
बंधुओ भक्तामर स्तोत्र की महिमा से हम सभी परिचित है, किसी भी प्रकार की बाधा, दुख , बीमारी, कार्य में विफलता आदि परेशनिया हम सबके जीवन में लगी रहती हैं, इन सभी के निराकरण के लिए हम भक्तामर स्तोत्र का पाठ करते हैं, परन्तु हम सभी जानते हैं की जैन धर्म के ये दिव्य भक्तामर स्तोत्र यंत्र आसानी से बाज़ार में उपलब्ध नहीं हैं,
इसी परेशानी को देखते हुए हम समाज के सभी जैन धर्मावलंबी को ये दिव्य यन्त्र उपलब्ध करने का प्रयास कर रहे हैं |
भक्तामर स्तोत्र यंत्र
ये चमत्कारी सिद्ध भक्तामर स्तोत्र यंत्र अपने घर में पूजा स्थल में रख कर नित प्रतिदिन विधि पूर्वक इनकी पूजा कर के लाभ प्राप्त कर सकते हैं| भक्तामर स्तोत्र में 48 श्लोक हैं और हर श्लोक की अपनी अलग महत्ता एवं उपयोगिता हैं जो की अलग अलग कार्य सिद्ध हेतु उपयोग किये जाते हैं |
प्रत्येक श्लोक के सिद्ध भक्तामर स्तोत्र यंत्र की दान राशी रूपये 300/- मात्र निर्धारित की गयी हैं जो की इन यन्त्र की महत्ता एवं लाभ के आगे नगण्य हैं| इसलिए आज ही अपना यन्त्र आरक्षित करवा कर लाभ अर्जित करें |
सिद्ध भक्तामर स्तोत्र यंत्र प्राप्त करने हेतु हमारे Whatsapp – 07042084535 या Email – jain24online@gmail.com पर संपर्क करें |
जय जिनेन्द्र,

गुण- प्रथम यंत्र को भोज पत्र पर केशर से लिखकर सुगन्धित धूप की धूनी देकर अपने पास रखने से उपद्रव नष्ट होते हैं, सौभाग्य की प्राप्ति होती है और लक्ष्मी का लाभ होता है। यह मंत्र महा प्रभावक है।

गुण- यंत्र को पास में रखने और दूसरा काव्य एवं ऋद्धि-मंत्र के स्मरण करने से शत्रु तथा शिर की पीड़ा नाश होती है, दृष्टिबन्ध (वह क्रिया जिससे देखने वालों की दृष्टि में भ्रम हो जाये) दूर होती है। आराधक को मंत्र-साधन तक नमक से होम करना चाहिये तथा दिन में एक बार भोजन करना चाहिये।

गुण- अंजुलि भर जल को उक्त मंत्र से मंत्रित कर 21 दिन तक मुख पर छीटें देने से सब लोग प्रसन्न होते हैं। यंत्र को पास में रखने तथा तीसरा काव्य, ऋद्धि मंत्र स्मरण करने से शत्रु की नजर बंद हो जाती है। दृष्टि दोष भी दूर होता है।

गुण- यंत्र को पास में रख कर चौथां काव्य ऋद्धि तता मंत्र द्वारा 21 कंकरियों को लेकर प्रत्येक कंकड़ी 7 बार मंत्र कर जल में डालने से मछलियां तथा जलजन्तु जाल में नहीं फंसते। मंत्र-आराधक जल में नहीं डूबता और तेज बहाव वाले पानी से बच निकलता है।

गुण- यंत्र को पास में रखने और काव्य ऋद्धि मंत्र स्मरण से, जिसकी आंखों में दर्द हो, पीड़ा हो उसे सारे दिन भूखा रख कर सायंकाल मंत्र द्वारा 21 बार मंत्रित कर बतासों को जल में घोलकर पिलाने और आंखों पर छींटने से दु:ख दर्द दूर होता है।

गुण- भक्तामर स्तोत्र के यंत्र को पास में रखने और छठवां काव्य तथा उक्त मंत्र को प्रतिदिन स्मरण करने से तथा यंत्र को पास रखने से स्मरण-शक्ति बढ़ती है, विद्या बहुत शीघ्र आती है पढने लिखने में मन लगता हैं , बिछुड़े हुए व्यक्ति से मिलाप होता है।

गुण- भूर्ज पत्र पर हरे रंग से लिखा यंत्र पास में रखने से सर्प विष दूर होता है। दूसरे विष भी प्रभावशाली नहीं होते। ऋद्धि-मंत्र द्वारा 108 बार कंकरी मंत्रित कर सर्प के सिर पर मारने से नाग कीलित हो जाता है।

