7 Suparshvanath Bhagwan


सातवें तीर्थंकर भगवान श्री सुपार्श्वनाथ जी का जन्म वाराणसी के इक्ष्वाकुवंश में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को विशाखा नक्षत्र में हुआ था. इनके माता का नाम माता पृथ्वी देवी और पिता का नाम राजा प्रतिष्ठ था. इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण था और इनका चिन्ह स्वस्तिक था. इनके यक्ष का नाम मातंग और यक्षिणी का नाम शांता देवी था. जैन धर्मावलम्बियों के मतानुसार भगवान श्री सुपार्श्वनाथ जी के कुल गणधरों की संख्या 95 थी, जिनमें विदर्भ स्वामी इनके प्रथम गणधर थे. ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी तिथि को वाराणसी में ही इन्होनें दीक्षा प्राप्ति की और दीक्षा प्राप्ति के 2 दिन बाद इन्होनें खीर से प्रथम पारणा किया. दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् 9 महीने तक कठोर तप करने के बाद फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी को धर्म नगरी वाराणसी में ही शिरीष वृक्ष के नीचे इन्हें कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी. भगवान श्री सुपार्श्वनाथ जी ने हमेशा सत्य का समर्थन किया और अपने अनुयायियों को अनर्थ हिंसा से बचने और न्याय के मूल्य को समझने का सन्देश दिया.
फाल्गुन कृष्ण पक्ष सप्तमी के दिन भगवान श्री सुपार्श्वनाथ ने सम्मेद शिखर पर निर्वाण को प्राप्त किया था.

 

Heaven Madhyamagraiveka
Birthplace Varanasi
Diksha Place Samed Shikharji
Father’s Name Pratishthasen
Mother’s Name Pruthvi devi
Complexion emerald
Symbol swastika
Height 200 dhanusha
Age 2,000,000 purva
Tree Diksha or Vat Vriksh Sirisha
Attendant spirits/ Yaksha Matanga and Santa
Yakshini Varanandi and Kali
First Arya Vidirbha
First Aryika Soma

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