सब जानते हैं कि मांसाहार का व्यवसाय क्रूरता और हिंसा पर टिका है। लेकिन जब बात अण्डों की होती है तो कई बार वह क्रूरता और व्यवसायिक हिंसा पर्दे की ओट में छिप जाती है और कुछ लोग अंडे को शाकाहारी बताने के प्रचार को सच मान बैठते हैं।
अंडा किसी भी तरह शाकाहारी नहीं होता
अंडे दो तरह के होते है, एक वे जिसमें से चूजे निकल सकते है तथा दूसरे वे जिनसे बच्चे नहीं निकलते। निषेचित और अनिषेचित। मुर्गे के संसर्ग से मुर्गी अंडे दे सकती है किन्तु बिना संसर्ग के अंडा मात्र मुर्गी के रज-स्राव से बनता है, मासिक-धर्म की भांति ही यह अंडा मुर्गी की आन्तरिक अपशिष्ट का परिणाम होता है। आजकल इन्ही अंडो को व्यापारिक स्वार्थवश लोग अहिंसक, शाकाहारी आदि भ्रामक नामों से पुकारते है। यह अंडे किसी भी तरह से वनस्पति नहीं है।और न ही यह शाक की तरह, सौर किरणें, जल व वायु से अपना भोजन बनाकर उत्पन्न होते है। अधिक से अधिक इसे मुर्गी का अपरिपक्व मूर्दा भ्रूण कह सकते है।
1962 मॆं यूनिसेफ ने एक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें अंडों को लोकप्रिय बनाने के व्यवसायिक उद्देश्य से अनिषेचित (INFERTILE) अंडों को शाकाहारी अंडे (VEGETARIAN EGG) जैसा मिथ्या नाम देकर भारत के शाकाहारी समाज में भ्रम फैला दिया। 1971 में मिशिगन यूनिवर्सिटी(अमेरिका) के वैज्ञानिक डॉ0 फिलिप जे0 स्केम्बेल ने ‘पॉलट्री फीड्स एंड न्युट्रीन’ नामक पुस्तक में यह सिद्ध किया कि “संसार का कोई भी अंडा निर्जीव नहीं होता, फिर चाहे वह निषेचित (सेने योग्य) हो या अनिषेचित, अनिषेचित अंडे में भी जीवन होता है, वह एक स्वतंत्र जीव होता है। अंडे के ऊपरी भाग पर हजारो सूक्ष्म छिद्र होते है जिनमे अनिषेचित अंडे का जीव श्वास लेता है”, जब तक श्वासोच्छवास की क्रिया होती है, अंडा सडन-गलन से मुक्त रहता है। यह उसमें जीवन होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है। “यदि ऐसे अंडे में श्वासोच्छवास की क्रिया बंद हो जाए तो अंडा शीघ्र ही सड जाता है।” इसतरह अंडे को निर्जीव और शाकाहार समकक्ष मनवाना बहुत बडी धूर्तता है, यह मात्र उत्पादकों के व्यापारिक स्वार्थ के खातिर प्रचारित भ्रांति से अधिक कुछ भी नहीं है।
हिंसा और अत्याचार की उपज है अंडा !!