गुण- यंत्र को पास में रखने से तथा आठवां काव्य ऋद्धि मंत्र के आराधन से सब प्रकार के अरिष्ट (आपत्ति-विपत्ति-पीड़ा आदि) दूर होते हैं। नमक के 7 टुकड़े लेकर एक-एक को 108 बार मंत्र कर पीड़ित अंग को झाड़ने से पीड़ा दूर होती है।

गुण-इस काव्य, ऋद्धि और मंत्र के बार-बार स्मरण करने तथा यंत्र को पास में रखने से मार्ग में चोर डांकुओं का भय नहीं हरता। चोर-चोरी नहीं कर सकता। 4 कंकड़ियों को लेकर प्रत्येक कंकरी को 108 बार मंत्र कर चारों दिशाओं में फेंकने से मार्ग कीलित हो जाता है।

गुण- यंत्र को पास में रखने से कुत्ते के काटने का विष उतर जाता है। नमक की 7 डली लेकर प्रत्येक को 18 बार मंत्र कर खाने से कुत्ते का विष असर नहीं करता।

गुण- यंत्र को पास में रखने से जिसे आप पास बुलाना चाहते हों वह आ जाता है। मुट्ठी भर सफेद सरसों को उक्त मंत्र से 12000 बार मंत्र कर ऊपर उठाकर फेंकने से निश्चय पूर्वक जल वृष्टि होती है।

गुण- 12वां काव्य ऋद्धि तथा यंत्र से और 108 बार तेल को उक्त मंत्र द्वारा मंत्र कर हाथी को पिलाने से उसका मद उतर जाता है। बार-बार मंत्र स्मरण से रूठकर पीहर गई पत्नी वापिस लौट आती है।

गुण- 13वां काव्य ऋद्धि तथा मंत्र के स्मरण से एवं यंत्र पास रखने और 7 कंकरी लेकर हरेक को 108 बार मंत्र कर चारों दिशाओं में फेंकने से चोर चोरी नहीं कर पाते तथा मार्ग में किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता।

गुण- यंत्र पास रखने से तथा 7 कंकरी लेकर प्रत्यक को 21 बार मंत्र कर चारों ओर फेंकने से आधि-व्याधि और शत्रु का भय नाश होता है। लक्ष्मी की प्राप्ति होती है तथा बुद्धि का विकास होता है। सरस्वती देवी प्रसन्न होती है।

गुण- उपरोक्त ऋद्धि मंत्र द्वारा 21 बार तेल मंत्र कर मुख पर लगने से राज-दरबार में प्रभाव बढ़ता है, सन्मान प्राप्त होता है, और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इस ऋद्धि मंत्र के बारम्बार स्मरण से तथा भुजा पर यंत्र बांधने से वीर्य की रक्षा होती है और स्पन्नदोष कभी नहीं होता।

गुण- भक्तामर स्तोत्र के यंत्र को पास में रखने से तथा 108 बार शुद्ध भावों से ऋद्धि मंत्र का स्मरण कर राज दरबार में पहुंचने पर प्रतिपक्षि पराजित होता है और शत्रु का भय नहीं रहता। पुश्च इसी ऋद्धि मंत्र द्वारा जल मंत्र कर छींटने से हर प्रकार की अग्नि शान्त हो जाती है।

गुण- यंत्र को बांधने तथा अछूता शुद्ध जल ऋद्धि मंत्र द्वारा 21 बार मंत्र कर पिलाने से उदर की असाध्य पीड़ा वायुगोला, वायुशूल आदि रोग दूर होते हैं।

गुण- यंत्र को पास में रखने से तता 108 बार ऋद्धि मंत्र के स्मरण से शत्रु की सेना का स्तम्भन होता है। इस मंत्र का आराधन करने वाले आराधक के मन में व्यर्थ के संकल्प विकल्प पैदा नहीं होते। चिन्ता, कोप, दुध्र्यान, मोह, निथ्यात्व नाश होता है तथा धर्मध्यान में स्थिर चित्त रहता है।

गुण- यंत्र को पास में रखने से तथा ऋद्धि मंत्र का 108 बार स्मरण करने से सन्तान की उत्पत्ति होती है, लक्ष्मी का लाभ, सौभाग्य की वृद्धि, विजय प्राप्ति तथा बुद्धि का विकास होता है।

गुण- यंत्र पास में रखने तथा काव्य, ऋद्धि और मंत्र का स्मरण करते रहने से सर्वजन, स्वजन और परिजन अपने अधीन होते हैं-वशीभूत होते हैं।

गुण- यंत्र को गले में बांधने से तथा हल्दी की गांठ को 21 बार ऋद्धि मंत्र द्वारा मंत्र कर चबाने से डाकिनी, शाकिनी, भूत, पिशाच, चुड़ैल आदि की बाधायें दूर होती हैं।

