गंधोदक भगवान् के अभिषेक से प्राप्त सुगन्धित पवित्र जल है। हाथ को धोकर चम्मच अथवा कन्नी अंगुली को छोड़कर अगली दो अँगुलियों से थोडा सा गंधोदक लेकर मस्तक, नेत्र, कंठ एवं हृदय पर धारण करे।
गंधोदक लेते समय निम्न मंत्र बोले-
“निर्मलं निर्मले करणं, पवित्रं पापनाशनम्।
जिन गन्धोदकम् बंदे अष्ट कर्म विनाशनम्’ ।।
अर्थात यह निर्मल है, निर्मल करने वाला है, पवित्र है और पापों को नष्ट करने वाला है, ऐसे जिन गंधोदक कि मै वंदना करता हूँ, यह मनुष्य के अष्टकर्मो का नाशक है। गंधोदक अत्यंत महिमावान है!मैना सुंदरी जी के द्वारा श्रीपालजी के शरीर पर गंधोदक छिड़कने से उनके कुष्ट रोग का निवारण हो गया था।
गंधोदक लेते समय ध्यान रखने योग्य विशेष बात है-अंगुली से एक बार गंधोदक कटोरे में से लेने के बाद पुन: वही अंगुली पुन: गंधोदक लेने के लिए, बिना धोये, गंदक के कटोरे मे डालना अनुचित है क्योकि शरीर का स्पर्श करने से वे अशुद्ध हो जाती है।