जयपुर के विभिन्न जैन मंदिरों में वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन शुक्रवार को जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव (भगवान आदिनाथ) के प्रथम आहार दिवस के रूप में मनाया। इस दिवस को जनकपुरी जैन मंदिर में प्रवासरत गणिनी आर्यिका रत्न गौरवमती माताजी ससंघ के पावन सानिध्य एवं दिशा-निर्देशन में श्रद्धालुओं ने भगवान ऋषभदेव का इच्छुरस (गन्ने का रस) से कलशाभिषेक किया गया एवं शांतिधारा की गई। गणिनी आर्यिका गौरवमती माताजी ने अक्षय तृतीया के पावन दिवस का महत्व बताते हुए कहा कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर भगवान अदिनाथ ने मुनि दीक्षा ग्रहण करने के बाद छह माह तक उपवास की प्रतिज्ञा लेकर तपस्या में लीन हो गये।
छह माह बाद उपवास की समाप्ति के बाद वह आहार हेतु निकले किंतु श्रावकों को मुनियोचित आहार-विधि का ज्ञान नहीं होने के कारण उनका आहार नहीं हो पाया। इसके बाद बिना आहार के ही वे वापस आ गये और लगभग एक वर्ष तक और निराहार रहकर अपनी तपस्या शुरू कर दी। लगभग एक वर्ष बाद वे आहार हेतु हस्तिनापुर पहुंचे जहां राजा श्रेयांस को पूर्वभव में दिये गये आहार आहार-विधि का अचानक ज्ञान हो गया और उन्होंने इच्छु रस (गन्ने का रस) आहार में दिया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। इसीलिए आज का दिन जैन धर्म में अक्षय तृतीया के नाम से प्रसिद्ध है।