गुण- सर्वप्रथम स्वशरीर की रक्षा के लिये 108 बार 23वां काव्य, ऋद्धि तथा मंत्र स्मरण कर पश्चात् जिसे भूत-प्रेत की बाधा हो उसे यंत्र बांधे तथा मंत्र द्वारा झाड़े तो प्रेत बाधा दूर होती है।

गुण- 21 बार राख मंत्र कर दुखते हुए शिर पर लगाने से और यंत्र को पास में रखने से आधाशीशी, पूर्यवात, मस्तक का वेग आदि शिर संबंधी सब तरह की पीड़ायें दूर होती हैं।

गुण- 25वां काव्य ऋद्धि तथा मंत्र के स्मरण एवं यंत्र के पास में रखने से धीरज उतरती है नजर उतरती है। दृष्टि दोष से बचता है, अग्नि का प्रभाव नहीं पड़ता तथा मारने के लिए उद्यत शत्रु के हाथ से शस्त्र गिर पड़ता है, वह वार नहीं कर पाता।

गुण- यंत्र को पास में रखने से तथा ऋद्धि-मंत्र द्वारा 108 बार तेल मंत्र कर शिर पर लगाने से अर्धकपाली (आधे शिर की पीड़ा) नष्ट होती है। मंत्रित तेल की मालिश तथा मंत्रित जल को पिलेने से प्रसूता की पीड़ा दूर होती है। इस मंत्र के प्रभाव से प्राणान्तक रोग उपस्थित नहीं हो पाते।

गुण- भक्तामर स्तोत्र यंत्र को पास में रखने तथा ऋद्धि-मंत्र का बार-बार स्मरण करते रहने से शत्रु मंत्र आराधना में कोई बाधा नहीं पहुंचा सकता। वह पराजित हो जाता है।

गुण- यंत्र पास में रखने तथा प्रतिदिन अट्ठाईस वां काव्य ऋद्धि तथा मंत्र के आराधन करके रहने से व्यापार में लाभ, सुख-समृद्धि, यश, विजय सम्मान तथा राज दरबार में प्रतिष्ठा बढ़ती है।

गुण- यंत्र पास में रखने तथा 29वां काव्य ऋद्धि और मंत्र द्वारा 108 बार मंत्र कर जल पिलाने से नशीले स्थावर पदार्थ जैसे भांग, चरस, धतूरा आदि नशे का प्रभाव दूर होता है तथा दुखती आंख की पीड़ा दूर होती है। बिच्छू का विष भी उतर जाता है।

गुण- उपरोक्त ऋद्धि मंत्र के बारंबार स्मरण करने तथा भक्तामर स्तोत्र के यंत्र को पास में रखने से शत्रु का स्तम्भन होता है। बियावान वन में चोर सिंहादिक हिंसक पशुओं का भय नहीं रहता। सब प्रकार के भय दूर भाग जाते हैं।

गुण- प्रतिदिन 108 बार 31वां काव्य, ऋद्धि तथा मंत्र स्मरण करने और यंत्र को पास में रखने से राज दरबार में सम्मान मिलता है- राजा वश में होता है तथा सब तरह के चर्म रोगों से छुटकारा हो जाता है।

गुण- अविवाहित कन्या द्वारा काते हुए कच्चे धागे को 32वां काव्य, ऋद्धि तथा मंत्र द्वारा 21 बार या 108 बार मंत्र कर उस धागे को गले में बांधने से और यंत्र को पास में रखने से संग्रहणी आदि उदर की सब तरह की पीड़ायें दूर होती हैं।

गुण- कुंवारी कन्या द्वारा काते हुए कच्चे धागे का गंडा बनाकर और उसे 33वें काव्य ऋद्धि तथा मंत्र द्वार 21 बार मंत्र कर बांधने, झाड़ा देने तथा यंत्र पास में रखने से एकांतरा, ताप-ज्वर, तिजारी आदि रोग दूर होते हैं।

गुण- केशरिया रंग से रंगे हुए धागे को 108 बार 34वें काव्य, ऋद्धि तथा मंत्र से मंत्रित कर गूगल की धुनी देकर गले में या कटि प्रदेश में बांधने और भक्तामर स्तोत्र के यंत्र को पास में रखने से गर्भ का स्तम्भन होता है- असमय में गर्भ का पतन नहीं होता।

गुण- यंत्र पास में रखने और भक्तामर स्तोत्र के 35वें काव्य ऋद्धि तथा मंत्र की आराधना से मरी मिरगी, चोरी, दुर्भिक्ष, राज्य-भय आदि दूर होते हैं तथा व्यापार में लाभ होता है राज्य में मान्यता होती है, वचन प्रमाणिक माने जाते हैं।

गुण- यंत्र पास में रखने तथा प्रतिदिन 108 बार 36वें काव्य-ऋद्धि-मंत्र के आराधन से सुवर्णादिक धातुओं के व्यापार में लक्ष्मी का लाभ होता है। राज्य मंं मान्यता प्राप्त होती है। पांच पंचों में बात प्रमाणिक मानी जाती है। सभी आप की कही हुई बात को सम्मान देते हैं

