विद्याधर से आचार्य विद्यासागर बनाने हेतु मित्र मारुति ने की मजदूरी, पढ़िये….


दमोह, कुंडलपुर में बड़े बाबा के महामस्तकाभिषेक समारोह में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा है और बड़े बाबा सहित आचार्य विद्यासागर जी महाराज के दर्शन कर पुण्यलाभ प्राप्त कर रहे हैं। श्रद्धालुओं के हुजूम में वे खास आंखें दिखाई दी, जिन्होंने बालक विद्याधर के सपनों का साकार किया और उनके आचार्य विद्यासागर बनने की राह आसान की। ये आंखें और किसी की नहीं बल्कि आचार्य विद्यासागर के ही बचपन के मित्र मारुति की हैं। कर्नाटक के गांव सदलगा निवासी मारुति गांव के कुछ लोगों के साथ कुंडलपुर पहुंचे। उन्हें अहंकार नहीं बल्कि गर्व है कि ईर ने आचार्यश्री की मदद का श्रेय उनकी झोली में डाला है। मारुति अपने बचपन के मिश्र यानी आचार्य विद्यासागर जी से इतने प्रमावित हैं कि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया हुआ है। मारुति बचपन में बिताये समय को बताते हुए अतीत की यादों में खो जाते हैं। वे कहते हैं कि आचार्यश्री बचपन से ही दृढ़निश्चयी रहे हैं। उनका घर का नाम विद्यासागर था। करीब 20 वर्ष की अवस्था में उनके मन में वैराग्य का भाव जाग उठा था। उनका चित्त शांत और आध्यात्मिकता में लीन था। आचार्यश्री के बचपन के मिश्र मारुति के दिल में विद्याधर की बात घर कर गयी कि वे आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत पालन करना चाहते हैं। शुरू में तो मित्र के बिछड़ने का दुख था किंतु जब विद्याधर ने मिथ्या संसार के सच से परिचय कराया तो मारुति की आंखे खुल गयी।

 विद्याधर अजमेर जाना चाहते थे। इसके लिए रुपयों की जरूरत थी तो मारुति ने उन्हें साहस बंधाया। मिश्र की इच्छा पूरी करने हेतु मारुति ने 1 रुपये प्रतिदिन से मजदूरी कर उन्होंने 117 रुपये कमाये और उन्हें विद्याधर को सौंप दिये। इन्हीं पैसों की मदद से विद्याधर 1966 में चूलगिरि मंदिर पहुंचे, जहां उन्होंने आचार्य देशभूषण जी से ब्रह्मचर्य व्रत लिया। मारुति ने बताया कि विद्याधर सदलगा गांव के एक ही स्कूल में पढ़ते थे और 8वी कक्षा तक की पढ़ाई साथ-साथ की। इतना ही नहीं मारुति उनके इतने करीब रहे कि वे अपना सुख-दुख मारुति के साथ ही साझा किया करते थे। उम्र में मारुति आचार्यश्री से 5 वर्ष बड़े हैं किंतु उनका मन आचार्यश्री के चरणों का अनुरागी है। मारुति ने बताया कि 1968 में आचार्यश्री ने अजमेर में ही आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज से मुनि दीक्षा ली थी। इसके बाद मारुति उनसे मिलने पहुंचे और कहा कि मुझे अकेला छोड़ दिया। अब मैं क्या करूं। इस पर आचार्यश्री ने उन्हें विवाह के झंझट से दूर रहने को कहा और मित्र की बात मानते हुए आज तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रहे हैं।


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