हालाँकि उपवास करने से, भूखा रहने से शरीर में कमजोरी महसूस होती है पर वह भोजन के अभाव की न होकरशरीर में इकट्ठे हुए मल का जो नाश होता है, उसकी है। शरीर की शुद्धि होने के पश्चात वापस शरीर में ताकत आनेलगती है.. ताजगी महसूस होने लगती है। यह कोई चमत्कार नहीं है। पर शरीर में रहे हुए विजातीय द्रव्य निकल जानेसे स्वास्थ्य का सहज प्रादुर्भाव होता है।
सामान्यतया शरीर में स्वाभाविक रुप से ज्वलन क्रिया होती ही रहती है.. इससे शरीर अमुक तापमान तक उष्णरहता है। जैन धर्म की परिभाषा में इसे तैजस शरीर या तैजस नामकर्म की संज्ञा दी जा सकती है। इस ज्वलनक्रिया कोचालू रखने के लिये ईधन की आवश्यकता तो रहती ही है..। अधिकांश ईधन भोजन के ’काबरेहाइड्रेट्स‘ एवं चर्बी से मिलजाता है.. पर उपवास के दौरान भोजन की उर्जा मिलनी बंद होने से शरीर में संग्रहित भोजन आकर इस अग्नि में जलता है..। इसीलिये उपवास में चर्बी बहुत जल्द कम हो जाता हैं, चर्बी की तरह जिगर तिल्ली एवं मांसपेशियां भी कम होतीहैं, पर मस्तिष्क बिल्कुल कम नहीं होता या उसे तनिक भी नुकसान नहीं होता है अत: नींद पूरी आती है.. विचार स्वच्छएवं स्वस्थ रहते हैं। शुरु-शुरु के दिनों में भीतर एकत्र हुआ कचरा, जीभ पर मेल जमना.. थूंक आना, मितली आना,वगैरह के रुप में बाहर आता है पर धीरे धीरे सब व्यवस्थित जम जाता है।
बुखार, चेचक, दमा, रक्तचाप, बवासीर, एक्झिमा जैसे रोगों में उपवास लाभदायी है.. अमरीका की ’एडर्वड डेबी‘नामक डॉक्टर ने अपने बच्चे का ’डिप्थेरिया‘ जैसा घातक रोग भी उपवास के द्वारा मिटाया है। इसी डॉक्टर ने अपनी पुस्तक The Non breakfast Plane and Fasting Cure में लिखा है कि बीमारी के दौरान जबरदस्ती खाना या दवाईयां लेने की बजाय उपवास करना ज्यादा अच्छा है। ताकि स्वास्थ्य जल्दी मिल सके ।