गुण- यंत्र पास में रखने तता भक्तामर स्तोत्र के 37वें काव्य ऋद्धि तथा मंत्र से 21 बार जल मंत्र कर मुख पर छिड़कने से दुष्ट पुरुषों के दुर्वचनों का स्तम्भन होता है और दुर्जन पुरुष वश में होता है कीर्ति तथा यश की वृद्धि होती है।

गुण- भक्तामर स्तोत्र के 38वां काव्य ऋद्धि तथा मंत्र का बारम्बार आराधन करने और यंत्र को पास में रखने से मदोन्मत्त हाथी वश में होता है और अर्थ की प्राप्ति होती है।

गुण- यंत्र को पास में रखने तथा 39 वें काव्य ऋद्धि और मंत्र के स्मरण करने से मार्ग में सर्प, सिंह, बाघ आदि जंगली क्रूर हिंसक पशुओं का भय नहीं रहता तथा विस्मृत रास्ता मिल जाता है और आराधक गन्तव्य स्थान को बिना किसी कष्ट के प्राप्त कर लेता है।

गुण- यंत्र को पास में रखने से तथा भक्तामर स्तोत्र के 41वां काव्य ऋद्धि तथा मंत्र का बारम्बार स्मरण करने से राज दरबार में सम्मान मिलता है, प्रतिष्ठा बढ़ती है तथा इसी मंत्र के झाड़ने से विषधर का विष उतरता है। कांस्य-पात्र में जल भरकर 108 बार मंत्र कर मंत्रित जल पिलाने से विष का प्रभाव दूर हो जाता है।

गुण- यंत्र को भुजा में बांधने तथा ऋद्धि मंत्र का स्मरण करते रहने से भयंकर युद्ध में भी भय उत्पन्न नहीं होता। राजा का क्रोध शान्त होता है और वह पीठ दिखाकर भाग जाता है। चंदा की चांदनी-सी कीर्ति चारों ओर फैलती है।


गुण- 43वां काव्य, ऋद्धि तथा मंत्र के स्मरण करने और यंत्र की पूजा करने व उसे पास में रखने से सब प्रकार के भय दूर होते हैं। संग्राम में अस्त्र-शस्त्रों की चोटें नहीं लगतीं तथा राजा द्वारा धन लाभ होता है।

गुण- 44वां काव्य, ऋद्धि तथा मंत्र की आराधना से तथा यंत्र को अपने पास रखने से आपत्तियां दूर होती हैं। समुद्ध में तूफान का भय नहीं होता। आसानी से समुद्र पार कर लिया जाता है।

गुण- 45वां काव्य ऋद्धि तथा मंत्र जपने और यंत्र को पास में रखने से तथा उसकी त्रिकाल पूजा करने से अनेक प्रकार की व्याधियों की पीड़ा शान्त होती है और महाभयानक मरण-भय-जलोदर, भगन्दर, गलित कोढ़ आदि शान्त होते हैं तथा उपसर्ग दूर होते हैं।

गुण- संकट आने पर सतत भक्तामर स्तोत्र के 46वां काव्य ऋद्धि तथा मंत्र को जपने और यंत्र को पास में रखने तथा उसकी त्रिकाल पूजा करने से कारगार में लौड श्रृंखलाओं से बंधा हुआ शरीर बन्धन मुक्त हो जाता है और कैद से छुटकारा होता है। राजा आदि का भय नहीं रहता।

गुण- यंत्र को पास में रखने, यंत्र का अभिषेक कर उसकी पूजा-अर्चना करके भक्तामर स्तोत्र के 47वां काव्य ऋद्धि तता मंत्र का 108 बार पवित्र भावों के साथ स्मरण करने से विपक्षी शत्रु पर चढ़ाई करने वाले को विजय लक्ष्मी प्राप्त होती है, शत्रु का नाश और सभी हथियार मोथरे हो जाते हैं, बन्दुक की गोली बरछी आदि के घाव नहीं होते। इसके अतिरिक्त मदोन्मत हस्ती, सिंह, दावानल, भयंकर सर्प, समुद्र महान रोग तथा अनेक तरह के बन्धनों से छुटकारा हो जाता है।

गुण- प्रतिदिन 108 बार 21 दिन तक अथवा 49 दिन तक ऋद्धिमंत्र तथा भक्तामर स्तोत्र के 48वां काव्य का स्मरण करने और यंत्र को पास में रखने से मनोवांछित कार्य की सिद्धि होती है। जिसको अपने आधीन करना हो उस व्यक्ति का नाम चिन्तन करने से वह व्यक्ति अपने वश में होता है।