जैन धर्म के पाँचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ हैं। सदैव अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश देने वाले सुमतिनाथ जी का जन्म वैशाख शुक्ल अष्टमी को मघा नक्षत्र में अयोध्या नगरी में हुआ था। इनके माता पिता बनने का सौभाग्य इक्ष्वाकु वंश के राजा मेघप्रय और रानी सुमंगला को मिला। प्रभु के शरीर का वर्ण सुवर्ण (सुनहरा) था और इनका चिह्न चकवा था। प्रभु सुमतिनाथ के यक्ष, यक्षिणी का नाम तुम्बुरव, वज्रांकुशा था।
युवावस्था में भगवान सुमतिनाथ ने वैवाहिक जीवन संवहन किया। प्रभु सुमतिनाथ जी ने राजपद का पुत्रवत पालन किया। पुत्र को राजपाट सौंप कर भगवान सुमतिनाथ ने वैशाख शुक्ल नवमी को एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा अंगीकार की।
बीस वर्षों की साधना के उपरांत भगवान सुमतिनाथ ने ‘कैवल्य’ प्राप्त कर चतुर्विध तीर्थ की स्थापना की और तीर्थंकर पद पर आरूढ़ हुए। असंख्य मुमुक्षुओं के लिए कल्याण का मार्ग प्रशस्त करके चैत्र शुक्ल एकादशी को ही सम्मेद शिखर पर निर्वाण को प्राप्त किया।
Heaven | Jayantavimana |
Birthplace | Ayodhya |
Diksha Place | Samed Shikharji |
Father’s Name | Megharaja |
Mother’s Name | Mangala |
Complexion | Golden |
Symbol | red goose |
Height | 300 dhanusha |
Age | 4,000,000 purva |
Tree Diksha or Vat Vriksh | Sala |
Attendant spirits/ Yaksha | Purushadatta |
Yakshini | Tumburu and Mahakali |
First Arya | Charama |
First Aryika | Kasyapi |