शीतलनाथ जी दसवें तीर्थंकर के रूप में प्रसिद्ध हैं। भगवान शीतलनाथ का जन्म माघ मास कृष्ण पक्ष की द्वादशी को पूर्वाषाड़ नक्षत्र में भद्रिकापुर में इक्ष्वाकु वंश के राजा दृढ़रथ की पत्नी माता सुनंदा के गर्भ से हुआ था। इनका वर्ण सुवर्ण (सुनहरा) और चिह्न ‘वत्स’ था।
प्रभु शीतलनाथ जब मात्र गर्भ में थे, तब महाराज दृढ़रथ को बुखार हुआ था। उनका शरीर ताप से जलने लगा था। जब समस्त उपचार विफल हो गए तब महारानी के मात्र स्पर्श से महाराज बुखार से मुक्त हो गए। महाराज ने इसे अपनी होने वाली सन्तान का प्रभाव माना। फलस्वरूप नामकरण के प्रसंग पर उक्त घटना का वर्णन करते हुए महाराज ने अपने पुत्र का ‘शीतलनाथ’ रखा।
पिता से दीक्षा लेने के उपरांत उन्होंने वर्षों तक प्रजा का पुत्रवत सेवा व पालन किया। लेकिन जल्द ही उनका इस संसार से मोह त्याग हो गया। भोगावली कर्म समाप्त हो जाने पर माघ कृष्ण द्वादशी के दिन शीतलनाथ ने श्रामणी दीक्षा अंगीकार की। तीन माह के तप व ध्यान के बाद प्रभु शीतलनाथ जी ने केवलज्ञान व केवलदर्शन को प्राप्त किया। इस दिन ‘कैवल्य’ महोत्सव मनाया जाता है।
प्रभु शीतलनाथ जी चतुर्विध तीर्थ की स्थापना कर तीर्थंकर पद पर विराजमान हुये। वैशाख कृष्णा द्वितीया को सम्मेद शिखर से नश्वर देह का विसर्जन कर निर्वाण पद हासिल किया।
Heaven | Achyutadevaloka |
Birthplace | Bhadrapura |
Diksha Place | Samed Shikharji |
Father’s Name | Dridharatha-raja |
Mother’s Name | Nanda |
Complexion | Golden |
Symbol | Srivatsa |
Height | 90 dhanusha |
Age | 100,000 purva |
Tree Diksha or Vat Vriksh | Priyangu |
Attendant spirits/ Yaksha | Brahma and Asoka |
Yakshini | Manavi |
First Arya | Nanda |
First Aryika | Sujasa |