बहुधा यह सुनने में आता है की अनिषेचित अंडे अहिंसक होते है। लेकिन यदि यह मालूम हो जाय कि उनके उत्पादन की विधि कितनी क्रूरता से परिपूर्ण है और भारतीय मूल्यों जैसे अहिंसा और करुणा के विपरीत है तो बहुत से लोग अंडा सेवन ही बंद कर देगे। अमेरिका के विश्वविख्यात लेखक जान राबिन्स ने अपनी प्रसिद्द पुस्तक “दैट फार ए न्यू अमेरिका” में लिखा है कि अंडों की फेक्ट्रीयो में स्थापित पिजरों में, इतनी अधिक मुर्गियां भर दी जाती है कि वे पंख भी नहीं फडफड़ा सकती और तंग जगह के कारण वे आपस में चोचे मारती है, जख्मी होती है, गुस्सा करती है और कष्ट भोगती है। मुर्गी को लगातार २४ घंटे लोहे की सलाख पर बैठे रहना पड़ता है, उसी हालात में एक विशेष मशीन से रात में एक साथ हजारो मुर्गियों की चोचे काट दी जाती है। गरम तपते लाल औजारों से उनके पंख भी कतर दिए जाते है।
मुर्गियां अंडे अपनी स्वेच्छा से नहीं देती, बल्कि उन्हें विशिष्ट हार्मोन्स और एग-फर्म्युलेशन के इन्जेक्शन दिए जाते है। तब जाकर मुर्गीयाँ लगातार अंडे दे पाती है। अंडे प्राप्त होते ही उन्हें इन्क्यूबेटर के हवाले कर दिया जाता है, ताकि चूजा २१ दिन की बज़ाय मात्र १८ दिन में ही निकल आए। बाहर आते ही नर तथा मादा चूजों को अलग-अलग कर दिया जाता है। मादा चूजों को शीघ्र जवान करने के लिए, उन्हें विशेष प्रकार की खुराक दी जाती है। साथ ही इन्हें चौबीसो घंटे तेज प्रकाश में रखकर, सोने नहीं दिया जाता ताकि वे रात दिन खा-खा कर शीघ्र रज-स्राव कर अंडा देने लायक हो जाय। उसके बाद भी उन्हें लगातार तेज रोशनी में रखा जाता है ताकि खाती रहे और प्रतिदिन अंडा देती रहे।तंग जगह में रखा जाता है कि हिलडुल भी न सके,और अंडे को क्षति न पहुँचे। आप समझ सकते है की जल्दी और मशीनीकृत तरीके से अंडा उत्पन्न करने की यह व्यवस्था कितनी क्रूर और हिंसात्मक है्।
अंडो से कई बीमारियाँ
हाल ही में हुआ बर्ड फ्ल्यू और साल्मानोला बीमारी ने समस्त विश्व को स्तम्भित कर दिया है कि मुर्गियों को होने वाली कई बीमारियों के कारण अन्डो से यह बीमारियाँ, मनुष्य में भी प्रवेश करती है। अंडा भोजियों को यह भी नहीं मालूम कि इसमें हानिकारक कोलेस्ट्राल की बहुत अधिक मात्रा होती है। अंडो के सेवन से आंतो में सड़न और तपेदिक की सम्भावनाएँ बहुत ही बढ़ जाती है। अंडे की सफ़ेद जर्दी से पेप्सीन इन्जाइम के विरुद्ध, विपरित प्रतिक्रिया होती है।
जर्मनी के प्रोफेसर एग्नरबर्ग का मानना है कि अंडा 51.83% कफ पैदा करता है। वह शरीर के पोषक तत्वों को असंतुलित कर देता है।
कैथराइन निम्मो तथा डाक्टर जे एम् विलिकाज ने एक सम्मिलित रिपोर्ट में कहा है कि अंडा ह्रदय रोग और लकवे आदि के लिए एक जिम्मेदार कारक है। यह बात १९८५ इस्वी के नोबल पुरस्कार विजेता, डॉक्टर ब्राउन और डॉ0 गोल्ड स्टाइन ने कही कि अंडों में सबसे अधिक कोलेस्ट्रोल होता है। जिससे उत्पन्न ह्रदय रोग के कारण बहुत अधिक मौते होती है। इंग्लेंड के डाक्टर आर जे विलियम ने कहा है कि जो लोग आज अंडा खाकर स्वस्थ बने रहने की कल्पना कर रहे है, वे कल लकवा, एग्जिमा, एन्जाईना जैसे रोगों के शिकार हो सकते है। फिर अंडे में जरा सा भी फाईबर नहीं होता, जो आंतो में सड़न की रोकथाम में सहायक है। साथ ही कार्बोहाईड्रेट जो शरीर में स्फूर्ति देता है, करीबन शून्य ही होता है।
