देश में रिफाइंड का इस्तेमाल पहले की तुलना में पांच गुना तेजी से बढ़ा है। रिफांइड लगभग पिछले 25-30 वर्ष पूर्व देश में आया है, इससे पूर्व इसे कोई जानता तक नहीं था। पहले घरों में कच्ची धानी, सरसों के तेल का इस्तेमाल हुआ करता था, यही कारण था कि पहले लोगों में हृदय संबंधी बीमारियां काफी कम थी। फिर कहा जाने लगा कि इन तेलों में सैचुरेटेड फैटी एसिड (एसएफए) होता है। इसलिए इनका इस्तेमाल सेहत के लिए ठीक नहीं है। यही कारण है कि रिफाइंड तेल का इस्तेमाल बढ़ गया है।
वर्तमान में रिफाइंड के कई आकषर्क ब्रांड बाजार में उपलब्ध हैं, जिसमें कुछ विदेशी कम्पनियां भारतीय कम्पनियों के साथ मिलकर इस धंधे में लगी हैं। शुरूआत में इनका प्रचार-प्रसार काफी बड़े स्तर पर किया गया किंतु सफलता कम मिली। इसके बाद विज्ञापनों में रिफाइंड खाने की सलाह डाक्टर तक देने लगे।
आखिर रिफाइंड बनता कैसे है? किसी भी तेल को रिफाइंड करने के दौरान 6 से 7 इनऑग्रेनिक केमिकल का प्रयोग किया जाता है और डबल रिफाइंड करने में इन केमीकल्स की संख्या 12-13 तक हो जाती है। आप समझने की कोशिश करें कि किसी भी तेल को सुंदर, गंध रहित और आकषर्क बनाने के लिए उसमें उपलब्ध ऑग्रेनिक प्रोटीन निकाल दिये जाते हैं, इनके निकलने के बाद तेल बदवू रहित तथा सुंदर दिखने लगता है किंतु शरीर के लिए अतिहानिकारक हो जाता है। इस संबंध में दिल्ली-बेंगलुरू के आठ हॉस्पीटल में शोध कार्य में लगे डा. मनचंदा के मुताबिक कई शोधों में यह साबित हुआ है कि सरसों का तेल रिफाइंड से ज्यादा बेहतर है।
रिफाइंड तेल तैयार करने के लिए उसे कई बार उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है, इसके चलते उसमें कई हानिकारक तत्व उत्पन्न हो जाते हैं और तेल को आकषर्क बनाने के लिए रिफाइंड, ब्लीच्ड एवं डिओडोराइन्ड की प्रक्रिया में तेल के अच्छे तत्व समाप्त हो जाते है तथा घातक केमीकल्स घुल जाते है। यही कारण है कि एक लंबे समय बाद रिफाइंड खराब हो जाता है जबकि घी, सरसों का तेल, कच्ची धानी का तेल, नारियल तेल, मूंगफली का तेल, तिल का तेल खराब नहीं होता। सरसों के तेल में ओमेगा-3 की मात्रा ज्यादा होती है। यही कारण है कि सरसों का तेल हृदय संबंधी बीमारियों के लिए ज्यादा फायदेमंद है।
वैज्ञानिकों ने कई ब्रांडों के रिफाइंड तेल का लेबोरेटरी टेस्ट कर पता लगाया कि तेल में से जैसे ही चिपचिपापन, दुर्गध को निकालेंगे तो वह तेल नहीं रहता, तेल के सारे महत्वपूर्ण घटक निकल जाते हैं और डबल रिफाइंड में तो कुछ भी नहीं रहता, बस छूंछ बच जाता है और हम सब उसी को खा रहे हैं। मतलब तेल के माध्यम से जो पौष्टिकता हमें मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल रही है।
शुद्ध तेल में आइअएचडीएल (हाई डेनेस्टी लिपोप्रोटीन) मिलता है, जो शरीर में लिवर में बनता है किंतु शुद्ध तेल खान से। यदि आप शुद्ध तेल खायेंगे तो आईएचडीएल अच्छा बना रहेगा और जीवन भर हृदय सहित अन्य कई रोगों की आशंकाओं से दूर बने रहेंगे। देश में सबसे ज्यादा विदेशी तेल बिक रहा है। मलेशिया एक छोटा देश है, वहां का पामोलिन तेल अपने देश में बहुत ज्यादा बिक रहा है। यहां पामोलिन को पाम आयल कहते हैं। पामोलिन के बारे में रिसर्चर बताते हं कि पामोलिन में सबसे ज्यादा ट्रांस फैट है और ट्रांस फैट वो फैट है, जो किसी भी तापमान पर डिसाल्व नहीं होता। धीरे-2 ट्रांस फैट की मात्रा शरीर में बढ़ती चली जाती है, जिससे हृदय, ब्रेन हैमरेज, उच्च रक्तचाप, पैरालिसिस तक की आशंका काफी हद तक बढ़ जाती है।
अमेरिका में प्रकाशित ‘द हैंड बुक ऑफ नेचुरल हैल्थ’ में डा. बुडविज ने लिखा है कि कृत्रिम हाइड्रोजिनेटेज फैट स्वास्थ्य के लिए धीमे जहर के सिवा कुछ नहीं है तथा स्वस्थ्य निरोगी शरीर के लिए आवश्यक वसा अम्ल जरूरी है। प्रसिद्ध डा. योहाना बुडविज मूलत: वसा विशेषज्ञ है, जिन्होंने पेपर क्रोमेटिक तकनीक विकसित की है। उनके अनुसार रिफाइंड तेल स्वास्थ्य के अत्यंत हानिकारक है। वैज्ञानिक यूडो इरेसमस की पुस्तक ‘फेट्स देट हील फेट्स देट कील’ के अनुसार परिष्कृत तेल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। रिफाइंड तेल में कैंसर पैदा करने वाले घातक तत्व होते हैं। यह सब जानने के बाद आप सोचेंगे कि तो फिर कौन सा तेल इस्तेमाल किया जाए। आप रिफाइंड तेल के स्थान पर फिल्र्टड तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा सरसों का तेल, कच्ची धानी का तेल, नारियल का तेल, तिल का तेल इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि ये हानिकारक नहीं होते।