया के एक माह की छदमस्थ साधना कठिन तप करने के बाद पाटल वृक्ष के नीचे वासुपूज्य स्वामी को ‘कैवल्य ज्ञान ‘ की प्राप्ति हुई थी, वे अपने अहिंषात्मक ज्ञान और विचार को पुरे संसार के बीच बाँटा |
जैन धर्म के अनुसार भगवान वासुपूज्य के शरीर का वर्ण ‘लाल‘ और चिन्ह ‘भैंसा’ था , और इनकी ऊंचाई लगभग 70 धनुष थी |
वासुपूज्य जन्म से ही वैरागी थे, इसलिए इन्होने वैवाहिक प्रस्तावों को स्वीकार नही किया | राजपद से इंकार कर साधारण जीवन व्यतीत किया | फाल्गुण कृष्ण अमावस्या को वासुपूज्य भगवान ने प्रवज्या में प्रवेश किया |
भगवान वासुपूज्य जी ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी के दिन मनोहर उद्यान में 94 वे मुनियो के साथ मंदारगिरी से मोक्ष को प्राप्त किया | पौराणिक कथा के अनुसार वर्तमान में पापहरणी कहा जाने वाला मंदारगिरी तलहटी मनोहर सरोवर के नाम से जाना जाता था , उसी के नाम से वासुपूज्य के निर्वाण भूमि मनोहर उद्यान कहलायी |
भगवान वासुपूज्य स्वामी ने दीक्षा के पश्चात प्रथम आहार मंदारगिरी में ही लिया था | जो आज मंदारगिरी में मनोहर उद्यान के रूप में बारामती मंदिर के नाम से अवस्थित है |
जैन धर्म ग्रन्थ के अनुसार इनके धर्म पररवार में 62 प्रमुख गन्धर , जिसमे 72 हज़ार श्रमण , 1 लाख श्रमणीया , 2 लाख 15 हज़ार श्रावक एवं 4 लाख 36 हज़ार श्राविकाएं थी |
जैन समुदाय के अनुसार भगवान वासुपूज्य हिंसा के निंदक थे , उनका मानना था कि अपने स्वार्थ के लिए अनेको मूक पशुओ की बलि चढ़ाना अज्ञानपूर्ण एवं क्रूरतापूर्ण कार्य है | यह प्रतिबंध होना चाहिए , ईश्वर इस हिंसक कार्य ,रक्त प्रवाह से खुश नही होते क्योंकि ईश्वर तो प्रेम प्रवाह से प्रसन्न होते है|
मंदारगिरी के बौंसी बाजार स्थित एक विशाल ऊँचे शिखर का दिगम्बर जैन मंदिर है जो तीर्थयात्रियों को काफी आकर्षित करती है। यह मंदिर का शिखर लगभग 5 किलोमीटर मेन रोड से ही नजर आता है। मंदिर के बाहरी ओर कांच की नक्काशी की गई जो बहुत ही खूबसूरत लगती है।
बताया जाता है कि यह मंदिर और इसके नक्काशी सदियों वर्षों प्राचीन है जो आकर्षण का केंद्र बन चुका है। इसी मंदिर से 500 मीटर की दूरी पर पूर्ण पत्थर से निर्मित मंदिर बारामति मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है , पूर्ण पत्थर से निर्मित होने के कारण इसे लोग पत्थर मंदिर के नाम से भी जानते है।
मंदार पर्वत शिखर स्थित भगवान वासुपूज्य की कल्याणक स्थली पर बना दिगम्बर जैन मंदिर का शिखर पर्वत की शोभा बढ़ाती है जो कई किलोमीटर दूर से ही प्रतीत होता है।
मंदारगिरी के सुरम्य वादियों का लुफ्त उठाने तथा जैन तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य स्वामी की निर्वाण भूमि पर हर जैन धर्मावलंबी अपने जीवन में शीश टेकने एकबार जरूर यहाँ आते है और उनकी मनोकामना पूर्ण भी होती है साथ ही साथ यह पवित्र पावन स्थली जैन मतावलंबियों के लिये सिद्ध क्षेत्र होने के कारण विशेष तौर पर आस्था का केंद्र है।
कैसे पहुँचे-
भागलपुर से मंदारहिल – 50 कि•मी•
जसीडिह से 75 किलोमीटर ।