ईमानदारी से कमाया धन ही शांति प्रदान करता है : मुनिश्री मनीषप्रभ सागर जी


नदी में नाव हमें पार लगाती है किंतु जब नाव में तेज लहरों के कारण पानी भर जाता है तो हम पार जाने के लिए हाथों से पानी को निकालते हैं। ठीक उसी प्रकार जब सीमा से अधिक धन हो तो उसे धर्म की गंगा में प्रवाहित कर देंगे तो नैय्या पार लग जाएगी। ये उद्गार इंदौर में चातुर्मासरत खतरगच्छ गचछाधिपति आचार्यश्री जिनमणिप्रभ सूरीरजी के शिष्ट मुनिराज मनीषप्रभ सागर जी ने बुधवार को कंचनबाग स्थित श्री नीलवर्णा पार्श्वनाथ जैन श्वेतामर मूर्तिपूजक ट्रस्ट में एक धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये।

उन्होंने कहा कि जो धन छल-कपट, झूठ-अन्याय से हासिल किया गया है, वह आपके जीवन को अशांत करता है, अनर्थ लाता है। ऐसे धन को धर्म में लगाने का भी औचित्य नहीं है। जो धन किसी के आंसू निकालकर, किसी को दुखी करके हासिल किया गया हो, वह धन, धन नहीं बल्कि धन के रूप में अधर्म है। सबसे बड़ा पापी वह है जो परिग्रह करता है। एक बात सही है कि धन-दौलत से प्रतिष्ठा मिलती है किंतु न्याय से हासिल धन जीवन को धर्ममयी तरीके से आगे बढ़ाता है और व्यक्ति जीवन में शांति महसूस करता है। जीवन जीने के लिए धन जरूरी है किंतु उतना ही जिसमें जीवन चल जाए, जिसमें साधु-संतों सहित परिवार और मेहमान के आने पर खर्च हो सके।

सभी को पता है कि हमें अपनी आत्मा को पावन और पवित्र करना है क्योंकि शरीर तो जलकर खाक हो जाता है किंतु आत्मा अमर है।  उन्होंने आगे कहा कि दान को दिखावे के लिए न दें बल्कि अंर्तमन से दान दें तो उसका फायदा जरुर मिलेगा। दान देने में अहंकार नहीं होना चाहिए। हमें अपने प्रत्येक आवश्यकता को एक सीमा तक निर्धारित कर देना चाहिए फिर चाहे वो मकान हो, कपड़े हो, गहनो हो या खाना-पीना। दान को भी निर्धारित करना चाहिए कि हमें एक महीने में होने वाली कमाई से अमुक प्रतिशत दान देना है। नीलवर्णा जैन श्वेतामर ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय मेहता एवं सचिव संजय लुनिया ने बताया कि आचार्यश्री जिनमणिप्रभ सूरीर जी के पावन सानिध्य में उनके शिष्य मुनिराज श्री मनीषप्रभ सागर जी एवं मुक्तिप्रभ सागर जी प्रतिदिन प्रात: 09.15 से 10.15 तक अपने मुखारबिंद से अमृत वर्षा करेंगे।


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