राजस्थान के डगार निवासी जैन बन्धु श्री नाथुलालजी नवाड़िया जिन्हें किसी जहरीले काटे से असाध्य रोग ने घेर लिया। जिससे दोनों हाथों की अंगुलियो से लेकर कोहनी तक का पूरा भाग काला व मवादयुक्त जहरीला होने लगा।
शहर के बड़े हॉस्पिटल में उच्च स्तर पर उपचार हो रहा था। आईसीयू वार्ड में शरीर पर उपचार हेतु अनेक नलिया लगी हुई थी। मुह पर भी होठो पर जहर का असर आने लगा था। अंत मे बड़े चिकित्सको ने सुझाव दिया कि जहर युक्त दोनो हाथो को काटने पर ही जान बचाई जा सकती अन्यथा कोई विकल्प नही। जिस पर श्री नाथूलाल जी ने कहा मुझे अब कोई उपचार नही करवाना सीधे मेरे आराध्य गरुवर चतुर्थ पट्टचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरूराज के चरणों मे ले जाकर रख दो। जिस पर परिवार जनों को चिकित्सको ने कहा की आईसीयू से निकालते ही पांच – दस मिनिट ही इनकी जिंदगी चल सकेगी इससे ज्यादा कोई सम्भावना नही
लेकिन नाथूलाल जी नें दृढ़ इच्छा जताते हुए कहा कि जिंदगी पांच मिनट की बची हो या पचास मिनिट की मुझे गुरु चरणों मे सामाधि पूर्वक मरण करना है ।परिवार जनों ने उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए आचार्य श्री को इस विषय से अवगत किया।जिस पर तपस्वी सम्राट के श्रेष्ठ नन्दन करुणामूर्ति-वात्सल्य भंडार आचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरूराज ने कहा उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज करके यहाँ ले आये कुछ जीवन राशि शेष है अतः अभी उन्हें कुछ नही होगा उन्हें क्षुल्लक दीक्षा देकर संयम प्रदान किया जाएगा।
ये चर्चा अस्पताल में आईसीयू वार्ड में गम्भीर रूप से भर्ती नाथूलाल जी तक पहुची जिसे सुनकर वे अत्यंत हर्षित होकर अपने आत्मबल को ओर मजबूत किया वही अस्पताल के चिकित्सको ने परिवार जनों को कहा कि डिस्चार्ज के बाद घण्टे का जीवन भी मुश्किल है। इतने दवाओं व इमरजेंसी सुविधा में जिनका जीवन चल रहा हो वो बाहर कैसे जी पाएंगे लेकिन जैसी आपकी मर्जी अन्तः नाथूलाल जी को अस्पताल से निकालकर गांधीनगर के सेक्टर 11 में विद्यमान संयम भूषण चतुर्थ पट्टचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरूराज के पावन चरणों मे लाया गया। जहाँ पूज्य आचार्य श्री ने पिच्छी से उन्हें आशीष दिया और मनोबल मजबूत रखते हुए संयम ग्रहण की स्वीकृति पूछी जिसपर उन्होंने व परिवार जनों ने सहर्ष प्रदान कर दी।
अब गुरुवर की ऐसी अनूठी कृपा बरसी की जो इंसान अस्पताल के इमरजेंसी आईसीयू वार्ड में भर्ती था।शरीर के हर भाग में नलियों लगाई गयी थी चिकित्सको ने घण्टे का जीवन भी मुश्किल बता दिया था वो इंसान हर्षित मुद्रा में आचार्य श्री के वरदानदायी हस्तकमलो से क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण कर रहा था।जैसे आचार्य श्री के द्वारा सुझाई शरीर और आत्मा कें भेद विज्ञान वाणी को अंतरंग में बसा लिया हो।जैनागम का यही मुख्य रहस्य है जिसमे अनेक महामुनियों पर घोर उपसर्ग हुए मस्तक पर जलती हुई सिगड़िया रख दी गयी ,जंगल के खूंखार शेरो ने ध्यान साधना में बैठे मुनियो को अपना भोजन बना लिया लेकिन इसी भेद विज्ञान के बल पर अपने आत्मबल को उच्च स्तर पर रखते हुए उन महामुनिवरो ने सामाधि ग्रहण कर ली किन्तु कभी भय ,हिंसा या प्रतिकार का आसरा नही लिया
ठीक उसी तरह आचार्य श्री के करुणामयी आशीष व ज्ञान को पाकर नाथूलाल जी क्षुल्लक श्री सार्थक सागर जी बन गए और क्षुल्लक रूपी संयम साधना के लगभग 20 दिन हो चुके है। 14 अगस्त के दिन श्रवनबोलगोल की यात्रा से लौटते वक्त गांधीनगर में पुनः आचार्य श्री के दर्शन का महासौभाग्य मिला जहाँ क्षुल्लक श्री सार्थक सागर जी की आहारचर्या का देखने को मिली जिसमे आचार्य श्री निर्देशानुसार उनके सँगस्थ शिष्य मुनिगण वात्सल्य पूर्वक उपस्थित थे जो अपने ज्ञान व अनुभव से चर्या पूर्ण करा रहे थे।
आहार चर्या के अंत मे आचार्य श्री स्वयं उन क्षुल्लक श्री के कक्ष में जाकर आशीर्वाद प्रदान कर कुशलक्षेम पूछते हुए आवश्यक निर्देश व सम्बोधन दिया।
चतुर्थ पट्टचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरूराज की असीम अनुकम्पा-वात्सल्य,करुणा व समस्त संघ के वैयावृत्ति भावना से एक असाध्य रोग से व्याकुल साधर्मी बन्धु जिसे एक घण्टे का जीवन बता दिया था वो आज 20 दिन से क्षुल्लक साधना में आरूढ़ है। जीवन चाहे घण्टो का रहे या महीनों का किन्तु शेष जीवन निश्चित गुरु चरणों मे बीते यही श्रेष्ठ भावना नाथूलाल जी को सार्थक सागर बनाकर उनके के जीवन को सार्थक कर रही है।
वर्तमान के नायाब सन्त परमपूज्य अभिनवकुंदकुन्द चतुर्थ पट्टचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरूराज को कोटिशः नमन