भोपाल, शुद्ध जल और शुद्ध आहार से ही जीवन में मानसिक शांति आ सकती है। हबीबगंज में चातुर्मास कर रहे आचार्य विद्यासागर जी एक धर्मसभा को संबोधित करते हुए यह बात कही। उन्होंने कहा कि सरकार जल ही जीवन है का नारा दे रही है किंतु जल के शुद्धिकरण की विधि को नहीं बतलाया जा रहा है जबकि जल तभी जीवन के लिए वरदान होता है, जब वह शुद्ध हो। भौतिकतावादी युग में मन की चिकित्सा शुद्ध जल और शुद्ध आर से ही की जा सकती है। उन्होंने जल प्रदूषण के संबंध में चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ठंडे जल से संयम का व्रत भंग होता है और पेट के अंदर जीवों की उत्पत्ति होती है। ज्ञान के अभाव में अशुद्ध जल पीने से लोग रोग से पीडित हो जाते हैं। यहां तक कि पेट, लीवर, किडनी और हृदय पर सीधा प्रभाव डालता है।
उन्होने कहा कि जल का समाशोधन अग्नि के माध्यम (उबालकर) से ही किया जा सकता है। शुद्ध हवा और सूर्य के माध्यम से भी जल का प्राकृतिक रूप से शुद्धिकरण होता है। आचार्यश्री ने कहा कि महानगरों में शुद्ध जलवायु की कमी होती जा रही है और पर्यावरण दूषित हो रहा है। जैन दर्शन को जानने वाला प्राशुक विधि से भोजन करना और प्राशुक जल को ग्रहण करना ही रोग मुक्त रहना है। आज प्राशुकीकरण से जल शुद्धि करने विधि लोगों को बताये जाने की जरूरत है। यदि जल, हवा शुद्ध नहीं होगे तो मन को भी शुद्ध नहीं बनाया जा सकता। हम कितना भी विज्ञान का अध्ययन कर लें किंतु विवेक को जागृत रखके और सावधानी को बरतकर ही हम प्रदूषण मुक्त जीवन जी सकते है। इस अवसर पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष प्रमोद, हिमांशु, मनोज जैन मुन्ना, पंकज प्रधान, प्रवक्ता अंशुल जैन आदि मौजूद थे।