वास्तु न मिथ्यात्व है ना विपरीत कला है और ना ही किसी को ठगने का पुरुषार्थ है। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इनको योग्य करने का नाम वास्तु है। जिस प्रकार चेतन जीव की शारीरिक मानसिक, और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को दूर करने वाले चिकित्सक होते हैं उसी प्रकार एक वास्तुविद भी अचेतन वस्तु के दोषों को दूर करने वाले चिकित्सक होते हैं। आगम में वास्तु का अर्थ आवास है।
यह उद्गार मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने समोसरण मंदिर कंचन बाग में मुनि संघ के दर्शन कर आशीर्वाद लेने मुंबई से आए ज्यो वास्तु परिवार के सदस्यों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। मुनि श्री ने कहा कि सभी आठों दिशाएं अशुभ नहीं होती, और सब का अपना प्रभाव और महत्व होता है। जिसका जैसा पुण्य हो उसके अनुसार फल प्राप्त होता है। वास्तु का प्रभाव व्यक्ति पर और व्यक्ति का प्रभाव वास्तु पर पड़ता है।
उन्होंने कहा कि वास्तु के दूरगामी प्रभाव होते हैं और वास्तु के दोषों के निवारण से व्यक्ति व्यापारिक, सामाजिक, आर्थिक एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से मुक्त हो सकता है। इस अवसर पर प्रसिद्ध वास्तुविद डॉ राजेंद्र जैन भी उपस्थित थे और उन्होंने भी मुनि श्री आदित्य सागर जी, मुनिश्री अप्रमित सागरजी एवं मुनि श्री सहज सागर जी के समक्ष श्रीफल समर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
— राजेश जैन दद्दू