इंदौर। साधुओं और मंदिरों को पंथवाद से मुक्त रखो और पंथ के नाम पर साधुओं और मंदिरों में भेदभाव भी मत करो। साधु ना तेरापंथी होता है ना बीसपंथी होता है वह तो सिर्फ निरग्रंथ दिगंबर आमनाय का साधु होता है और उसे उसी रूप में माना जाना चाहिए। इसी प्रकार मंदिर की बेदी में विराजमान तीर्थंकर की प्रतिमा भी ना तेरापंथी होती है ना बीसपंथी होती है, वह तो दिगंबर मुद्रा की होती है।
यह उद्गार श्रमण मुनिश्री आदित्य सागर जी महाराज ने आज विद्या पैलेस स्थित पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर में आयोजित धर्मसभा मैं कहे। मुनि श्री ने कहा कि जैन समाज संख्या में अल्प है उसे खंड खंड मत करो , संगठित रहो और किसी के भी प्रति ईर्ष्या,प्रतिशोध, प्रतिकार और कषाय भाव मत रखो एवं विषय कषाय और कर्मों को कम करो।
जिस मुमुक्षु को मोक्ष की अभिलाषा है तो वह चेतन ,अचेतन के प्रति आसक्ति (तीव्र राग, इच्छाएं) घटाए और अनासक्ति (अनिच्छा और त्याग भाव) बढ़ाए उसका मोक्ष मार्ग प्रशस्त होगा प्रारंभ में प्रभु प्रतिमा के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन श्री प्रदीप बड़जात्या, डॉक्टर जैनेंद्र जैन, और चिंतन जैन ने किया ।मुनिश्री के पाद प्रक्षालन मुकेश जैन ने किए और मुनि संघ को शास्त्र भेंट महिला मंडल ने किए। धर्म सभा का संचालन पंडित अर्पित वाणी ने किया।
— राजेश जैन दद्दू