जाने-माने हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. के.के. अग्रवाल का कहना है कि एक अंडे में 213 मिलीग्राम कॉलेस्ट्रॉल होता है यानी आठ से नौ चम्मच मक्खन के बराबर, क्योंकि एक चम्मच मक्खन में 25 मिलीग्राम कॉलेस्ट्रॉल होता है। इसलिए सिर्फ शुगर, हाई बीपी और हार्ट पेशेंट्स को ही इन्हें दूर से सलाम नहीं करना चाहिए बल्कि सामान्य सेहत वाले लोगों को भी दूर रहना चाहिए। अगर डॉक्टर प्रोटीन की जरूरत भी बताये तो प्रोटीन की प्रतिपूर्ति, शाकाहारी माध्यमों – मूँगफली, सोयाबीन, दालें, पनीर, दूध व मेवे आदि से करना अधिक आरोग्यप्रद है।
इग्लेंड के डॉ0 आर0 जे0 विलियम का निष्कर्ष है कि सम्भव है अंडा खाने वाले भले शुरू में क्षणिक आवेशात्मक चुस्ती-फुर्ती अनुभव करें किंतु बाद में उन्हें हृदय रोग, एक्ज़ीमा, लकवा, जैसे भयानक रोगों का शिकार होना पड़ सकता है।
इंगलैंड के मशहूर चिकित्सक डॉ0 राबर्ट ग्रास तथा प्रो0 ओकासा डेविडसन इरविंग के अनुसार अंडे खाने से पेचिश तथा मंदाग्नि जैसी बिमारियों की प्रबल सम्भावनाएं होती है। जर्मनी के प्रो0 एग्लर वर्ग का निष्कर्ष है कि अंडा 51.83 प्रतिशत कफ पैदा करता है, जो शरीर के पोषक तत्वों को असंतुलित करने में मुख्य घटक है। फ्लोरिडा के कृषि विभाग की हेल्थ बुलेटिन के अनुसार, अंडों में 30 प्रतिशत DDT पाया जाता है । जिस प्रकार पॉल्ट्रीज को रखा जाता है, उस प्रक्रिया के कारण DDT मुर्गी की आंतों में घुल जाता है अंडे के खोल में 15000 सूक्ष्म छिद्र होते हैं जो सूक्ष्मदर्शी यन्त्र द्वारा आसानी से देखे जा सकते हैं उन छिद्रों द्वारा DDT का विष अंडों के माध्यम से मानव शरीर में पहुंच जाता है। जो कैंसर की सम्भावनाएँ कईं गुना बढ़ा देता है। हाल ही में इंगलैंड के डॉक्टरों ने सचेत किया है कि ‘सालमोनेला एन्टरईटिस’, जिसका सीधा संबन्ध अंडों से है, के कारण लाखों लोग इंगलैंड में एक जहरीली महामारी का शिकार हो रहे है। भारत में ऐसी कोई परीक्षण विधि नहीं है कि सड़े अंडों की पहचान की जा सके। और ऐसे सड़े अंडों के सेवन से उत्पन्न होने वाले, भयंकर रोगों की रोकथाम सम्भव हो सके।
पौष्टिकता एवं उर्जा के प्रचार में नहीं है दम
विज्ञापनों के माध्यम से यह भ्रम बड़ी तेजी से फैलाया जा रहा है कि शाकाहारी खाद्यानो की तुलना में, अंडे में अधिक प्रोटीन है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संघठन के तुलनात्मक चार्ट से यह बात साफ है कि खनिज, लवण, प्रोटीन, कैलोरी, रेशे और कर्बोहाड्रेड आदि की दृष्टि से शाकाहार ही हमारे लिए अधिक उपयुक्त, पोषक और श्रेष्ठ है।
अंडे से कार्य-क्षमता, केवल क्षणिक तौर पर बढ़ती सी प्रतीत होती है, पर स्टेमिना नहीं बढ़ता। फार्मिंग से आए अंडे तो केमिकल की वजह से ज्यादा ही दूषित या जहरीले हो जाते हैं। सामान्यतया गर्मियों में पाचनतंत्र कमजोर होता है, ऐसे में अंडे ज्यादा कैलरी व गरिष्ठ होने के कारण और भी ज्यादा नुकसानदेय साबित होते हैं।
अमेरिका के डॉ0 ई0 बी0 एमारी तथा इग्लेंड के डॉ0 इन्हा ने अपनी विश्व विख्यात पुस्तकों में साफ माना है कि अंडा मनुष्य के लिये ज़हर है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि प्रोटीन के लिए, सभी तरह की दालें, पनीर व दूध से बनी चीजें अंडे का श्रेष्ठ विकल्प होती हैं। अंडों की जगह उनका इस्तेमाल होना चाहिए। दूध या स्किम्ड मिल्क, मूंगफली, मेवे में अखरोट, बादाम, काजू व हरी सब्जियां, दही, सलाद और फल भी ले सकते हैं। उनका कहना है कि जीव-जंतुओं से प्राप्त भोजन से कॉलेस्ट्रॉल अधिक बढ़ता है जबकि पेड़-पौधों से मिलने वाले भोजन से बहुत ही कम।
न हमारे शरीर को अंडे खाना ज़रूरी है और न हमारे मन को जीवहिंसा का सहभागी बनना। हमारा अनुरोध है कि निरामिष भोजन अपनायें और स्वस्थ रहें।
Source: http://niraamish.blogspot.in/2011/12/egg-symbol-of-cruelty.html